विधायक बचाने के लिए बंदूक रखते थे भजनलाल:केंद्रीय मंत्री बने तो पत्नी को MLA बनवाया; मुस्लिम बनने पर बेटे को पार्टी से निकाला

साल 1977, इमरजेंसी के बाद केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री। ये आजादी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार थी। इसमें भारतीय जनसंघ, भारतीय लोकदल और कांग्रेस से अलग हुए दल शामिल थे। हालांकि, कुछ दिनों बाद ही जनता पार्टी के अलग-अलग धड़ों के बीच अनबन होने लगी। जनसंघ से आए सांसदों पर दबाव बनाया जाने लगा कि वे या तो जनता पार्टी छोड़ दें या RSS।

इधर, हरियाणा की जनता पार्टी सरकार में भी उथल-पुथल मची थी। मुख्यमंत्री देवीलाल के करीबी ही बगावत पर उतारू थे। इस बीच 19 अप्रैल 1979 को देवीलाल ने जनसंघ से आए मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया।

6 जून 1979, मुख्यमंत्री देवीलाल हिसार और सिरसा के दौरे पर थे। उन्हें खबर मिली कि उनके चार मंत्रियों ने बगावत कर दी है। इनमें एक डेयरी मंत्री भजनलाल बिश्नोई भी थे। देवीलाल ने फौरन विधायकों को बचाने की कवायद शुरू कर दी। उन्होंने सिरसा जिले के तेजाखेड़ा में अपने किलेनुमा घर में 42 विधायकों को बंद कर लिया। कहा जाता है कि देवीलाल बंदूक लेकर विधायकों की रखवाली कर रहे थे।

इधर, तख्तापलट के लिए भजनलाल के पास दो विधायक कम पड़ रहे थे। देवीलाल खेमे के दो विधायक तेजाखेड़ा से बाहर निकले। एक विधायक के घर शादी थी और दूसरे विधायक के चाचा बीमार थे। देवीलाल को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है। वे बिन बुलाए विधायक के घर शादी में पहुंच गए। देवीलाल ने देखा कि भजनलाल तो वहां पहले से मौजूद हैं।

दरअसल, तेजाखेड़ा में बंद विधायकों से मिलने उनकी पत्नियां और परिवार के लोग जाते थे। इनके जरिए ही भजनलाल अपना मैसेज इन विधायकों तक पहुंचाते थे। बाद में दोनों विधायक भजनलाल के खेमे में आ गए।

26 जून 1977, देवीलाल को बहुमत साबित करना था। उन्होंने संख्याबल जुटाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। एक दिन पहले ही देवीलाल ने इस्तीफा दे दिया। इस तरह भजनलाल तख्तापलट कर मुख्यमंत्री बन गए।

भजनलाल बिश्नोई तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। उनके बेटे चंद्र मोहन हुड्डा सरकार में डिप्टी CM रहे। अब भजनलाल की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है।

हरियाणा के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के दूसरे एपिसोड में पढ़िए भजनलाल कुनबे की कहानी… 6 अक्टूबर 1930, संयुक्त पंजाब के बहावलपुर में जन्मे भजनलाल का परिवार बंटवारे के बाद हरियाणा के आदमपुर में आकर बस गया। बहावलपुर अब पाकिस्तान का हिस्सा है। 1960 में पहली बार भजनलाल ने ग्राम पंचायत का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। यहां से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई। 1967 में सिद्धवनहल्ली निजलिंगप्पा कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उन्होंने भजनलाल को फतेहाबाद से विधानसभा चुनाव लड़ने का ऑफर दिया, लेकिन वे आदमपुर सीट से ही टिकट चाहते थे।

इसी कश्मकश में आदमपुर के विधायक हरि सिंह डाबड़ा ने कांग्रेस छोड़ दी। भजनलाल का रास्ता साफ हो गया। 1968 में भजनलाल आदमपुर सीट से पहली बार विधायक बने। दो साल बाद यानी, 1970 में मुख्यमंत्री बंसीलाल ने भजनलाल को कृषि मंत्री बनाया।

