मोरबी पुल हादसा: शवों की तलाश में तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है एनके बिश्नोई

गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी में बने केबल संस्पेंशन पुल के गिरने की घटना को चार दिन हो चुके हैं, लेकिन अभी भी कई लोग लापता हैं। अभी भी राहत और बचाव कार्य जारी है। इसी बीच राज्य अग्निशमन सेवा प्रमुख एनके बिश्नोई का कहना है कि अभी तक दो लोगों के लापता होने की सूचना है, लेकिन यह संख्या ज्यादा भी हो सकती है। अब बचे हुए शवों की तलाश में तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।


  मोरबी में कैसे हुआ था हादसा?
पुल पर रविवार को छठ पूजा कारण क्षमता से अधिक भीड़ होने के चलते एक तरफ की केबल टूट गई थी। इससे पुल पर मौजूद करीब 450 लोग नदी में गिर गए। इस हादसे में 141 लोगों की मौत हो गई। यह पुल मरम्मत कार्य के चलते सात महीनों से बंद था और 26 अक्टूबर को ही लोगों के लिए खोला गया था। हादसे के बाद पुलिस, NDRF, SDRF, भारतीय सेना, वायुसेना की टीमें बचाव कार्यों में जुटी हुई है। बचाव 

  कम से कम दो लोग हैं लापता- बिश्नोई
मोरबी पुल हादसे को लेकर अग्निशमन सेवा प्रमुख बिश्नोई ने NDTV से कहा, "अभी कम से कम दो लोग लापता हैं, लेकिन और भी लोग लापता हो सकते हैं। अभी तक इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है।" उन्होंने कहा, "कई लोग कह रहे हैं कि उनके रिश्तेदार लापता हैं। बचाव दल अब मच्छू नदी के अंदर किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को ट्रैक करने के लिए अधिक स्कूबा गोताखोरों और सोनार तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। इससे जरूर लाभ मिलेगा।" बयान "स्थिति के अनुसार लेंगे बचाव कार्य जारी रखने का निर्णय" बचाव कार्य जारी रहने के सवाल पर बिश्नोई ने कहा, "हम हर सत्र के बाद बचावकर्मियों के साथ एक छोटी बैठक करते हुए दिन में कई बार स्थिति का आकलन करते हैं। हम स्थिति के अनुसार ही बचाव कार्य जारी रखने पर फैसला करेंगे।" बयान

  हम अंतिम क्षण तक प्रयास करेंगे- मुचर 
इससे पहले नदी में और लोगों के शवों के सवाल पर अतिरिक्त जिला कलक्टर (ADM) एनके मुचर ने कहा, "नदी में अभी कितने लोगों के शव हैं यह तो वक्त ही बताएगा। हम अंतिम क्षण तक लापता लोगों को ढूंढने का काम करेंगे।" इस दौरान जब उनसे ब्रिटिश काल के पुल के मरम्मत का काम करने वाले ठेकेदार, ओवेरा ग्रुप द्वारा पुरानी केबलों को न बदलने का सवाल पूछा तो वह बिना जवाब दिए ही वहां से निकल गए। कारण 

ओवेरा कंपनी के अधिकारी ने हादसे को बताया 'भगवान की इच्छा' 
इस मामले में स्थानीय कोर्ट में हुई सुनवाई में ओवेरा कंपनी के प्रबंधक दीपक पारेख ने जिम्मेदारी से किनारा करते हुए कहा कि यह भगवान की इच्छा थी कि ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई। इस पर मोरबी के पुलिस उपाधीक्षक (DSP) ने बताया कि पुल की केबल को जंग लग गई थी और कंपनी ने मरम्मत कार्य के दौरान इसे नहीं बदला। इसी तरह प्रशासन की मंजूरी के बिना ही 26 अक्टूबर को पुल को जनता के लिए खोल दिया गया। आरोप 

मरम्मत के दौरान बदला गया था केवल फर्श 
DSP ने कोर्ट में ओवेरा कंपनी पर आरोप लगाया कि कंपनी ने मरम्मत के दौरान केवल पुल के फर्श को बदला था। पुल की केबल पर ग्रीसिंग तक नहीं की गई थी। केबल टूटने वाली जगह जंग लगी हुई थी। अगर मरम्मत की जाती तो हादसा नहीं होता। इसी तरह अभियोजक पक्ष ने कहा कि पुल की मरम्मत करने वाले ठेकेदार सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के रखरखाव के योग्य नहीं थे। इसके बावजूद उन्हें पुल की मरम्मत का काम दिया था। जिम्मेदारी

  मोरबी नगर निगम ने ओरेवा कंपनी को ठहराया है जिम्मेदार
हादसे को लेकर मोरबी नगर निगम अध्यक्ष संदीप जाला ने कहा था कि ओरेवा नामक एक प्राइवेट कंपनी को पुल की मरम्मत का ठेका दिया गया था। कंपनी ने मरम्मत के बाद बिना सूचना और बिना फिटनेस सर्टिफिकेट लिए ही पुल खोल दिया। इसको लेकर पुलिस ने कंपनी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या), 308 और 114 के तहत मामला दर्ज कर सोमवार को पूछताछ के बाद नौ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। जानकारी 
प्रधानमंत्री ने दिए उच्च स्तरीय जांच के आदेश
इस घटना को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्रे मोदी ने मंगलवार को मोरबी पहुंचकर पीड़ितों का हालचाल जाना और एक उच्च स्तरीय बैठक की। इसमें उन्होंने हादसे के पीछे कई कारण सामने आने को देखते हुए अधिकारियों को मामले की विस्तृत जांच के निर्देश दिए हैं। मोरबी पुल यह पुल 140 साल से ज्यादा पुराना था। यह पूरे देश के लिए ऐतिहासिक धरोहर था। इसका उद्घाटन 20 फरवरी, 1879 को मुंबई के गवर्नर रिचर्ड टेम्पल ने किया था। यह पुल उस समय लगभग 3.5 लाख की लागत से 1880 में बनकर तैयार हुआ था। इसके निर्माण के लिए पूरा सामान इंग्लैंड से मंगवाया गया था। उसके बाद कई बार इसका रेनोवेशन किया जा चुका है। दिवाली से पहले इसकी मरम्मत पर दो करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।

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