बिश्नोई समाज होली दहन नहीं करता है। इसके पीछे धार्मिक और पर्यावरणीय दोनों कारण हैं।

हाँ, बिश्नोई समाज होली दहन नहीं करता है। इसके पीछे धार्मिक और पर्यावरणीय दोनों कारण हैं।

कारण:

1. पर्यावरण संरक्षण:
बिश्नोई समाज प्रकृति और वन्यजीवों की रक्षा के लिए जाना जाता है। होली दहन में लकड़ियों का उपयोग होता है, जिससे पेड़ काटे जाते हैं, और बिश्नोई समाज वृक्षों की रक्षा को अपना धर्म मानता है।


2. गुरु जम्भेश्वर जी की शिक्षाएँ:
बिश्नोई समाज के प्रवर्तक गुरु जम्भेश्वर जी ने 29 नियम बताए, जिनमें प्रकृति और जीवों की रक्षा पर विशेष जोर दिया गया है। उनका मानना था कि पेड़ और जीव-जंतु भी भगवान की रचना हैं, इसलिए उनकी रक्षा करनी चाहिए।


3. किसी भी जीव को कष्ट न देना:
बिश्नोई समाज अहिंसा का पालन करता है और किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुँचाने की शिक्षा देता है। होली दहन में आग जलाने से छोटे जीव-जंतु मर सकते हैं, इसलिए वे इससे दूर रहते हैं।



बिश्नोई समाज होली कैसे मनाता है?

हवन यज्ञ एव पाहाल बनाकर होली की शुरुआत करते है। होली के दिन रंग-गुलाल से खुशियाँ मनाते हैं, लेकिन लकड़ी जलाकर होली दहन नहीं करते। 

पर्यावरण संरक्षण के लिए पौधे लगाते हैं और वृक्षों की देखभाल करते हैं।

समाज में आपसी भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा देने के लिए मिल-जुलकर होली खेलते हैं।


बिश्नोई समाज का यह कदम पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाता है।

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