इसके बाद 1972 में दोबारा विधायक चुने जाने के बाद भजनलाल फिर कृषि मंत्री बने।

बंसीलाल ने भजनलाल को विधानसभा में विधायकों की निगरानी करने का जिम्मा सौंपा था। अगर कोई विधायक दूसरे खेमे में जाने की सोचता तो भजनलाल उसे रोकने का काम करते थे। कहा जाता है कि भजनलाल उस वक्त MLA हॉस्टल में दोनाली बंदूक कंधे पर टांगकर घूमा करते थे।

इंदिरा गांधी को गेहूं की किस्में बताकर खास बने भजनलाल

भजनलाल परिवार से जुड़े कृष्णलाल काकड़ बताते हैं, ‘1970 की बात है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, चौधरी बंसीलाल और भजनलाल के साथ हरियाणा के दौरे पर थीं। रास्ते में इंदिरा गांधी गेहूं का खेत देखकर रुकीं और पूछा कि यह कौन सी किस्म है। चार एकड़ जमीन पर लगी गेहूं की फसल में एक एकड़ फसल अलग क्यों दिख रही?

बंसीलाल ने कहा कि बहनजी मैं बाजरा वाला हूं। हमारे यहां बाजरा उगाया जाता है। गेहूं के बारे में मुझे नहीं मालूम।

भजनलाल ने बताया कि जमींदार ने 3 एकड़ गेहूं बेचने के लिए बोया है और एक एकड़ में परिवार के लिए देसी गेहूं लगाया है। इसी बीच किसान इकट्ठा हो गए। इंदिरा ने किसानों से पूछा तो वही बात सामने आई, जो भजनलाल ने बताई थी। इस घटना के बाद से भजनलाल का कद और बढ़ गया।'

1980 के दशक की तस्वीर। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भजनलाल।
1980 के दशक की तस्वीर। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भजनलाल।

रातों-रात जनता पार्टी की सरकार को कांग्रेस सरकार में बदल दिया

1977 में बुरी तरह हारने वालीं इंदिरा गांधी ने 1980 के लोकसभा चुनाव में जोरदार वापसी की। कांग्रेस को 529 में से 343 सीटें मिलीं। चौधरी चरण सिंह की जनता पार्टी 41 सीटों पर सिमट गई।

तब हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार थी और भजनलाल बिश्नोई मुख्यमंत्री। केंद्र में सत्ता बदलते ही भजनलाल को एहसास हो गया कि अब उनकी सरकार भी खतरे में है। उन्हें डर था कि इंदिरा गांधी गैर-कांग्रेसी सरकारों को बर्खास्त करेंगी, क्योंकि इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी सरकार ने भी कई राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बर्खास्त की थीं।

हरियाणा कैडर के IAS ऑफिसर रहे राम वर्मा अपनी किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं, ‘20 जनवरी 1980 को चौधरी भजनलाल फूलों का गुलदस्ता लेकर इंदिरा गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे। मुलाकात के दौरान इंदिरा ने कहा- ‘भजनलाल जी, आप अपने घर में वापसी कर लीजिए, लेकिन मेजॉरिटी लेकर आना, वर्ना मैं आपका राज कायम नहीं रख पाऊंगी। मुझे हरियाणा असेंबली भंग करनी पड़ेगी।’

ठीक दो दिन बाद यानी, 22 जनवरी 1980 को भजनलाल ने इंदिरा गांधी के सामने बहुमत पेश कर दिया। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार था जब रातों-रात एक पार्टी की पूरी कैबिनेट दूसरी पार्टी की सरकार में बदल गई।

राम वर्मा लिखते हैं, ‘उस दौरान चौधरी भजनलाल एक बड़े सूटकेस के साथ संजय गांधी से मिले थे। भजनलाल से कहा गया था कि यह सूटकेस मेनका गांधी की मां के घर पहुंचाना है। बाद में भजनलाल ने अपने किसी आदमी से कहा कि मुझे मालूम नहीं था कि नेहरू परिवार में पैसा भी चलता है, वर्ना मैं कब का राजपाट ले लेता।’

22 जनवरी 1980 को दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भजनलाल।
22 जनवरी 1980 को दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भजनलाल।

