धर्म कर्म न करना आलस्य है- सन्त राधेशानन्द

बिश्नोई समाचार इन दिनों समग्र संसार विश्वव्यापि महामारी कोरोना से जूझ रहा है और यह महामारी असाध्य है। हमारे देश में भी कोरोना के चलते देश व्यापि द्वितीय लॉक डाउन चल रहा है। ऐसे में हमें चाहिए हम सब अपने-अपने घरों में रहते हुए इस समय का सदुपयोग करें। प्रत्येक व्यक्ति अपने उत्तरदायित्वों की पूर्ति के लिए बिना विश्राम किये निरन्तर पुरुषार्थ में लगे रहते है। लॉक डाउन के जितने भी दिन हमें मिले है ये दिन हमें विश्राम के लिए मिले है ऐसा समझकर इन दिनों कुछ न कुछ धर्म कर्म जरूर करें। महाभारत में स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर जी कहते है धर्म कर्म न करने का नाम ही आलस्य है। शास्त्रों में वर्णित पुरुषार्थचतुष्टय के अनुसार प्रथम पुरुषार्थ धर्म को कहा गया है इसे अवश्य चरितार्थ करें। जब सोसिअल डिस्टेन्स का पालन कर ही रहे हो तो इस ग्रहवास के समय का सदुपयोग करते हुए कुछ न कुछ धर्म कर्म अवश्य करें। इन दिनों को राष्ट्रीय अनुष्ठान के रूप में देखें। ये दिन हमें एकान्तवास एवं आत्मदर्शन के लिए मिले है। आत्मशुद्धि एवं सत्वगुणों की वृद्धि के लिए सद् शास्त्रों का अध्ययन, हवन, भजन-कीर्तन, जप, ध्यान व पुजापाठादी यथाशक्ति करते रहे। शब्दवाणी में श्रीगुरु जम्भेश्वर भगवान एक जगह कहते है "सुकृत न पछताणों" जो सुकृत अर्थात् धर्म करता है उसे जीवन में पछतावा नहीं होता है, धार्मिक व्यक्ति को जीवन में पूर्णता का अनुभव होता है और आत्मबल की वृद्धि होती है। भगवान की भक्ति में ही मानवजीवन की सार्थकता है।
बिश्नोई समाचार न्यूज पेज पर यह सन्देश कथावाचक सन्त राधेशानन्द महाराज वृन्दावन ने सोशल मीडिया के माध्यम से समाज को दिया। सन्त राजकीय निर्देशों का पूर्णतया पालन करते हुए श्री विष्णु सेवा आश्रम में एकान्त वास कर रहे है और नित्य प्रातः काल शब्दवाणी द्वारा हवन करते है। दिन में स्वाध्याय करते है। सन्त राधेशानन्द सदैव समाज को शास्त्र सिद्धांतों द्वारा सकारात्मक शिक्षा प्रदान करते है।

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