हजकां सुप्रिमों कुलदीप बिश्नोई ,विधायक द्वारा हरियाणा भवन जाम्बा का षिलान्यास 8 फरवरी को -
पृथ्वीसिंह बैनीवाल बिश्नोई
हिसार (हरियाणा ब्यूरो चीफ पृथ्वीसिंह बैनीवाल बिष्नोई की कलम से रिपोर्ट्स)-हजकां सुप्रिमो आदमपुर से विधायक चैधरी कुलदीप बिष्नोई द्वारा 8 फरवरी, 2016 को पावन तीर्थ स्थल जाम्बा में हरियाणा भवन की आधारषिला रखी जायेगी। राजस्थान के जोधपुर जिले की फलौदी तहसील में जाम्बा गाँव स्थित पावन श्री गुरु जम्भेष्वर जम्भसरोवर धाम में श्री बिष्नोई सभा, हिसार के नेतृत्व में तीर्थ यात्रियों को सुविधा प्रदान करे हेतु हरियाणा भवन बनाने की योजना बनाई गई है। इस षिलान्यास समारोह की अध्यक्षता चै. हीरा राम जी भंवाल, वरिश्ट वकील एवं अध्यक्ष, अखिल भारतीय बिष्नोई महासभा, मुकाम करेंगे एवं उनके साथ पूर्व विधायक फतेहाबाद चैधरी दुड़ा राम, भूतपूर्व संसदीय सचिव, हरियाणा सरकार भी होंगे। इस अवसर पर समाज के अन्य अनेक वर्तमान एवं भूतपूर्व विधायक तथा पूर्व सांसद की गौरवमयी उपस्थिति भी रहेगी।
यह जानकारी देते हुए श्री बिष्नोई सभा, पंचकूला के अध्यक्ष श्री अचिंत राम गोदारा तथा श्री बिष्नोई सभा, हिसार के अध्यक्ष श्री सुभाश जी देहड़ू ने सुयुक्त रूप से बताया कि जोधपुर जिले की फलौदी तहसील के जाम्बा गाँव में बनने वाले इस हरियाणा भवन के लिए भूमि कई वर्श पहले ही श्री बिष्नोई सभा, हिसार द्वारा खरीद कर ली गई थी। इस भवन का निर्माण श्री बिष्नोई सभा, हिसार की अगुवाई में हरियाणा के समस्त बिष्नोई समाज की ओर से किया जायेगा। वर्तमान में इसके निर्माण में श्री बिष्नोई सभा-पंचकूला, श्री बिष्नोई सभा-आदमपुर, श्री बिष्नोई सभा-फतेहाबाद, श्री बिष्नोई सभा-रतिया, श्री बिष्नोई सभा-टोहाना और श्री बिष्नोई सभा-हिसार की सहमति मिल चुकी है। इस पावन तीर्थ स्थल जाम्बा में 8 फरवरी, 2016 को हरियाणा भवन की आधारषिला रखने के लिए हरियाणा के अभूतपूर्व मुख्यमन्त्री बिष्नोई रतन चैधरी भजन लाल जी के सुपुत्र एवं हजकां के आदमपुर से विधायक चैधरी कुलदीप बिष्नोई से भी समय निर्धारित कर दिया गया है।षिरोमणी बिष्नोई समाज के इस पावन तीर्थ स्थल की थोड़ी सी महिमा यहाँ बताना मैं अत्यन्त जरूरी समझता हूँ। श्री जम्भसरोवर की महिमा बहुत ही रोचक एवं कल्याणकारी है। जो इस प्रकार से है:-