जलेबी के लिए भजनलाल से नाराज हो गए राजीव गांधी

चौधरी भजनलाल के मित्र रामरिध काकड़ के बेटे कृष्णलाल काकड़ एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं, ‘23 मई 1985 को दोपहर का वक्त था। सिरसा का सर्किट हाउस नेताओं से खचाखच भरा था। हेलिकॉप्टर कहां उतरेगा, गाड़ी कहां पार्क होगी, कोई सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी, तो कोई लंच के इंतजाम में व्यस्त था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी कुछ ही देर में वहां पहुंचने वाले थे।

दूसरी तरफ डिप्टी कमिश्नर यानी, जिलाधिकारी ईश्वर दयाल स्वामी के पर्सनल असिस्टेंट आदमपुर बाजार में भूरा हलवाई की दुकान पर पहुंचे। उन्होंने हलवाई से जलेबी पैक करने को कहा तो हलवाई ने जवाब दिया, अरे साहब! जलेबी से ज्यादा स्वाद तो बर्फी में है। आप बर्फी ले जाओ। हलवाई की बात मानकर वे बर्फी ले आए।

इधर, राजीव गांधी सर्किट हाउस पहुंच चुके थे। लंच के समय CM भजनलाल और राजीव गांधी खाना खाने बैठे। राजीव गांधी ने कहा, जलेबी कहां है। भजनलाल ने डिब्बा खोला, तो जलेबी की जगह बर्फी निकली। राजीव गांधी ने कहा, मुझे तो जलेबी खानी थी। इसके बाद हंगामा मच गया।

भजनलाल ने आदमपुर से जलेबी लाने के लिए काफिला भेजा, लेकिन राजीव गांधी चले गए। भजनलाल गुस्से में लाल थे और उन्होंने डिप्टी कमिश्नर का तबादला कर दिया। 1999 में इन्हीं ईश्वर दयाल स्वामी ने​​​​​ भजनलाल को करनाल लोकसभा सीट से हराया।

जनवरी 1989, दिल्ली के विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम के दौरान राजीव गांधी के साथ भजनलाल।
जनवरी 1989, दिल्ली के विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम के दौरान राजीव गांधी के साथ भजनलाल।

भजनलाल केंद्र में गए, तो पत्नी को अपनी पारंपरिक सीट से उतारा

1986 में राजीव गांधी ने भजनलाल को केंद्र में बुला लिया। उन्हें पर्यावरण और वन मंत्रालय का जिम्मा दिया गया, लेकिन वे आदमपुर सीट परिवार के लिए सुरक्षित रखना चाहते थे।

उन्होंने पत्नी जसमा देवी को 1987 में विधानसभा चुनाव लड़वाया। जनता ने बिश्नोई परिवार पर भरोसा जताते हुए जसमा देवी को विधायक के रूप में चुन लिया। इस तरह आदमपुर सीट पर बिश्नोई परिवार का राज कायम हुआ, जो आज भी बरकरार है।

पत्नी जसमा देवी के साथ भजनलाल बिश्नोई। ये भजनलाल के युवा दिनों की तस्वीर है।
पत्नी जसमा देवी के साथ भजनलाल बिश्नोई। ये भजनलाल के युवा दिनों की तस्वीर है।

बेटे ने इस्लाम कबूला तो भजनलाल ने संपत्ति से बेदखल किया

भजनलाल को दो बेटे और एक बेटी हुई। बड़ा बेटा चंद्रमोहन, छोटा बेटा कुलदीप और बेटी रोशनी। 1993 में एक विधायक पुरुषभान के निधन के बाद पंचकूला जिले की कालका सीट खाली हो गई। इस सीट पर उपचुनाव जीतकर चंद्रमोहन ने राजनीतिक पारी शुरू की।

2008 की बात है। भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन उस समय हरियाणा के डिप्टी CM थे। इसी दौरान चंद्रमोहन और अनुराधा बाली का अफेयर सामने आया। अनुराधा एक नामी वकील थीं और हरियाणा की असिस्टेंट एडवोकेट जनरल रह चुकी थीं। दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन चंद्रमोहन शादीशुदा थे। जबकि, अनुराधा का उनके पति से तलाक हो चुका था।

7 दिसंबर 2008, चंद्रमोहन और अनुराधा दोनों मीडिया के सामने आए। चंद्रमोहन अब चांद मोहम्मद बन चुके थे तो अनुराधा बाली ने नाम फिजा हो चुका था। दोनों ने इस्लाम कबूल करके शादी कर ली थी। काफी दिनों तक दोनों की प्रेम कहानी मीडिया में चर्चा बनी रही।

