लुप्त हो रहे हैं खेजड़ी और कुमुट के पेड़, बचा लो सरकार

राजस्थान बिश्नोई समाचार बाङमेर चौहटन@ भजनलाल पंवार। मारवाड़ की सूखी सब्जियों में अपनी खास पहचान रखने वाले कैर-सांगरी, चापटिया के पेड़ कुमट व खेजड़ी उचित संरक्षण के अभाव में लुप्त होते जा रहे हैं।  बाड़मेर के चौहटन क्षेत्र के आसपास के गांवों में कुमट के पेड़ बहुतायत मात्रा में पाए जाते थे, लेकिन इन पेड़ो की अंधाधुंध कटाई के कारण इनके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।

कुमट के पेड़ से निकलने वाला गोंद एक पौष्टिक आहार है, जिसका आयुर्वेदिक इलाज में भी प्रयोग किया जाता है।

वन विभाग नहीं खोज पाया ठोस उपाय
मारवाड़ के लोकगीतों व भजनों में रचे बसे कैर-खेजड़ी, चापटिया की उपयोगिता इससे ज्यादा क्या होगी कि बाहरी राज्यों में बसे इस क्षेत्र के लोग इन सब्जियों को साथ में ले जाते हैं। राजस्थानी ड्राई वेजिटेबल के नाम से भी दुनिया भर में ये सब्जियां प्रसिद्ध हैं। क्षेत्र के अधिकांश गांवों में आज भी सैकड़ों की तादाद में खेजड़ी के पेड़ अज्ञात रोग की वजह से सूख रहे हैं, लेकिन वन विभाग ठोस उपाय नहीं खोज पाया है।

हवन में काम आता है खेजड़ी

खेजड़ी का धार्मिक कार्यों में भी विशेष महत्व है। इसके सूखे छिलके को यज्ञ में काम में लिया जाता है। इसके अलावा हर धार्मिक कार्य में खेजड़ी की प्रमुखता बनी रहती है। रेगिस्तान में जब खाने को कुछ नहीं होता, तब खेजड़ी चारा देता है, जो ‘लूंग’ कहलाता है। इसके  फूल को ‘मींझर’ व फल को ‘सांगरी’ कहते हैं। हालांकि खेजड़ी, कुमट के पेड़ काटने पर सजा का प्रावधान है, लेकिन सरकार की उदासीनता और प्रशासन की अनदेखी के चलते इन पेड़ों की संख्या में निरंतर कमी आ रही है, जिससे सरकार को इसके संरक्षण के प्रति गंभीर होकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
इंजेक्शन से सूख जाता है पेड़

वहीं जिले के रेगिस्तानी क्षेत्र में कुमट के पेड़ किसानों के लिये अतिरिक्त आय का बढ़ि‍या जरिया बन गए हैं। इन पेड़ों से बहुत गोंद निकलता है, जिसे बाजार में 1000 से 1200 रुपये प्रति किलो बेचा जाता है। इसकी लकड़ी काट कर लोग ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन आजकल लोग लालच के चक्कर में इंजेक्शन का प्रयोग करके अत्यधिक मात्रा में गोंद निकालने की कोशिश करते हैं, जिसके कुछ ही महीनों बाद पेड़ सूख जाता है।
कीट से सूख रहे हैं पेड़  
प्रदेश में खेजड़ी के वृक्ष पर सफेद लट व फ्येजरियन ऑक्सीस्कर्म कवक का प्रयोग बढ़ रहा है। इससे राज्य के मरूप्रदेश में पाये जाने वाले खेजड़ी के वृक्ष कि स्थिति चिंताजनक हो गई है। क्षेत्र में कीट व कवक के प्रकोप से खेजड़ी के वृक्ष खड़े-खड़े ही सूख रहे हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है।
खेजड़ी के अस्तित्व पर संकट
खेजड़ी का वृक्ष किसानों व पशुपालकों के लिए बहुत उपयोगी है। कम पानी व भीषण गर्मी में भी पनपने वाले खेजड़ी के वृक्ष के कारण कालांतर से अकाल के समय में भी पशुओं कि जान बचाई जाती रही है, पशु खेजड़ी की पत्तियां को चाव से खाते हैं। साथ ही खेजड़ी की पत्तियां से उपयोगी खाद भी बनता है। खेजड़ी के फल सांगरी से सब्जी भी पौष्टिक व जायकेदार बनती हैं। तमाम तरह से उपयोगी खेजड़ी के अस्तित्व पर संकट है, जिसे बचाने के लिए सरकार को गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।

 

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