एक बार श्री गुरु जमेष्वर भगवान अपने तपस्या एवं उपदेष स्थल सम्भराथल पर उपस्थित भक्तजनों के साथ बैठे हुए अचानक गम्भीर हो गये। उन्होंने उस समय सम्भराथल धौरे के नीचे गंगा की एक धारा को बहते हुए देखा था, उसी समय वहां पर बैठे साथरियों ने पूछा कि अब वह धारा कहां गई। इस पर श्री गुरु जाम्भोंजी ने उन्हें बतलाया था कि वह धारा तो अब षीघ्र ही जम्भ सरोवर तालाब पहुंच जायेगी और आने वाले समय में वह तालाब गंगा के समान तीर्थ होगा। उस तीर्थ में स्नान का फल भी गंगा स्नान के समान ही होगा। उस समय श्री गुरु जम्भेष्वर भगवान ने जम्भ सरोवर अर्थात जाम्भोलाव का महत्व एवं तीर्थों की महिमा सुनाई थी । वह श्री मुख से सुनाई गई वह महा जम्भ सरोवर महिमा इस प्रकार से है:
जहां पर भी पावन जल में स्नान किया जाता है वह तीर्थ कहलाता है। जल तो हर स्थान पर विद्यमान है परन्तु तीर्थ का स्थान तो वही जल ले सकता है, जहां कभी किसी संत महापुरूष, ऋषि या स्वयं ईष्वर ने तपस्या या यज्ञादि का षुभ कार्य किया हो। तीर्थों में सरोमणी तीर्थ गंगा स्नान को ही माना गया। श्री गुरुजी ने गंगा का महत्व भी बतलाया है। उन्होंने कलष पूजा मन्त्र में एक जगह गंगा के महत्व को इस प्रकार से समझाया है, श्जैसे पाहल गति गंगा तणी जेकर जाणै कोय। पाप षरीरां झड़ पड़ै पुण्य बहुत सा होय।
उन्होंने अपने भक्तजनों से कहा कि गंगा तो आपके निवास से बहुत दूर होने के कारण आप सभी लोग वहां तक जा नहीं पाते हो और सभी लोगों को गंगा स्नान का लाभ मिल सके। इस लिए श्री गुरुजी ने जम्भ-सरोवर को तीर्थ बतलाया था। एक समय सम्भराथल धौरे पर विराजमान श्री गुरुदेवजी के सम्मुख बैठे हुए महात्मा रणधीर जी आदि भक्तों के पूछने पर उन्होंने जम्भ सरोवर का महत्व समझाया था, वही महत्व महात्मा नाथो जी ने अपने षिष्यश्महात्मा विल्होजी को बतलाया और कहा था कि ध्यान पूर्वक श्रवण कर पावन जम्भ-सरोवर रूपी ज्ञान गंगा में स्नान करने वाले सभी पवित्र हो जायेंगे। उस समय उनके सेवकों और भक्तों ने अपने सतगुरु देव से पूछा कि हे गुरु देव ! हे गुरुदेव तीर्थ कितने हैंघ् उनमें से कौन से तीर्थ में जाकर स्नान करने से पापों से मुक्ति मिल सकती है, जबकि हमारे देष एवं इस जम्बू-द्वीप में तो गंगा, यमुना, सरस्वती, प्रयाग, काषी, अयोध्या, मथूरा, रामेष्वरम्, द्वारावती, जगन्नाथ, केदार, बद्री, पुष्कर आदि अनेकानेक तीर्थ हैघ् इनमें से जो सर्वश्रेष्ठ है, उसी में ही स्नान करें ताकि पाप नष्ट हो और मोक्ष की प्राप्ति हो सके तब श्री गुरु जाम्भोंी ने तीर्थों पर व्याख्यान करते हुए इस प्रकार से कहा, वैसे तो अड़सठ तीर्थ ह्रदय के अन्दर ही है। उन्हीं की खोज करो, अन्यत्र कहां कहां भटकते फिरोगे, ष्षरीर, धन, बल की हानि होगी। आप लोग ह्रदय में स्थित तीर्थों में स्नान करो और यदि इस उच्च स्नान में समर्थ नहीं हो तो मैं तुम्हें आपके निकट स्थित फलोदी मे ही एक महान तीर्थ बतलाता हूं।
