राजस्थान बिश्नोई समाचार जोधपुर राजस्थान की बेटी डॉ. मिलन बिश्नोई ने 12 वें विश्व हिंदी सम्मेलन फ़िजी में ‘भारतीय ज्ञान परम्परा की धरोहर:गुरु जांभोजी की सबदवाणी में पर्यावरण-चिंतन’ विषय पर शोध-पत्र प्रस्तुत किया
डॉ. मिलन बिश्नोई को अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा, राजस्थान ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर 12 वां विश्व हिंदी सम्मेलन,फ़िजी में भेजा गया । देवेन्द्र बुड़िया ने प्रधान का कार्यकाल संभालने के पश्चात शिक्षा, समाज और संस्कृति तीनों को विश्वस्तर पर पहचान दिलाने के लिए नित-नये प्रयास किए है । उन्होंने दुबई में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिखर सम्मेलन का सफल आयोजन करने के पश्चात भारत की प्रथम बिश्नोई बेटी डॉ. मिलन बिश्नोई को जांभाणी साहित्यिक प्रचार हेतु 12 वें विश्व हिंदी सम्मेलन महासभा की ओर से भेजा गया । बिश्नोई नारी शक्ति को विश्वस्तर पर पहुँचाने के लिए यह महासभा की ओर से सबसे बड़ा पहला कदम उठाया गया है । जो 21 वीं सदी में अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा अपने समाज की बेटियों के लिए सराहनीय योगदान दे रही हैं ।
12 वां विश्व हिंदी सम्मेलन विदेश मंत्रालय भारत सरकार और फ़िजी सरकार के द्वारा प्रशान्त महासागर के फ़िजी के नांदी में 15 से 17 फरवरी 2023 में आयोजित किया गया । कार्यक्रम का शुभारंभ भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर, फिज़ी के राष्ट्रपति रातू विल्यम मैवलीली काटोनिवेरे ने किया । इसके गृहराज्य मंत्री श्री अजय कुमार मिश्र, राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन तथा फ़िजी के राष्ट्रपति, उपप्रधानमंत्री सहित लगभग तीस देशों के प्रतिनिधि मौजूद तथा 1000 हजार से अधिक प्रतिभागी उपस्थित रहे ।
इस सम्मेलन का मुख्य विषय- पारम्परिक ज्ञान से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस थी । इस थीम के अनुरूप डॉ. बिश्नोई ने “भारतीय ज्ञान परम्परा की धरोहर : गुरु जांभोजी की सबदवाणी में पर्यावरण –चिंतन” विषय पर शोध पेपर प्रस्तुत किया । इन्होंने बताया कि भारतीय ज्ञान परम्परा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना के साथ ‘सर्वेभवन्तु सुखीन्’ की बात करती है और इन पंक्तियों का चरितार्थ करने के लिए हमें मन और मस्तिष्क की आंतरिक यात्रा करने की आवश्यकता है । भारतीय संत परम्परा को यदि देखा जाए तो उन्होंने समूचे विश्व में मानवकल्याण को ध्यान में रखते हुए आंतरिक तत्व-चिंतन पर विशेष जोर दिया है । यदि उत्तर भारत की संत परम्परा में गुरु जांभोजी की ‘सबदवाणी’ को पढ़ा समझा जाए ज्ञान परम्परा को उजागर करने वाला सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक ग्रंथ है। क्योंकि जांभोजी की सबदवाणी केवल उपदेशात्मक नहीं है बल्कि समाज को मानव कल्याण, पर्यावरण संरक्षण तथा वन्यजीवों का संरक्षण और भाषा व संस्कृति संरक्षण करने का काम करती है । यदि आधुनिक संदर्भ में कृत्रिम मेधा के साथ तारतम्यता स्थापित करके देखा जाए तो गुरुदेव जांभोजी ने 550 साल पहले पर्यावरण की चिंता करते हुए 29 नियमों की स्थापना की थी । अर्थात् भारतीय परम्परा बड़ी सुंदर और सुलझी हुई तथा प्रगाढ़ है इसे संपूर्ण विश्व जानता है। हमारे यहां पेड़ों के लिए मां अमृतादेवी के दो बेटियों सहित 363 बिश्नोईयों ने बलिदान दिया गया है ।आज भी बिश्नोई समाज पर्यावरण के प्रति अत्यंत सजग है और आवश्यकता पड़ने पर अपना बलिदान करने से पीछे नहीं हटता । अंत में बिश्नोई ने यह भी कहा कि ज्ञान परम्परा के माध्यम से यदि आगे बढ़ने का प्रयास करें तो भाषा और संस्कृति का अस्तित्व बनाएं रखना अत्यंत आवश्यक है। भाषा को केवल अभिव्यक्ति का माध्यम न समझे क्योंकि भाषा राष्ट्र और संस्कृति का भी मार्ग प्रशस्त करती हैं । तो विश्व हिंदी सम्मेलनों में पहली बार ऐसा हुआ कि जिसमें ज्ञान-परम्परा के माध्यम से आधुनिकता की ओर बढ़ने सुअवसर दिया गया ।
इस 12 वें विश्व हिंदी सम्मेलन में डॉ. बिश्नोई के साथ उनके जीवनसाथी श्री अरविंद कुमार विश्नोई ने जांभाणी साहित्य अकादमी ओर से फ़िजी की हिंदी बोर्ड की अध्यक्षा रोहिनी कुमार को साहित्य भेंट करके वहाँ के पाठ्यक्रम में भारतीय माँ अमृतादेवी की बलिदान गाथा को जोड़ने की इच्छा जाहिर की तब रोहिनी ने इसे लागू करने का भरोसा दिलाया । तथा भारत सरकार के गृहराज्य मंत्री श्री अजयकुमार मिश्र को भी जांभाणी साहित्य भेंट किया गया।
डॉ. मिलन बिश्नोई वर्तमान में कर्नाटक के खाजा बंदानवाज विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत हैं । वे इससे पहले 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन,मॉरिशस में भी अपना शोध पत्र प्रस्तुत कर चुकी थी । तो लगातार दूसरी बार विश्व हिंदी सम्मेलनों में भाग लेने वाली प्रथम बिश्नोई समाज की बेटी है । पारिवारिक दृष्टिकोण से अध्यापक की बेटी की शिक्षा प्रारम्भिक शिक्षा सरकारी स्कूल और स्नात्तक की शिक्षा दुरस्थ शिक्षा के माध्यम से हुई । शादी के पश्चात मिलन बिश्नोई को देश के शीर्षस्थ विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला । आज मिलन बिश्नोई समाज की बेटी दक्षिण भारत के सुदूर प्रांत तमिलनाडु,तेलगांना व कर्नाटक में एक जानी-मानी साहित्कार व शोधार्थी और अध्येता के रूप में जानी जाती है । मिलन बिश्नोई ने विश्वस्तर पहुंचने का श्रेय उनके पिता श्री जगराम बिश्नोई, जीवनसाथी श्री अरविंद कुमार विश्नोई,ससुर लादूरामजी बिश्नोई और अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के प्रधान देवेन्द्र जी बुड़िया साहब को दिया हैं । उन्होंने बताया कि मुझ जैसी ग्रामीण प्रांत और जालोर की सबसे कम साक्षरता दर वाली बेटी यदि विश्वस्तर पर गुरुदेव जंभेश्वर व बिश्नोई संस्कृति का प्रचार करने जा सकती है तो मैं मानती हूँ कि आने वाले समय हमारी बहने बहुत आगे जाएगी ।
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