श्रीगुरु जम्भेश्वर भगवान ने शब्दवाणी में कहा है "ध्यान न डोले मन न टले, अहनिश ब्रह्म ज्ञान उच्चरै" यह बात अध्यात्म सन्दर्भ में है लेकिन इसे हम इस दृष्टि से भी देख सकते है कि कोरोना के बचाव के लिए जितने भी नियम बनाए गए है इन नियमों से हमारा ध्यान हट न जाए। जरा सी भूल पूरे परिवार, पूरे मोहल्ले, पूरे गाँव, पूरे शहर के लिए घातक हो सकती है। लॉक डाउन के नियमों का पूर्ण मनोयोग से ध्यान रखें। जब इन नियमों के चलते अपने-अपने घरों में रहोगे तब एकान्त में भी यही पंक्ति हमारा आन्तरिक पथ प्रशस्त करेगी। बहुधा व्यक्ति की वृत्ति बहिर्मुख होती है, उस वृत्ति को अंतर्मुखी बनाने के लिए यह पंक्ति बहुत मदद करेगी। जो एकान्त अज्ञानता के कारण अकेलापन लगता है उस अकेलेपन को यह पंक्ति एकान्त में बदल देती है और एकान्त से ही आत्मदर्शन सम्भव है। शास्त्रों में एकान्त की बड़ी महिमा कही गयी है "एकान्ते सुखमास्यतां परतरे चेत: समाधीयतां" अर्थात् एकान्त सुख का सेवन करना चाहिए, परब्रह्म में चित को लगाना चाहिए। एकान्त में परमात्मा से ध्यान न हटें, ध्यान का तन्तु धारावाहिक हो। एकान्त में मन परमात्मा की ओर ध्यानस्थ रहे। मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। पूर्ण मनोयोग से परमात्मा का जब ध्यान बना रहता है तब व्यक्ति अहर्निश ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त हो जाता है। ब्रह्मज्ञान अर्थात् "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" समग्र जगत आनन्दघन ईश्वर रूप है। ऐसा अखण्ड आभास हो जाए। यह स्थिति निरन्तर एकान्त सेवन के अभ्यास से प्राप्त होती है। बाह्य सत्संग केवल मार्गदर्शन करता है, उस मार्गदर्शन को अपने जीवन में घटित करने के लिए आन्तरिक सत्संग की बहुत आवश्यकता होती है। श्रवण के बाद मनन व निदिध्यासन करने से ही एकान्त रूपी नोका द्वारा अन्तर्मन की यात्रा शुरू होती है। इसी विधा से प्राप्तव्य की प्राप्ति सम्भव है।
(परम पूज्य सद्गुरुदेव जी के किसी चरणाश्रित ने यह लेख सद्गुरुदेव जी के नाम से लिखा है, श्रद्धेय सद्गुरुदेव जी द्वारा लिखित ग्रन्थों में व्याख्याओं को देखते हुए, पूज्य चरण की जीवनचर्या का दर्शन करते हुए, जहाँ तक आश्रित की अल्पबुद्धि की पहुँच है... ऐसा पाया कि सद्गुरुदेव जी निरन्तर ब्रह्मज्ञान में निमग्न रहते है। इसी भावावेश में आकर यह संक्षिप्त लेख लिखने की कोशिश आप सभी सद्गुरु चरणानुरागी भक्तों के लाभार्थ की है।)
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