तब उपस्थित सेवकों ने गुरुजी से पूछा कि इस फलोदी देश की भूमि किस प्रकार से पवित्र होकर तीर्थ का रूप धारण कर गई। इस विषय में विस्तार से बताने का आग्रह श्री गुरु देवजी से किया। इस भूमि पर किस किस ने यज्ञ किया, किस किस ने पावन कार्य किया और किस किस ने तपस्या की है और कौन कौन भव से पार हुए है ? यदि यह इतनी पावन भूमि है तो अब तक यह लोप या छुपी हुई क्यों रही है अर्थात प्रकट क्यों नहीं हो सकी और इसकी चर्चा वेद-पुराणों में क्यों नहीं हुई और चारों युगों में ऋषि-मुनियों से औझल या छानी क्यों रह गई घ् तब श्री गुरुदेव जाम्भोजी ने विस्तार से बतलाया कि-सातवें कल्प में ब्रह्म सरोदक के नाम से तीर्थ था, जहां पर परमपिता ब्रह्माजी ने यज्ञ की रचना की थी, जहां पर अठासी हजार ऋषि-मुनि यज्ञ मेंष्षामिल होने आये थे, उनमें मार्कण्डेय, दत्त, लोमष आदि ऋषि प्रधान थे।
आज के जम्भ-सरोवर तीर्थ स्थल पर उस समय छः महिने तक निरन्तर हवन किया गया और विषाल वेदी में परनाले से घृत की धरा द्वारा आहुति प्रदान की गई। वहां पर सर्वदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेष, इन्द्र आदि आये थे। उनके चरण कमलों की रज से फलोदी की यह धरा पावन हो गई और महायज्ञ से पवित्र होकर यह स्थल पावन तीर्थ बन गया। जिस प्रकार से नीचे दो साखियां दी जा रही है, जिनमें जम्भ-सरोवर का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है। देखिये महात्मा कृष्णा नन्दजी द्वारा सम्पादित एवं प्रकाषित पुस्तक साखी भावार्थ प्रकाष:-
साखी संख्या-115-जाम्भोलाव की- छपइया
श्री जंभेष्वर धाम, जाय जन धक्का खावै। पाप मिटे पल माय, जहां जम हाथ न लावै ।। लगै चोट धरम डंड, जंम डंड देण न पावै। होम करे कर हेत, सबद जम्भेष्वर का गावै।। माटी काढ़ै प्रेम सूं , जन्म मरण भव दुःख मिटै। श्री जम्भ धाम को परसता, करम जूण खिण में कटै ।।
साखी
कपिल सरोवर नाम, कलियुग तीर्थ थापियो ।
देष फलोदी मांय, भाग परापति पावियो।
भाग परापति पावियो नै, कृपा करी जगदीष।
आदू तीर्थ प्रगट कियो, सही ज बिसवा बीस।
कपिल मुनि तपै यहां नै, तपै ऋषेष्वर जोग।
जम्भ सरोवर नाम अब, परगट कहत सब लोग।
कलियुग तीर्थ थापियो ।।1।। दवापर जुग के मांय, बहु जिग कर हरि पूजियो।
पांडू परमार्थ रूप, वेद व्यासजी नै पूछियो।
वेद व्यासजी नै पूछियो नै, थे कृपा करो भगवान।
दिव्य दृष्टि है आपकी, म्हां सूं कहो बखाण।
ऐसो तीर्थ जगत में, जहां अनन्त गुणों फल होय।
जिंहिं तीर्थ म्हें जिग करां, म्हारी मनसा पूर्ण होय।
