तेरह साल से लगातार घर में स्वयं के खर्चे से प्राइवेट (निजी) रेस्क्यू सेंटर का संचालन करते हैं, पांच वर्षों में हजारों की संख्या में घायल वन्य जीवों का नि:शुल्क उपचार किया है - "महावीर विश्नोई"
हनुमानगंढ - आज फिर आपको एक ऐसे महान वन्यजीव प्रेमी से परिचय करवाने जा रहा हूँ, जिनके घर में अपने आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए। अपने क्षेत्र में वन्य जीवों का बाहुल्य ज्यादा होने के कारण दिनों दिन वन्य जीवों की घटना सामने आती है, तो अपने घर में ही घायल व पीड़ित वन्य जीवों को उपचार करने के लिए अपने स्तर पर निजी रेस्क्यू सेंटर खोल दिया है।
जिसमें ज्यादातर हिरण का प्राथमिक व अंग्रेजी दवाइयों से उपचार किया जाता है, साथ ही नीलगाय के छोटे बच्चें ओर अन्य कई प्रजातियों के पशु पक्षीयों का नि:शुल्क इलाज किया जाता है। जाम्भोजी की शिक्षाओं एवं विचारधारा से परिचित हो करके जाम्भोजी के सिद्धांतों को अपनाना शुरू कर दिया है, क्योंकि जाम्भोजी ने 29 नियमों की आचार संहिता नियमावली में एक नियम यह भी कहां है, कि "जीव दया पालणी" तो इस नियम का पालन करते हुए। वन्यजीव प्रेमी श्री महावीर विश्नोई सेवा दे रहे हैं। ऐसे महान वन्यजीव प्रेमी की अनूठी मिसाइल को बधाई व धन्यवाद देते हैं।
श्री महावीर विश्नोई कई साल पहले अपने व्यवसाय और बच्चों की पढ़ाई के कारण बाहर प्रवास में रहते थे।
जब वो सन 2012 में अपने पैतृक गांव वापस आ गये थे। ओर कुछ दिन बाद घर से बाहर गांव की ओर भ्रमण करने निकले थे, धीरे धीरे गांव की ओर बढनें लगे। थोड़ा आगे जा करके रोड़ के किनारें पर बैठ गये।
शायद आपको पता ही होगा, कि आज भी कई शहर व गांव ऐसे है, जहां बैलगाड़ी पर सवारी व माल ढोया जाता है। ओर किसान लोग अपने खेत से चारा-घास लेके आते हैं, क्योंकि उनका निवास गांव में होता है, तो पशुधन भी होता है, जब शाम के समय खेत से वापस गांव की ओर आते हैं, तो हरा या सुखा चारा, लकड़ी व घरेलू सामान बैलगाड़ी पर लादकर लाते है। ओर हर कार्य में ज्यादातर बैलगाड़ी का उपयोग किया जाता था। अभी तो डिजीटल इंडिया के युग के माध्यम से नई नई तकनीकीयों का विकास हो गया है, बैलगाड़ी का उपयोग बहुत कम किया जा रहा है।
तो जहां श्री महावीर विश्नोई खड़े थे, उनके पास से एक बैलगाड़ी गुजरी, उस बैलगाड़ी में एक लड़का सवार था। ओर उसकी गोद में हिरणी का बच्चा भी था।
इन्होंने बैलगाड़ी को रूकवायी ओर लड़के से वार्तालाप शुरू की। फिर लड़के से पूछा आप यह हिरणी का छोटा-सा बच्चा कहां से लायें ओर अभी आगे कहां लेके जा रहे हो ? तो लड़के ने धैर्य व शांत स्वभाव से बताया, कि यह मेरेे खेत में लावारिस हालात मेें मिला था, मुझे इस दया आ गयी थी। इसलिये इस हिरण को घर लेके जा रहा हूँ। ओर समय समय पर हिरण की देखभाल करूंगा। क्योंकि इसकी मां इसको छोड़ कर कहीं जगल में भटक गयी है, वो भी वापस मिल नहीं पायी है। अगर किसी श्वान के नजर में आ गया तो बेचारें को बेमौत मार देगें। इसी कारण से ही इस हिरणी के छोटे बच्चें को घर लेके जा रहा हूँ।
फिर दो दिन के बाद श्री महावीर विश्नोई को हिरणी के छोटें बच्चें की वापस याद आ गयी। क्योंकि मूक प्राणी वन्यजीव का रूप भगवान से कम नहीं है, हिरण बहुत भोलो-भाला व डरकोप जीव होता है। उसे देखने की लालसा में उनके घर पर चले गये।
इन्होंने जाते ही हिरण को गोद में लिया ओर दुलाहरनें लग गये ओर हिरण को भी अच्छा महसूस होने लग गया। फिर दूध पिलाया ओर हिरण के साथ मस्ती करनी शुरू कर दी।
यह नजारा हिरण पालक को अच्छा लग गया ओर श्री महावीर विश्नोई को बोला कि आप इस बेजान मूक प्राणी हिरण को अपने घर लेके जाओं क्योंकि मेरे घर पालतु कुत्ता है, कहीं कभी हम बाहर चले गये तो पीछें हिरण को मार देगा। तो हजारों गुणा मुझे पाप लग जायेगा।
फिर वन्यजीव प्रेमी श्री महावीर विश्नोई इस हिरण को अपने घर पर लेके आ गये, ओर उस हिरण का नामकरण भी कर दिया था। सब परिवार के लोग हिरण को "सीटू" नाम से पुकारने लग गये। फिर धीरे धीरे हिरण पालतु हो गया। इंसान की आवाज समझने लग गया, घर में एक संतान की तरह विचरण करने लग गया।