भजनलाल इससे बहुत नाराज हुए और बेटे चंद्रमोहन को अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया। उन्होंने चंद्रमोहन के हिस्से की संपत्ति उनकी पहली पत्नी और बच्चों के नाम कर दी। शुरुआत में तो चंद्रमोहन को इससे खास फर्क नहीं पड़ा। दोनों मीडिया के सामने आते रहे और अपने प्रेम का इजहार करते रहे, लेकिन बाद में चंद्रमोहन पर दबाव बढ़ने लगा।

29 जनवरी 2009 को फिजा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। उसने आरोप लगाया गया कि उसके रिश्तेदार कुलदीप बिश्नोई ने चांद का अपहरण कर लिया है। जब चांद को इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में पता चला तो उन्होंने तुरंत एक बयान जारी किया। चांद ने कहा कि वह लंदन में हैं। उसे अपनी पहली पत्नी सीमा और बच्चों की याद आ रही थी। 14 मार्च 2009 को चांद ने लंदन से फिजा को फोन किया और तीन बार ‘तलाक, तलाक, तलाक’ बोल दिया।

2012 में अनुराधा उर्फ फिजा की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। वे अपने कमरे में मृत पाई गई थीं। उन दिनों छपी खबरों के मुताबिक ​​फिजा को जब पुलिस ने पाया तो उसकी मौत को कई दिन हो चुके थे। वह दो तकियों के सहारे सिर टिकाए पड़ी थी, उसका शरीर काला पड़ चुका था। उसके चारों ओर ब्लेंडर प्राइड की एक बोतल, सिगरेट का एक पैकेट और पकौड़ों की एक प्लेट फर्श पर बिखरी हुई थी।

16 दिसंबर 2008, जगह- दिल्ली का प्रेस क्लब। चंद्रमोहन अपनी पत्नी अनुराधा बाली के साथ। 2012 में अनुराधा की मौत हो गई।
16 दिसंबर 2008, जगह- दिल्ली का प्रेस क्लब। चंद्रमोहन अपनी पत्नी अनुराधा बाली के साथ। 2012 में अनुराधा की मौत हो गई।

कुलदीप को विधायक बनाने के लिए आडवाणी को फोन किया

भजनलाल छोटे बेटे को भी राजनीति में लेकर आए। 1998 की बात है। आदमपुर में एक बड़ी रैली की तैयारी चल रही थी। भजनलाल ने छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई को राजनीति में उतारने के लिए रैली रखी थी।

मंच से भजनलाल बोले, 'अगर किसी को आदमपुर सीट पर दावा जताना है, तो बता दो। मैं योग्यता के हिसाब से टिकट दिला दूंगा।'

लोग खामोश रहे। इसके बाद भजनलाल ने कहा- नहीं तो मैं कुलदीप को तैयार करता हूं। इसके बाद आवाज आई- हां! कुलदीप को बना दो।

उस समय केंद्र में NDA सरकार थी और हरियाणा में भाजपा के सहयोग से बंसीलाल मुख्यमंत्री थे। भजनलाल और बंसीलाल में राजनीतिक दुश्मनी थी। इस वजह से बंसीलाल के बेटे चौधरी सुरेंद्र सिंह ने आदमपुर उपचुनाव में कुलदीप के लिए अड़ंगा लगाना शुरू कर दिया।

कुलदीप के लिए मुश्किलें बढ़ती देख भजनलाल ने लालकृष्ण आडवाणी को फोन किया और सुरेंद्र सिंह पर लगाम कसने के लिए कहा। इसके बाद कुलदीप बिश्नोई आदमपुर सीट से चुनाव जीत गए। साल भर बाद ही भाजपा ने बंसीलाल सरकार से समर्थन वापस ले लिया।

साल 1999, ये तस्वीर भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप के शादी समारोह की है। बेटे और बहू के साथ भजनलाल भी हैं।
साल 1999, ये तस्वीर भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप के शादी समारोह की है। बेटे और बहू के साथ भजनलाल भी हैं।

