अधर्म का विनाश करने के लिए भगवान स्वय अवतार लेते है मंहत नृसिंह दास
बिश्नोई समाचार पत्रकार लक्ष्मण सिह विश्नोई तिलवासनी निकटवर्ती गाव तिलवासनी मे मंगलवार को विश्नोई समाज के संस्थापक भगवान जम्भेश्वर जी का 480 वा मोक्ष दिवस श्रद्धाभाव से मनाया गया, इस मोके पर गाव मे स्थित विश्नोई बगीची मे सुबह एक सो बीस शब्दो के साथ विशाल हवन एव पाहल बनाकर वितरित किया, पर्यावरण शुद्धिकरण एव विश्व कल्याण के लिए हवन कुड मे सैकडो विश्नोई समाज के लोगो ने घी खोपरो की अहुतिया दी गई ।उपस्थित लोगो को सम्बोधित करते हुए विश्नोई समाज की तिलवासनी गादीपति मंहत नृसिंह दास ने कहा कि इस सृष्टि पर जब जब अधर्म बढा है , तब तब भगवान विभिन्न रूपो मे अवतार लेकर अधर्म से मुक्ति दिलाने एव मुक्ति का मार्ग दिखाने के लिए सृष्टि पर अवतारित हुए है ।इसी क्रम मे नागौर परगने के पीपासर गाव मे विक्रम संवत 1508 मे भादवा बदी अष्टमी को भगवान जाम्भोजी ने इस धरा भुमि पर अवतार लिया, उन्होंने सात साल तक मौन रहे ।
भगवान जाम्भोजी ने जीव दया पालणी ,''रूख लिलो नही घावे'' पर विशेष महत्व देते हुए स्वय 27 वर्ष तक गाये चराई,विक्रम संवत 1542 कार्तिक बदी अष्टमी को समराधल धोरे पर उन्नतीस नियमो की परिधि बनाकर विश्नोई धर्म की स्थापना की थी, तदोपरात देश देशान्तरो मे धर्म के उपदेश देते हुए देशाटन किया।भगवान जाम्भोजी ने विभिन्न देशो के भ्रमण के उपरांत अपने जीवन के अंतिम समय बीकानेर जिले के लालासर साथरी पर आकर विश्राम किया एव वही रहते हुए भगवान जाम्भोजी ने विक्रम संवत 1593 मिगसर बदी नवमी को अपना पंच भोतिक शरीर परित्याग कर ज्योति मे विलीन हो गए, उनके बताए 29 नियमो एव उपदेशो का अनुसरण करके हर व्यक्ति अपने जीवन को सफल करके इस संसार सागर से पार उतर सकता है ।इस मोके पर समाजसेवी रामदीन खोखर, जीव रक्षा तहसील अध्यक्ष लक्ष्मण मूंद,स्वामी अनूपदास,स्वामी शांतिदास लालाराम,पसस बाबुलाल नैण , मागीलाल , बाबुलाल सहित अनेक लोग मोजूद थे ।
बिश्नोई समाचार पत्रकार लक्ष्मण सिह विश्नोई तिलवासनी निकटवर्ती गाव तिलवासनी मे मंगलवार को विश्नोई समाज के संस्थापक भगवान जम्भेश्वर जी का 480 वा मोक्ष दिवस श्रद्धाभाव से मनाया गया, इस मोके पर गाव मे स्थित विश्नोई बगीची मे सुबह एक सो बीस शब्दो के साथ विशाल हवन एव पाहल बनाकर वितरित किया, पर्यावरण शुद्धिकरण एव विश्व कल्याण के लिए हवन कुड मे सैकडो विश्नोई समाज के लोगो ने घी खोपरो की अहुतिया दी गई ।उपस्थित लोगो को सम्बोधित करते हुए विश्नोई समाज की तिलवासनी गादीपति मंहत नृसिंह दास ने कहा कि इस सृष्टि पर जब जब अधर्म बढा है , तब तब भगवान विभिन्न रूपो मे अवतार लेकर अधर्म से मुक्ति दिलाने एव मुक्ति का मार्ग दिखाने के लिए सृष्टि पर अवतारित हुए है ।इसी क्रम मे नागौर परगने के पीपासर गाव मे विक्रम संवत 1508 मे भादवा बदी अष्टमी को भगवान जाम्भोजी ने इस धरा भुमि पर अवतार लिया, उन्होंने सात साल तक मौन रहे ।
भगवान जाम्भोजी ने जीव दया पालणी ,''रूख लिलो नही घावे'' पर विशेष महत्व देते हुए स्वय 27 वर्ष तक गाये चराई,विक्रम संवत 1542 कार्तिक बदी अष्टमी को समराधल धोरे पर उन्नतीस नियमो की परिधि बनाकर विश्नोई धर्म की स्थापना की थी, तदोपरात देश देशान्तरो मे धर्म के उपदेश देते हुए देशाटन किया।भगवान जाम्भोजी ने विभिन्न देशो के भ्रमण के उपरांत अपने जीवन के अंतिम समय बीकानेर जिले के लालासर साथरी पर आकर विश्राम किया एव वही रहते हुए भगवान जाम्भोजी ने विक्रम संवत 1593 मिगसर बदी नवमी को अपना पंच भोतिक शरीर परित्याग कर ज्योति मे विलीन हो गए, उनके बताए 29 नियमो एव उपदेशो का अनुसरण करके हर व्यक्ति अपने जीवन को सफल करके इस संसार सागर से पार उतर सकता है ।इस मोके पर समाजसेवी रामदीन खोखर, जीव रक्षा तहसील अध्यक्ष लक्ष्मण मूंद,स्वामी अनूपदास,स्वामी शांतिदास लालाराम,पसस बाबुलाल नैण , मागीलाल , बाबुलाल सहित अनेक लोग मोजूद थे ।
एक टिप्पणी भेजें