धन्य है वे लोग जिनका जीवन धर्म के रंग में रंग चुका - डॉ गोवर्धनराम

                   पत्रकार श्रीराम ढाका 
राजस्थान बिश्नोई समाचार बाङमेर धोरीमन्ना संगति के परिणाम स्वरूप रंग आता है और यह रंग दो प्रकार के वेदमय भगवान श्री जाम्भोजी की वाणी में कहें गये है एक है दुनिया और दूसरा है धर्म का रंग उक्त विचार आचार्य संत डाॅ. गोवर्धनराम शिक्षा शास्त्री ने विराट जाम्भाणी हरिकथा ज्ञान यज्ञ के दौरान श्री जम्भेश्वर मन्दिर जालबेरी के परिसर में कथा के तीसरे दिन प्रकट किये।
जालबेरी के हरीकथा के तीसरे दिन उमड़ी भक्तो को भीड़

आचार्य ने कहा कि दुनिया के रंग में चराचर जगत रंगा हुआ है। आदर्श के योग उन्हीं का जीवन है जिसका जीवन धर्म के रंग में रंग चुका हैं। यह एक ऐसा रंग है जो युक्ति के साथ मुक्ति को प्रधान करने वाला है। भगवान श्री कृष्ण गीता में स्पष्ट उद्घोष कर रहे है कि जहां धर्म है, वहां मैं हूॅं और जहां मैं हूॅं वहां विजय है। अब निर्णय आपको करना है हार के पक्ष में रहना अथवा विजय के पक्ष में, यह निर्णय आपको करना है। 

उन्होंने धर्म की परिभाषा करते हुए कहा कि धर्म अर्थात् वो नियम जिनकी पालना करने से इस लोक व परलोक दोनों में जीवन का भला हो। नियमों की पालना का नाम ही धर्म की पालना हैं। जाम्भोजी ने जीवन जीने की युक्ति प्रदान की। उनके द्वारा आचार संहिता में तीन प्रकार की बातें कही गयी हैं। नित्य कर्म, नैमितिक कर्म और निषेधात्मक कर्म के रूप में। प्रातःकाल उठने से लेकर सांयकाल सोने पर्यन्त जिन नियमों की पालना आवश्यक कही गयी है, ऐसे नियमों का नाम है नित्यकर्म। नैमितिक अर्थात् नियमित करने पर जो नियम लागू होते है उनका नाम है नैमितिक कर्म। निषेधात्मक अर्थात् जो निषेध किया है ये-ये तुम्हें किसी भी परिस्थिति में नहीं करना है ऐसे नियमों की पालना का नाम ही निषेधात्मक कर्म है। 
मानव जीवन के दोनों पक्ष चाहे व्यवहार पक्ष हो अथवा अध्यात्म पक्ष दोनों में जीवन का भला हो ऐसा, हमारा जीवन हो उसी के लिए 29 नियमों की आचार संहिता जीवन जीने की आधार बनाई गयी है। समग्र जीवन का हित हो, प्राणी मात्र कल्याण हो, आदर्श जीवन जीने की कला सिखायी गई है। 

मानव जीवन में आने वाले त्रितापों की निवृति व परमानन्द की प्राप्ति का एकमात्र साधन है और वह धर्म 29 नियमों की सम्यक्ता परिपालना के द्वारा दैहिक, देविक, भौतिक पापों की निवृति संभव है। अतः मानव मात्र को धर्म की राह का राही बनना चाहिए। क्योंकि एक आप ही दुनिया के लिए आदर्श बनने वाले है, आप से प्ररेणा लेगें। आप पथ प्रदर्शक बनेगें। ये चमत्कार है धर्म तत्व का, सदाचार का, एक आदर्श जीवन जीने का यही सही सटीक ग्राहय तरीका है।
इस अवसर पर जालबेरी, राणासर, रोहिला, सोनडी, भूनिया, बोलो का ढेर, कोजा, गडरा, भलीसर सहित आसपास के गांवों के सैंकड़ों की संख्या में बिश्नोई समाज के नर नारी ने कथा श्रवण की

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