गजेन्द्र सिंह दहिया/जोधपुर. बीकानेर स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर एरिड हॉर्टिकल्चर (सीआईएएच) ने खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया) की नई वैरायटी खोजी है जो कांटे रहित है। अब इसका उत्पादन और खेत में विभिन्न फसलों के बीच परीक्षण जोधपुर स्थित केंद्रीय रुक्ष क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में किया जा रहा है। यह खेजड़ी कांटे रहित है। इसमें दो साल बाद ही सांगरी आ जाती है जो परंपरागत खेजड़ी से अधिक स्वादिष्ट एवं पौष्टिक है। नई सांगरी में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक पाई गई है। इसकी पत्तियां भी घनी हैं जो जानवरों के लिए बेहतर चारा बनती है। सामान्यत: कांटे वाले खेजड़ी का पेड़ 10 से 12 फीट का होता है जिस पर चढकऱ पर सांगरी तोडऩी पड़ती है लेकिन कांटे रहित खेजड़ी का पौधा 5-6 फीट का ही रहता है। इंसान खड़े-खड़े ही सांगरी तोड़ सकता है।
नई खेजड़ी का नाम नहीं बदलेगा
खेजड़ी की नई मिली वैरायटी की स्पीशीज नहीं बदली है इसलिए इसका नाम भी खेजड़ी यानी प्रोसोपिस सिनेरिया ही रहेगा जो कि राजस्थान का राज्य वृक्ष भी है।
पुरानी खेजड़ी पर कलिका संवद्र्धन से नया पौधा
काजरी के वैज्ञानिक डॉ सीरन ने बताया कि काजरी में मूंग के खेतों के सहारे कांटे रहित खेजड़ी को उगाया गया है। इसका मोठ, बाजरा सहित विभिन्न फसलों के साथ परीक्षण किया जा रहा है ताकि किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सके। कांटे रहित खेजड़ी की कलिका को निकालकर पुरानी खेजड़ी पर रोपित कर देते हैं। करीब एक पखवाड़े बाद नई खेजड़ी आना शुरू हो जाती है। यह खेजड़ी बीकानेर से मंगाई गई है।
किसानों को भी वितरित करेंगे खेजड़ी
हम लोग विभिन्न फसलों के बीच कांटे रहित खेजड़ी का परीक्षण कर रहे हैं। खेजड़ी को उगाकर हम किसानों को भी वितरित करेंगे ताकि वे अपने खेत में इसे लगा सकें।
डॉ ओपी यादव, निदेशक, काजरी जोधपुर
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