जंभसरोवर का उल्लेख मिलता है महाभारत काल में

 बाप (जोधपुर) . उपखण्ड मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। जांबा स्थित तालाब जंभसरोवर नाम से विख्यात है। इस सरोवर की खुदाई भगवान जांभोजी ने खुद करवाई थी।

जानकारी के अनुसार पाण्डव वनवास काल में काम्यक वन एवं द्वैतवन में रहा करते थे। उन्होंने भी लोमश एवं धौम्य आदि ऋषियों से तीर्थों के बारे में पूछा तो ऋषियों ने इसी अज्ञात सरोवर का बखान पाण्डवों के समक्ष किया। इसके बाद पाण्डव इस अज्ञात सरोवर जांभोलाव धाम आए तथा यहां पर 18 माह तक यज्ञ-अनुष्ठान आदि कार्य किए। इसी दौरान समराथल धोरे पर विराजमान भगवान जांभोजी से वहां पर उपस्थित भक्तों व जनसमुदाय ने शंका करते हुए कहा कि देव तीर्थों में महानतमï तीर्थ स्थान कौनसा है तथा उस तीर्थ का हमें दर्शन लाभ दिलाओ।
JambSarovar is mentioned in Mahabharata period
इस पर गुरु जंभेश्वर ने समराथल धोरे की पश्चिम दिशा की ओर इशारा करते हुए संकेत दिया कि फलोदी कोट के पूर्वोत्तर की तरफ अति निकट ही एक अज्ञात सरोवर है, जिसके बारे में विस्तार से बताऊंगा। यही स्थान पवित्र तीर्थ है। हम सब वहां चलकर उस अज्ञात स्थान की खुदवाई करवाकर उसे पुन: प्रगट करेंगे। इसके बाद भगवान जांभोजी जांबा आए तथा शुभ घड़ी विक्रम सं. 1566 मिगसर कृष्ण पक्ष पुष्य नक्षत्र पंचमी वृहस्पतिवार के दिन तालाब खुदवाई का कार्य प्रारंभ करवाया।
 

जांबा में कई लोग जांभोजी के पास अपने दु:ख मिटाने व ज्ञान बढ़ाने के लिए आते थे तो जांभोजी उनसे कहते कि पहले तालाब से मिट्टी निकालो तथा उसके बाद ज्ञान की बातें होगी तथा आपके कष्टों का निवारण होगा। तालाब खुदाई के दौरान मथुरा नगर की रानी, अली ब्राह्मण की उमंग, ग्वाले की आत्म ग्लानि, अल्लुजी के रोग की निवृति, कवि तेजोजी के कुष्ठ रोग की निवृति, कोल्ह जी के मस्तिष्क रोग की निवृति, कवि कानजी को पुत्र की प्राप्ति, जैसलमेर के राजा जेतसिंह की भौतिक व्याधि से निवृति हुई। तालाब खुदाई का कार्य करीब तीन वर्ष तक चलने के बाद पूर्ण हुआ। मेले में आने वाले श्रद्धालु तालाब से मिट्टी निकालकर पास बने ऊंचे टीले पर डालकर अपने को धन्य महसूस करते हैं। इस सरोवर के जल को गंगाजल के समान पवित्र माना गया है।

माधा मेला
करीब 314 वर्ष पूर्व जांबा में माधा मेला लगना प्रारंभ हुआ था। माधा मेला प्रारंभ होने के पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है। जानकारी के अनुसार माधाराम जी गौत्र गोदारा निवासी पल्ली तहसील ओसियां किसी बीमारी से ग्रसित थे। उनकी बीमारी का उपचार कही पर भी संभव नही हो पा रहा था। इसी दौरान एक दिन रात्री के समय जब माधाराम जी अपने घर पर सो रहे थे तो उन्हें एक ऐसा चमत्कार हुआ तथा उस चमत्कार में आकाशवाणी हुई, जिसमें कहा गया कि एक ऐसा दिव्य तीर्थ स्थल है, जहां पर जाकर तुम उस तीर्थ स्थल के पास बने सरोवर की साफ-सफाई करवाओं तथा उस सरोवर के पानी से स्नान करके पुण्य लाभ कमाओ। 
उस बात को सुनकर माधाराम जांबा गांव आए तथा भाद्र माह के कृष्ण पक्ष से लेकर भाद्र माह के शुकल पक्ष की चतुदर्शी तक वहां पर उन्होंने स्नान-ध्यान किया एवं सरोवर की साफ-सफाई की। तब भगवान जांभोजी ने दर्शन दिए तथा माधाराम के शारीरिक व्याधी को दूर किया। इसी दिन शाम को संतों के सानिध्य में जागरण किया गया एवं प्रात: अगले दिन भाद्र माह शुकल पक्ष की पूर्णिमा को मेले का आयोजन किया गया। इसी दिन भण्डारे (संतों एवं मेले में आने वाले मेहमानों के भोजन) की शुरूआत हुई, जो आज दिन तक चल रही है। 
निर्माणाधीन है भव्य मंदिर 
जांबा गांव में जंभसरोवर के पास जिस स्थान पर जांभोजी ने बैठकर तालाब की खुदाई का कार्य प्रारंभ करवाया था, कालांतर में उसी स्थान के अति निकट संतों ने मंदिर का निर्माण करवाया। इस समय सरोवर के पास श्री जांभोलाव धाम बिश्नोई सभा श्री जांबा द्वारा भगवान जांभोजी के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया है। 
दो आश्रम है विद्यमान
जांबा में संतों के दो आश्रम बने हुए है, जिसमें एक श्री जगदï्गुरु संताश्रम है जिसके संचालक महंत भगवानदास है तथा दूसरा श्री जंभेश्वराचार्य वील्होजी गद्दी जांबा है, जिसके संचालक महंत प्रेमदास हैं।
बिश्नोई समाज के प्रमुख धाम
पींपासर, समराथल धोरा, लालासर, मुक्ति धाम मुकाम, जांभोलाव, लोदीपुर धाम, रामड़ावास, जांगलु, रोटु, बणीधाम, खेजड़ली बलिदान, लोहावट, जांभाणी संस्कार ज्ञान पीठ जैसला, मेहराणा धोरा, पूल्हा जी की साथरी, शक्ताखेड़ा, सिरसा, बगरेवाला धोरा, ओसियां, जुनागढ़, जैसला मंदिर प्रमुख धाम है।

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