बिश्नोई समाज धर्म के 531वर्ष पूर्ण होन पर वह 532 वें स्थापना दिवस पर फतेहाबाद में कार्यक्रम आयोजित
हरियाणा बिश्नोई समाचार नेटवर्क फतेहाबाद: अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के संरक्षक विधायक कुलदीप बिश्नोई ने बिश्नोई धर्म के 532 वें स्थापना दिवस पर फतेहाबाद बिश्नोई मंदिर में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि जांभोजी महाराज ने 16वीं शताब्दी में मानव समाज को एक नई वैचारिक क्रांति दी थी और अपनी वाणी, जिसे बिश्नोई समाज में पंचम वेद अर्थात चारों वेदों का सार माना जाता है, के द्वारा पुरातन वैदिक परम्परा को कायम करते हुए अद्वैतवाद की स्थापना की और यज्ञ को महत्त्व देते हुए यज्ञ में ही परम तत्व के दर्शन माने। यज्ञ पर्यावरण शुद्ध रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक बिश्नोई के घर में आज भी यज्ञ (हवन या होम) किया जाता है। केवल परमपिता परमात्मा का निर्गुण रूप विष्णु नाम से उपासना व जप किया जाता है।
कुलदीप बिश्नोई कहा कि जांभोजी के वैकुण्ठ-वास के पश्चात बिश्नोई समाज के जांभाणी संतों ने बिश्नोई समाज का हर प्रकार से मार्गदर्शन किया एवं रक्षा की। उनमें नाथोजी, रेड़ोजी और वील्होजी आदि प्रमुख है। सन्तो, थापनों (जिन्हें जांभोजी महाराज ने कलश-स्थापना का अधिकार दिया था) एवं गायणाचार्यों ने बिश्नोई धर्म के प्रचार-प्रसार में व इसे सुरक्षित रखने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। बिश्नोई समाज ने वन, वन्य जीव एवं प्रकृति व पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की अनेक बार आहुति दी है। वृक्षों की रक्षा के लिए स्त्री-पुरूष और यहां तक कि नन्हें बच्चे और बच्चियों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी। खेजड़ली का खडाणा जिसमें 363 पुरूष और महिलाओं ने खेजड़ी को बचाने हेतु अपने प्राणों की आहुति दी। यह घटना विक्रम सम्वत् 1787 के भादो सुदी 10 की है। इससे पहले भी रामासड़ी (रेवासड़ी), तिलासनी आदि कई स्थानों पर भी महिलाओं और पुरूषों ने खेजड़ी को बचाने के लिए अपने बलिदान दिए। ये सब जांभोजी की कृपा और बिश्नोई समाज की अपने धर्म पर दृढ़ता का परिचय है जो कि विश्व में अनुकरणीय उदाहरण है। भीषण अकालों से ग्रसित मरूप्रदेश के कृषक एवं जनसाधारण को जांभोजी ने मानव जीवन, उसके उद्देश्य और सांसारिक समस्त भय बाधाओं को उनकी ही बोली में जिस भांति सम्बोधन किया और जिसके फलस्वरूप इस गौरवशाली बिश्नोई समाज की स्थापना हुई जिसका इतिहास में अन्यत्र कोई उदाहरण हमें दृष्टिगोचर नहीं होता। जांभोजी द्वारा संस्थापित व निर्देशित बिश्नोई समाज आज के विश्व का एकमात्र ऐसा समाज है, जिसे जीव दया, हरे वृक्षों की कटाई न करना, अंहिसा पालन करना और हिंसा को रोकने हेतु बलिदान हो जाना, नैतिकता एवं उच्च आदर्शों के लिए स्मरण किया जाता है। कुलदीप बिश्नोई ने कहा गुरू महाराज के दिखाए आदर्श एवं आचार संहिता आज भी प्रासंगिक है। आज हमें एकजुट होकर समाज, देश एवं प्रदेश के उत्थान में काम करना है। उन्होंने समाज को आह्वान किया कि अपने बच्चों को बिश्नोई समाज के गौरवशाली इतिहास का ज्ञान करवाएं और समाजसेवा, पर्यावरण, जीव रक्षा की दिशा में काम करने के लिए पे्ररणा दें। गुरू जंभेश्वर भगवान ने मानवता की भलाई के लिए 29 नियमों की आचार संहिता लागू की थी, इसलिए न सिर्फ बिश्नोई समाज, बल्कि सभी समाजों में हमें गुरू महाराज के दिखाए आदर्शों को फैलाना चािहए। इस दौरान स्वामी राजेन्द्रानंद, पूर्व संसदीय सचिव दुड़ाराम, चौ. सतपाल गोदारा, राम सिंह कस्वा, भूप सिंह गोदारा, प्रदीप बैनिवाल, सहदेव कालीराणा, राम सिंह कालीराणा, सुभाष देहडू, कृष्ण कुमार, सोम प्रकाश, राजा राम खिचड़, रणधीर सिंह पनिहार, ओम प्रकाश बिश्नोई, हनुमान सिंह ज्याणी, इन्द्रजीत, संजय खिचड़, दलीप सिंह डेलू, पुरूषोत्तम, सुरेन्द्र खिचड़ आदि उपस्थित थे।
