एक बार फिर मांगी माफी देवेंद्र बुङिया ने, बिश्नोई संत व समाज से, सुबह होंगे पैदल जाम्भोलाव रवाना

कलम देवेंद्र बुङिया अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा अध्यक्ष 
निवन प्रणाम

पिछले दिनो से विश्नोई महासभा के पत्र में भाषा और शब्दो के चयन को लेकर जो आक्रोश वक्त हुआ उससे मैं आहत हुआ हू। क्योंकि मैंने कभी समाज के लिए गलत काम नहीं किया और न समाज के लिए गलत सोचा है फिर भी इस व्यथित दशा को देखकर अंतरात्मा की आवाज  है कि  अपने समाज की पवित्र पीठ जांबा का दर्शन करके स्वयं को संत चरणो की रज में समाहित कर दू, मेरी भावना उसमे समा जाए।

मैं देवेंद्र बुड़ीया को हर एक विश्नोई के बेटे के आगे झुका दू, परंतु अपने समाज की राष्ट्रीय महासभा को झुका नही सकता, क्योंकि वह महासभा आप सबका सामूहिक योग का नाम है, उसमे आप भी उतने ही हिस्सेदार हो, जितना मैं, महासभा मे केवल मेरा एकाधिकार नहीं है।इतर समाज में अपनी गिनती एक महासभा की इकाई के रुप में होती है।

आज मैं अध्यक्ष हूं  कल आप में से कोई और नेतृत्व करेगा, पहले कोई और करता था, इसलिए मुझे पद का कोई अहंकार नहीं है।
मुझे उस समाज का छोटा सा हिस्सा होने पर गर्व होता है जिनकी आचार संहिता के 29नियम में क्षमा, दया को प्रमुखता दी गई है, क्षमा के बिना हम विश्नोई नही कहला सकते, यह सिर्फ एक ही धर्म में है और वो है अपना धर्म।
मुझे पद का कोई मोह नहीं है केवल एक जुनून है कि जीते जी विश्नोई समाज को महासभा के माध्यम से ऊंचाई प्रदान करू, मै मेरा सर्वस्व न्यौछावर करने को आतुर हू, समर्पित हू। मेरे शेष जीवन का  कण कण विश्नोई समाज को अर्पित करता हूं।

मैं गलत हूं या सही हू ,दोनो ही स्थिति  में समाज का अंश हूं, आप सबका मेरे पर पूर्ण अधिकार है।
मेरा आपसे निवेदन है कि मेरे साथ मिलकर जांबा धाम चले,
हम समाज के लिए बहुत कुछ अच्छा करेगे, दुनियां के समाज एक हो रहें हैं, हमे उनसे प्रेरणा लेनी है,
मैं खेजड़ी के लिए बलिदान देने वाली माटी का अंश हू, अतः समाज के लिए स्वाह होने की भावना तो जन्म से निहित है और रहेगी, और समाज के लिए कुछ करने की चाहत ने मेरी नींद उड़ा रखी और मैं ठेकेदारी से महासभा के बैनर के नाम आपके बीच में आ गया, अब मेरा आदि और अंत संत वंदना है, स्वार्थ की बात कहो तो केवल इतनी है कि महासभा का गौरव बचा रहे,  
मेरा समाज के बुद्धिजीवी वर्ग और युवाओं से विनम्र आग्रह है कि हम छोटी मोटी बात को भूलकर संगठित रहे। इस ऊर्जा का नशा मुक्ति और समाज के सकारात्मक विकास में दान दे।

मैं यह सुनकर भावुक हो गया है कि समाज मुझ से भी इतनी अधिक चाहत रखता है इसी भाव में समाज के भाव है कि हमे महासभा से बहुत अपेक्षा है और महासभा खुद विवाद का हिस्सा बन जाएगा, तो समाज का क्या होगा, हमारा समाज विश्नोई महासभा के आदरणीय सरक्षक जी से और मुझ से अपेक्षाओ के कारण हमे भुला बुरा कह रहे है, वे चाहते हैं कि आप से उम्मीद है कि कुछ और सकारात्मक करे। और आपने उल्टे आहत कर दिया, *यह सुनकर द्रवित हो जाता हूं, कि मेरा समाज गलत उतर के लिए जीरो नंबर भी देता है और अच्छे काम के लिए 10में से 10 नंबर देने में भी कंजूसी नहीं करता।

मैं आपकी भावनाओं, उम्मीदों और आशाओं पर खरा उतरने का भरोसा दिलाता हूं।
आप के बिना मैं शून्य हू, और हम सबके के बिना हमारा समाज अधूरा रह जाएगा, इस प्रतिस्पर्धी युग में एक रहना, संगठित रहना भी जरूरी है और संगठित दिखना भी जरूरी है।

 
देवेंद्र  बुड़िया 
राष्ट्रीय अध्यक्ष 
अखिल भारतीय विश्नोई महासभा

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