जीत का फैक्टर, कैसे 1.50 लाख वोटर्स पर भारी पड़ते हैं 31000 बिश्नोई वोटर्स आदमपुर में

आदमपुर में जीत दावा करने वाली बीजेपी के हाथ इस पर सफलता हाथ लग सकती है, क्योंकि उसके पास आदमपुर का अपना कैंडिडेट है, वो भी उस परिवार से जिसका आदमपुर में दबदबा है. 

बिश्नोई समाचार आदमपुर  आदमपुर उपचुनाव बेहद खास होने वाला है. खास इसलिए भी क्योंकि इसमें कई लोगों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. कांग्रेस के भूपिंदर सिंह हुड्डा ने इस चुनाव को अपनी नाक का सवाल बताया है तो वहीं आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी ने इसे विलायती, कलायती और हिमायती के बीच का चुनाव बताया है. वह खुद को आदमपुर की जनता का हिमायती मानते हैं. तो वहीं इनेलो पार्टी भी इसे अपनी साख से जोड़ रही है.

आदमपुर में बीजेपी की ओर भव्य बिश्नोई उम्मीदवार हैं, भव्य बिश्नोई समाज के हैं. जबकि कि बाकी तीनों उम्मीदवार जाट समुदाय से आते हैं. आदमपुर में जाट वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है. यहां कुल 1 लाख 71 हजार 473 वोटर्स हैं. जिसमें करीब 52000 जाट वोटर्स हैं. बिश्नोई समाज के 31000, एससी समुदाय के 30000, बीसीए 29000, बीसीबी 4000 और ब्राह्मण वोटर्स की आबादी 5 हजार से ज्यादा है. यहां जाट वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है, बावजूद यहां से जाट उम्मीदवार की जीत जरूरी नहीं होती है. आदमपुर में 6 दशक से चुनाव हो रहे हैं लेकिन बिश्नोई समाज के अलावा कोई नहीं जीत पाया है. यहां बिश्नोई समाज जाट वोटर्स पर भारी पड़ते हैं.

ये है आदमपुर जनता की राय
इसके पीछे का गणित कुछ खास नहीं है. बिश्नोई समाज के लोगों का मानना है कि चौधरी भजनलाल परिवार ने उनकी समस्याओं का निराकरण किया. आदमपुर से जीतकर चौधरी भजनलाल मुख्यमंत्री बने. लोगों का मानना है कि अभी भी भजनलाल की ही साख चलती है. आदमपुर से बिश्नोई समाज से कुलदीप लड़ें, रेणुका लड़ें या फिर भव्य बिश्नोई लड़ें, कोई फर्क नहीं पड़ता. बिश्नोई समाज एकतरफा इसी परिवार को वोट करता है. लोगों को तीन पीढ़ी में भी कोई अंतर नहीं दिखता.

 जीतता है बिश्नोई परिवार?

आदमपुर विधानसभा पूर्व मुख्यमंत्री और उनके दादा भजनलाल की विरासत है. भव्य बिश्नोई के दादा भजनलाल ने इतने काम और रोजगार दिए कि जनता आज तक उनका एहसान मानती है. बिश्नोई समाज में उनकी अच्छी पकड़ है. कुलदीप बिश्नोई का लोगों में रसूख है. हालांकि पिता की तरह उनकी पहचान आदमपुर में नहीं है, कांग्रेस-आप उन्हें विलायती कहती है, लेकिन उनपर परिवारवाद का ठप्पा भी लगा है. और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है. कुछ लोग भव्य बिश्नोई की जीत पक्की बता रहे हैं, इसके पीछे उनका मत है कि चूंकि भाजपा के अलावा कांग्रेस, आप और इनेलो में जाट उम्मीदवार उतारे हैं, ऐसे वोटों को ध्रुवीकरण हो सकता है. 


6 बड़े चुनावों में बिश्नोई परिवार ने दी करारी शिकस्त
आदमपुर में पिछले 6 बड़े चुनावों में भी बिश्नोई समुदाय जाट वोटर्स पर भारी पड़े. साल 1972 में आदमपुर विधानसभा सीट पर चौधरी भजन लाल से थे और उनके सामने चौधरी देवीलाल निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे थे. तब चौधरी देवीलाल 10,961 वोट से हारे थे. साल 2008 के उप चुनाव में चौधरी भजनलाल के सामने रणजीत सिंह चौटाला उतरे वो भी 20 हजार वोट से हारे. 2014 के हिसार लोकसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने कुलदीप बिश्नोई को मात दी. 2019 के लोकसभा चुनाव में भव्य बिश्नोई और दुष्यंत चौटाला को भाजपा उम्मीदवार बृजेंद्र सिंह ने हराया था. 

आदमपुर की बंजर सियासी जमीन पर खिल सकता है कमल

आदमपुर में बीजेपी ने कभी जीत हासिल नहीं की है. यहां की सियासी जमीन बीजेपी के लिए बंजर ही रही है. यहां से बीजेपी ने 7 बार चुनाव लड़ा और सातों बार उसे मात मिली. हर बार उसके सामने बिश्नोई परिवार ही रहा है. 5 बार तो बीजेपी के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो चुकी है. इतना ही नहीं 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर थी और भाजपा ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए हरियाणा में 90 में से 47 सीटें जीती थी, उसमें भी उसकी झोली में आदमपुर सीट नहीं आई थी. आदमपुर से कुलदीप बिश्नोई हजकां की टिकट पर चुनाव लड़े और भारी अंतर से जीते थे.

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