जमीन विवाद में कांग्रेस से निकाले गए तो नई पार्टी बनाई

2005 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला। भजनलाल मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन हरियाणा की कमान मिली भूपेंद्र सिंह हुड्डा को। इससे भजनलाल और हुड्डा में तकरार हो गई।

कांग्रेस आलाकमान ने भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई को डिप्टी CM बनाया। आलाकमान को लगा कि इससे भजनलाल और भूपेंद्र सिंह के बीच तकरार खत्म हो जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

एक साल बाद यानी, 2006 में भजनलाल ने छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ मिलकर भूपेंद्र हुड्डा का विरोध शुरू कर दिया। इसकी वजह थी स्पेशल इकोनॉमिक जोन यानी, SEZ की जमीनें। दरअसल, हुड्डा सरकार ने SEZ जमीनें रिलायंस ग्रुप को बेची थीं। इसे लेकर भजनलाल ने हुड्डा के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया।

इसके बाद हुड्डा ने दोनों को कांग्रेस से निकाल दिया। जबकि भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन डिप्टी CM बने रहे।

2 दिसंबर 2007 को हरियाणा की राजनीति में नया मोड़ आया। कांग्रेस से निकाले जाने के बाद कुलदीप ने रोहतक में ट्रैक्टर रैली की। इसमें लाखों की संख्या में भीड़ इकट्ठा हुई। हुड्डा के मुख्यमंत्री होते हुए उनके राजनीतिक गढ़ रोहतक में इतनी बड़ी रैली करना मामूली बात नहीं थी। इसी रैली में एक नई पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस यानी, हजकां का गठन हुआ।

2 दिसंबर 2007, रोहतक में रैली के दौरान भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई।
2 दिसंबर 2007, रोहतक में रैली के दौरान भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई।

हिसार सीट से आखिरी बार सांसद बने भजनलाल

2009 में चौधरी भजनलाल ने अपनी पार्टी हजकां से हिसार सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ा। ये उनका आखिरी चुनाव था। उन्होंने संपत सिंह को 6 हजार वोटों से हराया। 2009 में ही हरियाणा विधानसभा चुनाव हुए। तब तक चंद्रमोहन भी कांग्रेस और अपनी दूसरी पत्नी फिजा (अनुराधा बाली) को छोड़कर पिता की पार्टी में आ गए थे। चंद्रमोहन ने दोबारा हिंदू धर्म अपना लिया था। हालांकि, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।

कांग्रेस ने 90 विधानसभा सीटों में से 40 और इनेलो ने 31 पर जीत दर्ज की। वहीं, 6 सीटें जीतकर हरियाणा जनहित पार्टी किंगमेकर बनकर उभरी, लेकिन भूपेंद्र हुड्‌डा ने रातों-रात इसके 5 विधायक तोड़ लिए और सरकार बना ली। इससे भजनलाल को काफी धक्का लगा।

3 जून 2011 को भजनलाल का निधन हो गया। पिता की मौत के बाद कुलदीप बिश्नोई ने पिता की राजनीतिक विरासत आगे बढ़ाई।

बड़ा बेटा कांग्रेस में और छोटा बेटा ‌BJP में

​​​​​​​2016 में कुलदीप ने हरियाणा जनहित कांग्रेस का विलय कांग्रेस में कर दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुलदीप ने हिसार लोकसभा सीट से बेटे भव्य बिश्नोई को टिकट दिलवाया, लेकिन वे बुरी तरह चुनाव हार गए और तीसरे नंबर पर रहे।

भाजपा के चौधरी बृजेंद्र सिंह ने उन्हें करीब 4.19 लाख वोटों से हराया था। यह पहला मौका था जब आदमपुर के लोगों ने बिश्नोई परिवार से अलग किसी को वोट दिया था। ये कुलदीप बिश्नोई की राजनीति को तगड़ा झटका था।

इस हार के बाद कुलदीप बिश्नोई को लगने लगा कि भाजपा ही आने वाले चुनावों में उनके बेटे को चुनाव जिताएगी। अगस्त 2022 में कुलदीप, पत्नी और बेटे के साथ भाजपा में शामिल हो गए। हालिया विधानसभा चुनाव में पार्टी ने भव्य बिश्नोई को आदमपुर सीट से टिकट दिया है, जबकि चंद्रमोहन आज भी कांग्रेस में बने हुए हैं।

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