कुलदीप बिश्नोई कहा कि जांभोजी के वैकुण्ठ-वास के पश्चात बिश्नोई समाज के जांभाणी संतों ने बिश्नोई समाज का हर प्रकार से मार्गदर्शन किया एवं रक्षा की। उनमें नाथोजी, रेड़ोजी और वील्होजी आदि प्रमुख है। सन्तो, थापनों (जिन्हें जांभोजी महाराज ने कलश-स्थापना का अधिकार दिया था) एवं गायणाचार्यों ने बिश्नोई धर्म के प्रचार-प्रसार में व इसे सुरक्षित रखने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। बिश्नोई समाज ने वन, वन्य जीव एवं प्रकृति व पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की अनेक बार आहुति दी है। वृक्षों की रक्षा के लिए स्त्री-पुरूष और यहां तक कि नन्हें बच्चे और बच्चियों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी। खेजड़ली का खडाणा जिसमें 363 पुरूष और महिलाओं ने खेजड़ी को बचाने हेतु अपने प्राणों की आहुति दी। यह घटना विक्रम सम्वत् 1787 के भादो सुदी 10 की है। इससे पहले भी रामासड़ी (रेवासड़ी), तिलासनी आदि कई स्थानों पर भी महिलाओं और पुरूषों ने खेजड़ी को बचाने के लिए अपने बलिदान दिए। ये सब जांभोजी की कृपा और बिश्नोई समाज की अपने धर्म पर दृढ़ता का परिचय है जो कि विश्व में अनुकरणीय उदाहरण है। भीषण अकालों से ग्रसित मरूप्रदेश के कृषक एवं जनसाधारण को जांभोजी ने मानव जीवन, उसके उद्देश्य और सांसारिक समस्त भय बाधाओं को उनकी ही बोली में जिस भांति सम्बोधन किया और जिसके फलस्वरूप इस गौरवशाली बिश्नोई समाज की स्थापना हुई जिसका इतिहास में अन्यत्र कोई उदाहरण हमें दृष्टिगोचर नहीं होता। जांभोजी द्वारा संस्थापित व निर्देशित बिश्नोई समाज आज के विश्व का एकमात्र ऐसा समाज है, जिसे जीव दया, हरे वृक्षों की कटाई न करना, अंहिसा पालन करना और हिंसा को रोकने हेतु बलिदान हो जाना, नैतिकता एवं उच्च आदर्शों के लिए स्मरण किया जाता है। कुलदीप बिश्नोई ने कहा गुरू महाराज के दिखाए आदर्श एवं आचार संहिता आज भी प्रासंगिक है। आज हमें एकजुट होकर समाज, देश एवं प्रदेश के उत्थान में काम करना है। उन्होंने समाज को आह्वान किया कि अपने बच्चों को बिश्नोई समाज के गौरवशाली इतिहास का ज्ञान करवाएं और समाजसेवा, पर्यावरण, जीव रक्षा की दिशा में काम करने के लिए पे्ररणा दें। गुरू जंभेश्वर भगवान ने मानवता की भलाई के लिए 29 नियमों की आचार संहिता लागू की थी, इसलिए न सिर्फ बिश्नोई समाज, बल्कि सभी समाजों में हमें गुरू महाराज के दिखाए आदर्शों को फैलाना चािहए। इस दौरान स्वामी राजेन्द्रानंद, पूर्व संसदीय सचिव दुड़ाराम, चौ. सतपाल गोदारा, राम सिंह कस्वा, भूप सिंह गोदारा, प्रदीप बैनिवाल, सहदेव कालीराणा, राम सिंह कालीराणा, सुभाष देहडू, कृष्ण कुमार, सोम प्रकाश, राजा राम खिचड़, रणधीर सिंह पनिहार, ओम प्रकाश बिश्नोई, हनुमान सिंह ज्याणी, इन्द्रजीत, संजय खिचड़, दलीप सिंह डेलू, पुरूषोत्तम, सुरेन्द्र खिचड़ आदि उपस्थित थे।
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