हरियाणा बिश्नोई समाचार पृथ्वीसिंह बैनीवाल आदमपुर एक बहुत बड़ी क्षति एवं गहरी दुःख की बात है षिरोमणी बिष्नोई समाज के महान विद्वान एवं कालीदास प्रोफेसर (डां.) राम गोपाल बैनीवाल का गत रात देहावसान हो गया है। वे 91 वर्श के थे। उनका जन्म प्रथम जून, 1925 को आदमपुर निवासी चैधरी मामराज बैनीवाल के घर हुआ था। दिल्ली विष्वविद्यालय, दिल्ली सक उच्च षिक्षा प्राप्त की थी। सन् 1950 में संस्कृत में स्नातकोर की डिग्री ही प्राप्त नहीं की बल्कि दिल्ली विष्वविद्यालय, दिल्ली में नया कीर्तिमान भी स्थापित किया। इस अनौखी सफलता पर दिल्ली विष्वविद्यालय, दिल्ली द्वारा उन्हें पण्डित रघुबर दयाल स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया गया। दिल्ली के संस्कृत प्रेमियों द्वारा भी उन्हें गौरी षंकर जैतली स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। इतना ही नहीं उन्हें दिल्ली के चार विद्वानों की श्रेणी में सन् 1950 में दिल्ली विष्वविद्यालय, की अखिल भारतीय षोध छात्रवृति प्रदान की गई। प्रोफेसर (डाॅ.) राम गोपाल बैनीवाल दिल्ली विष्वविद्यालय, दिल्ली से सन् 1953 में संस्कृत में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति थे।
सन् 1952 से 1959 तक प्रोफेसर (डाॅ.) राम गोपाल बैनीवाल डी.ए.वी. कालेज मैनेजिंग कमेटी, नई दिल्ली के अन्तर्गत हंसराज कालेज दिल्ली के संस्कृत के विभागाध्यक्ष के पद को सुषोभित किया और साथ ही दिल्ली विष्वविद्यालय, दिल्ली में एम.ए. संस्कृत की कक्षाओं को पढ़ाते रहे। महान षिक्षाविद् डाॅ. राम गोपाल बैनीवाल की प्राध्यापकीय ख्याति का ही कमाल था कि सन् 1959 में पंजाब विष्वविद्यालय, चण्डीगढ़ में संस्कृत के रीडर के पद पर उनकी नियुक्ति हुई। इसी विष्वविद्यालय में सन् 1974 में कालीदास पीठ के प्रोफेसर के पद पर उनकी पदौन्नति हुई।
एक महान लेखक के रूप में उन्होंने संस्कृत षोध सम्बन्धि लगभग एक दर्जन स्तरीय ग्रन्थों का निर्माण किया। देष के प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में लगभग एक सौ से भी अधिक षोध पत्र प्रकाषित हुए हैं। संस्कृत साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान को स्वीकारते हुए संस्कृत क्षेत्र में सन् 1971 को स्वतन्त्रता दिवस पारितोशिक समारोह में भारतीय गणतन्त्र के राश्ट्रपति द्वारा प्रसंषा पत्र प्रदान किया गया। उसी साल हरियाणा सरकार द्वारा उन्हें संस्कृत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान से सम्मानित किया गया।
प्रोफेसर राम गोपाल एक महान वेद-वेŸाा थे। उनका वेदिक साहित्य से निरन्तर लगाव रहा था। इसी प्रकाण्ड वैदिक पाण्डित्य की गुणवŸाा को देखते हुए सन् 1966 में उन्हें अखिल भारतीय पौर्वात्य सम्मेलन में वैदिक अनुभाग के सभापति बनने के लिए आमन्त्रित किया गया। यह भी बड़े गर्व की बात है कि दो खण्डों में लिखित उनके मुख्य ग्रन्थ वैदिक व्याकरण को विष्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 10,000 रूपये के सर्वश्रेश्ठ राश्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया। यह पुरस्कार भारत सरकार के षिक्षा मन्त्रालय द्वारा भारतीय भाशाओं में उच्च स्तरीय मौलिक ग्रन्थों के प्रणयन के लिए घोशित किया गया था। यह भी उनकी मौलिकता एवं अपरिमित योग्यता का ही परिणाम था कि उन्हें सन् 1964 में नई दिल्ली में आयोजित अन्तर्राश्ट्रीय पौर्वात्य महासम्मेलन के अवसर पर विष्व के कुछ गिने चुने संस्कृत के सुविख्यात विद्वानो के साथ बिड़ला षिक्षा संस्थान द्वारा सम्मानित किया गया।
उनकी उच्च स्तरीय विषिश्ट मौलिकता एवं अपरिमित योग्यता को देखते हुए हरियाणा सरकार द्वारा महऋशि दयानन्द विष्वविद्यालय, रोहतक के कुलपति पद पर चुना गया। कुलपति पद से अलंकृत करवाने पर समस्त षिक्षा क्षेत्र के महान विद्वान लोगों द्वारा तत्कालीन हरियाणा सरकार का कोटि कोटि आभार व्यक्त किया गया। डा. राम गोपाल एक व्यक्ति या एक प्रोफेसर न होकर स्वयं एक महान संस्था थे।