"सीटू हिरण" हिरण 4 साल तक इनके घर में रहा था। सन 2017 में खराब मौसम के कारण या किसी अन्य कारण से अचानक "सीटू हिरण" की मौत हो गयी थी।
स्व• "सीटू हिरण" का मिट्टी संस्कार (दफ़नाया) विश्नोई समाज की रिति रिवाज के अनुसार किया गया। काफी दिनों तक परिवार के सदस्यों सहित हमनें बहुत "सीटू हिरण" की याद आयी थी।
उसके बाद जब कभी भी जहाँ भी वन्यजीव घायल होने की जानकारी मिलती थी, वहाँ दौड़कर चले जाता था। और चाहे हिरणी का मासूम बच्चा हो या बड़ा सभी को घर लाते है। फिर धीरे धीरे दोस्तों के साथ अन्य जीव प्रेमियो का साथ मिलता रहा। जीव रक्षा में विश्नोई समाज ही नहीं बल्कि अन्य अन्य समाज के लोग भी वन्यजीव प्रेमी श्री महावीर विश्नोई से जुड़ने लग गये।
पहले अन्य समाज के लोग घायल वन्यजीवों को हाथ लगाने से बहुत डरते थे, कि कहीं हम फंस न जाये।
लेकिन श्री महावीर विश्नोई द्वारा विश्वास व भरोसा दिलाने के बाद वर्तमान में अन्य समाज के हज़ारों वन्यजीव प्रेमी साथ है, ओर सहयोग दे रहे हैं, सर्व धर्म के लोग इस पुनीत कार्य में जुड़ गये है। और बिना हिचक घायलो को अपने घर पर लाते है, फिर प्राथमिक उपचार के बाद तुरन्त इनको सुचना देते है। अभी जीव रक्षा का दायरा बढ़ता चला गया है।
वर्तमान में हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर जिले सहित मेरे गाँव के नजदीक आस-पास के पड़ोसी काफी इलाकों से इनके साथ जुड़ चुके है। लगभग अन्य समाज के लोग घायल वन्यजीवों को इनके पास लेके आते हैं, फिर इनके पास ही छोड़कर चले जाते है।
अगर किसी व्यक्ति के पास घायल वन्यजीव को श्री महावीर विश्नोई तक लाने के लिए असंभव है, तो सूचना देते हैं, तो तुरन्त अपना पर्सनल निजी वाहन लेके जाते हैं। अपने वाहन से घायल वन्यजीवों को लाया जाते भी है।
वन्यजीव प्रेमीयों की सक्रियता को देखते हुए निष्क्रिय पड़ा वन विभाग भी वर्तमान में इनके साथ मिल कर जोश से वन्यजीवों को बचाने में लगे हुए हैं।
पांच सालों से घर पर ही निजी रेस्क्यू सेंटर संचालित करते हैं -
श्री महावीर विश्नोई ने बताया कि पिछले 5 सालो से घर पर ही रेस्क्यू सेंटर का संचालन निजी तौर पर किया जा रहा है। सेंटर पर हर साल करीबन सैंकड़ो की संख्या में घायल या बेसहारा बच्चों को लाया जाता है और इलाज व सेवा की जाती है। जो हिरण जल्द स्वस्थ या बड़ें होने पर सुरक्षित स्थानों पर छोड़ दिया जाता है, जहां हिरणों का झुंड होता है। वहां छोड़कर वापस आ जाते हैं।
लगभग ज्यादा घायल बच्चें की मौके पर या रेस्क्यू सेंटर में मौत हो जाती है, तो उन्हे विश्नोई समाज की रीति रिवाज अनुसार मिट्टी संस्कार (दफ़नाया) दिया जाता है।
इनकी धर्मपत्नी अपने थन से छोटे हिरणों को पिलाती है, दूध -
वन्यजीव प्रेमी श्री महावीर विश्नोई की धर्मपत्नी अपनी संतान की तरह हिरणी के छोटे छोटे बच्चों को अपने थन से दूध पिलाती है। ओर अपने सरकारी कार्य से छुट्टी होने के बाद इन घायल हिरणों की देखरेख व सेवा करती है। समय समय पर दवाईं व इंजेक्शन लगाना ओर पालन पोषण करना। इनका यह विशेष कार्य रहता है।
संक्षिप्त परिचय आदरणीय श्री महावीर विश्नोई सुपुत्र श्री हेतराम सींवर विश्नोई, गाँव - थिराजवाला, तहसील - पीलीबंगा, जिला - हनुमानगढ़ (राजस्थान) के रहने वाले है।
इनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुनीता विश्नोई पंचायत सहायक के पद पर कार्यरत है।
धन्यवाद पत्र - विश्नोई महासभा सहित समाज की हर संस्थान जैसे सामाजिक, धार्मिक, पर्यावरण संरक्षण, जीव रक्षा ओर वन विभाग टीम को ऐसे महान वन्यजीव प्रेमी को सम्मानित अवश्य करना चाहिए। क्योंकि पाँच साल से निस्वार्थ भाव से सर्वोपरि एवं सर्वश्रेष्ठ कार्य से जुड़े हुए हैं, अनबोल मूक प्राणी वन्यजीवों की सेवा व उपचार कर रहे हैं। ऐसे महान वन्यजीव प्रेमी को कोटी कोटी नमन व धन्यवाद देते हैं।
(इनकी बदौलत से सैकड़ों वन्यजीवों की जान बची है।)
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