मनुष्य वर्ण से नही कर्म से महान बनता है: स्वामी भागीरथदास

जालौर बिश्नोई समाचार भीनमाल गुरू जम्भेश्वर मंन्दिर वाड़ाभाडवी चल रही सात दिवसीय विराट जाभांणी हरिकथा एवं ज्ञान यज्ञ में बुधवार को पांचवें दिन कथा वाचक स्वामी भागीरथदास शास्त्री ने कहा की मनुष्य वर्ण से नही कर्म से महान बनता है वह चाहे किसी कुल में जन्म ले परन्तु कर्म करके वह महान बन सकता है निस्वार्थ भाव से जो कर्म करेगा उसकी महानता हर समय याद रखी जाएगी कथा प्रसंग के दौरान कृष्ण भगवान की जन्म लीला को सुनाकर सब को आंनन्द से भाव विहोर करते हुए कहा की कृष्ण चरित्र को जीवन में उतारकर अपना जीवन सफल बनाने की बात कई। इस मौके पर  स्वामी रामाचार्य ने कहा की जीवन में सयम व नैतिक मूल्य के साथ ईश्वर भक्ति से सफलता प्राप्त की जा सकती है। 

स्वामी ने कहा मानव को  संतो की तरह सयमित जीवन से अपने को ईश्वर भक्ति में लीन कर देने की बात कही कथावाचक स्वामी माधवाचार्य ने कहा संगति के परिणाम स्वरूप रंग आता है और यह रंग दो प्रकार के वेदमय भगवान श्री जाम्भोजी की वाणी में कहें गये है एक है दुनिया और दूसरा है धर्म का रंग माधवाचार्य ने कहा कि दुनिया के रंग में चराचर जगत रंगा हुआ है। आदर्श के योग उन्हीं का जीवन है जिसका जीवन धर्म के रंग में रंग चुका हैं। यह एक ऐसा रंग है जो युक्ति के साथ मुक्ति को प्रधान करने वाला है।

भगवान श्री कृष्ण गीता में स्पष्ट उद्घोष कर रहे है कि जहां धर्म है, वहां मैं हूॅं और जहां मैं हूॅं वहां विजय है। अब निर्णय आपको करना है हार के पक्ष में रहना अथवा विजय के पक्ष में, यह निर्णय आपको करना है। उन्होंने धर्म की परिभाषा करते हुए कहा कि धर्म अर्थात् वो नियम जिनकी पालना करने से इस लोक व परलोक दोनों में जीवन का भला हो। नियमों की पालना का नाम ही धर्म की पालना हैं। जाम्भोजी ने  जीवन जीने की युक्ति प्रदान की। उनके द्वारा आचार संहिता में तीन प्रकार की बातें कही गयी हैं। नित्य कर्म, नैमितिक कर्म और निषेधात्मक कर्म के रूप में। प्रात:काल उठने से लेकर सांयकाल सोने पर्यन्त जिन नियमों की पालना आवश्यक कही गयी है, ऐसे नियमों का नाम है नित्यकर्म। 

नैमितिक अर्थात् नियमित करने पर जो नियम लागू होते है उनका नाम है नैमितिक कर्म। निषेधात्मक अर्थात् जो निषेध किया है ये-ये तु हें किसी भी परिस्थिति में नहीं करना है ऐसे नियमों की पालना का नाम ही निषेधात्मक कर्म है। मानव जीवन के दोनों पक्ष चाहे व्यवहार पक्ष हो अथवा अध्यात्म पक्ष दोनों में जीवन का भला हो ऐसा, हमारा जीवन हो उसी के लिए 29 नियमों की आचार संहिता जीवन जीने की आधार बनाई गयी है। समग्र जीवन का हित हो, प्राणी मात्र कल्याण हो, आदर्श जीवन जीने की कला सिखायी गई है। 

मानव जीवन में आने वाले त्रितापों की निवृति व परमानन्द की प्राप्ति का एकमात्र साधन है और वह धर्म 29 नियमों की स यक्ता परिपालना के द्वारा दैहिक, देविक, भौतिक पापों की निवृति संभव है। अत: मानव मात्र को धर्म की राह का राही बनना चाहिए। क्योंकि एक आप ही दुनिया के लिए आदर्श बनने वाले है, आप से प्ररेणा लेगें। आप पथ प्रदर्शक बनेगें। ये चमत्कार है धर्म तत्व का, सदाचार का, एक आदर्श जीवन जीने का यही सही सटीक ग्राहय तरीका है। सात दिवसीय ज्ञान यज्ञ के तहत प्रतिदिन 4 घंटे चलने वाली कथा प्रवचन के दौरान भगवान जाम्भोजी के उपदेशो की व्याक्या कर धर्म सुधार, नशा मुक्ति अभियान , संस्कार , नैतिक आचरण पर विस्तार से चर्चा कर ज्ञानउदेश दिया जा रहा है। जाम्भाणी हरिकथा एवं ज्ञान यज्ञ में आसपास के सभी गांवों के विश्रोई समाज के बड़ी संख्या मे लोग भाग ले रहे है।

विशाल भजन संध्या आज कल भरेगा मेला
गुरू जम्भेश्वर मंन्दिर वाड़ाभाडवी चल रही सात दिवसीय विराट जाम्भाणी हरिकथा एवं ज्ञान यज्ञ के समापन के साथ गुरूवार रात को विशाल भजन संध्या का आयोजन किया जायेगा जिसमें विश्रोई समाज के भजन कलाकार स्वामी चैनप्रकाश, प्रमोद विश्रोई एण्ड पार्टी के द्वारा गुरू जम्भेश्वर भगवान के भजनों की प्रस्तुती दी जायेगी। तथा शुक्रवार को सुबह विशाल यज्ञ व पाहाल का आयोजन होगा जिसमें राज्यभर से विश्रोई समाज के लोग भाग लेकर यज्ञ में शुद्ध गाय के घी व नारीयल की आहुती देगे। विराट जाम्भाणी हरिकथा एवं ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन शुक्रवार को विशाल मेले का आयोजन होगा जिसमें स्थानिय जनप्रतिनिधी सहित समाज के वरिष्ठ लोग भाग लेगे तथा समाज की प्रतिभाओं को सम्मानित किया जायेगा।

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