छः नवम्बर, 2015 को राश्ट्रीय जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर द्वारा भी उन्हें पुरजोर सम्मानित किया गया था। इस अवसर पर उन्होंने अलंकार मौवमेन्टो स्वीकार करते हुए अकादमी का अति आभार व्यक्त किया था। वे ईमानदारी की एक जीती-जागती मिषाल थे। मुझे याद है कि उन्हें जब राश्ट्रीय जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर द्वारा सम्मानित किया गया तो उन्होंने सभी प्रकार का सम्मान प्राप्त कर आदर से रखा और कहा कि ”मैं अकादमी का सम्मान करता हूँ और इसके द्वारा सम्मान चिन्ह रखते हुए अकादमी के पदाधिकारीगण से अनुरोध करता हूँ कि मैं अब अपने जीवन की ईमानदारी से की गई कमाई में से कुछ देना चाहता हूँ, मुझे उम्मीद है आप इसे स्वीकार करेंगे।” यह कहते हुए उन्होंने राश्ट्रीय जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर को दान स्वरूप पाँच हजार एक सौ रूपये प्रदान किये और साथ ही उन्हें औढ़ाया गया षाल भी किसी गरीब को देने का अनुरोध किया। इन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा भी विषिश्ठ सम्मान प्रदान किया गया था।
षिरोमणी बिष्नोई पंथ के 91 वर्शीय महान विद्वान एवं कालीदास प्रोफेसर राम गोपाल बैनीवाल के देहावसान पर समाज अपने आपको ठगा सा गहसूस करता है। उनके निधन पर राश्ट्रीय जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर के ऋशिकेष से अध्यक्ष स्वामी श्री कृश्णानन्दजी, हिसार से महासचिव डा. सुरेन्द्र कुमार खीचड़, हनुमानगढ़ से वरिश्ट उपाध्यक्ष डा बी.एल. सहू, बीकानेर से उपाध्यक्ष डा. कृश्ण लाल देहड़ू एवं अकादमी की संरक्षक डा सरस्वती बिष्नेई, दिल्ली से कोशाध्यक्ष श्री आर.के. बिष्नोई, संस्थापक सदस्यगण पंजाब से-विनोद कुमार जम्भदास, राम कुमार डेलू, सुरेन्द्र कुमार गोदार, जोधपुर से मूलाराम लोळ एंव मांगीलाल बूडि़या, सांचोर से पुरखाराम बिष्नोई, उदयराज खिलेरी, चण्डीगढ़ से मोहनराम कालीराणा, पंचकूला से पृथ्वीसिंह बैनीवाल, ओम प्रकाष भादु, रविपाल भादु, नौखा से ओम प्रकाष भादु, हरिनारायण भादु, मुरादाबाद से षिवकुमार बिष्नोई, बड़ोपल से कामरेड रामेष्वर दास डेलू एवं विनोद कुमार कड़वासरा इत्यादि ने कालीदास प्रोफेसर राम गोपाल को याद करते हुए उन्हें नमन किया और उनके निधन को समाज के लिए एक अपूर्णिय क्षति बताया है। सभी ने कहा कि ऐसी विभूति युगों में ही पैदा होती है।
इसके साथ साथ श्री बिष्नोई सभा, पंचकूला के अध्यक्ष श्री अचिंतराम गोदारा, कोशाध्यक्ष इन्द्रसिंह खदाव, प्रैस प्रभारी एवं संयुक्त सविच पृथ्वीसिंह बैनीवाल, कार्यकारिणी सदस्य ओम प्रकाष भादु, श्रीमती नीरू बिष्नोई एवं श्री अमित साहरण, एडवोकेट सुभाश चन्द्र जाँगू, श्रीमती अनीष पूनिया एवं श्री अजय गोदारा, पृथ्वीसिंह ढृकिया, सुजानाराम बिष्नोई, सुभाशचन्द्र ढ़ुकिया, श्री दलीपसिंह पूनिया, करणसिंह माँझू, मोहन राम कालीराणा, किषोर खिलेरी, ईसराराम कालीराणा, श्रीमती ईमानती देवी बिष्नोई आदि ने कालीदास प्रोफेसर राम गोपाल बैनीवाल के देहावसान पर दुःख व्यक्त करते हुए उनके परिवार को दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करने एवं दिंवगत आत्मा को शान्ति प्रदान करने हे लिए श्री गुरु जम्भेष्वर भगवान के श्रीचरणों में प्रार्थना की है।
इसी प्रकार श्री बिष्नोई सभा, हिसार, श्री बिष्नोई सभा, फतेहाबाद, श्री बिष्नोई सभा, रतिया, श्री बिष्नोई सभा, टोहाना, श्री बिष्नोई सभा, सीसवाल, श्री बिश्नोई सभा, बड़ोपल, श्री बिष्नोई सभा, सदलपुर, श्री बिश्नोई सभा, चैधरीवाली, श्री बिश्नोई सभा, सिरसा, श्री बिष्नोई सभा, डबावाली, श्री बिश्नोई सभा, अबोहर इत्यादि ने भी कालीदास प्रोफेसर राम गोपाल बैनीवाल के देहावसान पर गहरा शोक व्यक्त किया है। इन सभाओं ने भी उनके देहावसान को शिरोमणी बिश्नोई पंथ के लिए एक कभी पूरी न हो सकने वाली क्षति बताया और दिंवगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की है।
(पृथ्वीसिंह बैनीवाल बिश्नोई)
सस्थापक सदस्य राश्ट्रीय जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर,
वरिष्ट पत्रकार तथा संयुक्त सचिव/ प्रैस प्रभारी, श्री बिष्नोई सभा, पंचकूला,म.नं. 189-एफ, सैक्टर-14, पंचकूला-134113 (हरियाणा) मो.नं.-94676-94029
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