वेद व्यास जी नै पूछियो ।।2।।
कलियुग मंझ के मांय, पाप पूरे जग छावसी।
तीर्थ रो घटै प्रभाव, दसो दिस दोष दरसावसी ।
दसो दिस दोष दरसावसी नै, धरम हीण संसार।
श्रुति पुराण भागवत को, मानै नहीं लिंगार ।
धर्म अंग राजा हूवै, पूछै श्रुति विचार।
गोप तीर्थ प्रगट करे, महिमा बधै अपार ।
घर घर मंगल छावसी ।।3।।
कपिल सरोवर नाम, कृत जुग में कह भाखियो।
तीर्थ अधिक अनूप, वेद व्यासजी नै यूं, आखियो।
वेद व्यासजी नै यूं आखियो नै, पांडू चला परदेष।
यज्ञ करण रे कारणै, आया बागड़ देष।
विविध भान्ति सूं यज्ञ कियो, उत्तम तीर्थ जाण।
हेत कर हरि पूजियो, पांडू परम सुजाण ।
जम्भेश्वर यूं आखियो ।।4।।
तीर्थ जाम्भोलाव, हेत कर जहां जाविये ।
हरष करे कर कोड, जाणै रे गंगा न्हाविये।
जाण गंगा नहाण कीजै, माटी सूं चित लाय।
निसार माटी करो पूजा, निंवत साध जिमाय।
विष्णु मन्दिर होम कीजै, परिक्रमा कर प्रीत।
साखी हरजस षब्द गावैे, कर कर उत्सव रीत।
श्री जम्भेश्वर गुण गाविये ।।5।। तीर्थ बड़ो तालाब जहां, जाय सूत फिराविये।
भाव भगति मन सार, सहस गुणों फल पाविये।
सहस गुणों फल पाविये नै, जो सेवै मन काम।
सायुज्य मुक्ति मिले, पावै मन विश्राम।
अड़सठ तीर्थ उुपरां, श्री जम्भ सरोवर घाम।
श्री जम्भेष्वर जी की कृपा से, वरणत गोबिन्द राम।
जहां जाय सूत फिरावियेे ।।6।।
दूसरी बार स्वयं प्रलयंकारी भगवानशंकर ने इस पावन भूमि पर निरन्तर 10 महिने तक यज्ञ किया और 33 करोड़ देवी देवता और ऋषि-मुनि इस यज्ञ में षामिल हुए। यज्ञ में अपार घृतादि सामग्री की आहुति दी गई थी। देवताओं एवं ऋषि-मुनियों ने यज्ञ में जय जयकार किया। यज्ञ पूर्ण हुआ, देवताओं एवं ऋषि-मुनियों ने षंख बजाये, फूलों की वर्षा के साथ गन्धर्वों ने मधुर ध्वनि में गायन किया। जल से परिपूर्ण स्वर्ण कलष सुषोभित वेदी पर रखा गया और पाहल अर्थात अमृत पाहल बनाया गया और इस प्रकार से यह महा यज्ञ सम्पन्न हुआ। देवताओं एवं ऋषि-मुनियों द्वारा हर्ष मनाया गया।
इसी स्थल पर तीसरा यज्ञ बनावास काल में पाण्डवों द्वारा किया गया। उस समय पाण्डवों ने भगवान वेद व्यासजी से पूछा था कि उन्हें कोई ऐसा स्थल बताया जाए, जहां पर जाकर वे यज्ञ करें और उनकी समस्त उत्तम इच्छाएं पूर्ण हो जाये। तब वेद व्यास जी ने जांगल देष में काम्यक वन में यही जम्भ-सरोवर स्थल ही उन्हें बतलाया था। पाण्डवों ने यहां दिव्य वेदी, विषाल यज्ञकुण्ड बनाया था। पाण्डवों द्वारा रचित इस यज्ञ में देवताओं एवं ऋषि-मुनियों के साथ साथ स्वयं षंख-चक्रधारी भगवान श्री कृष्ण ने पधार कर पूजा स्वीकार की थी। ब्रह्माजी ने स्वयं अपने श्रीमुख से वेद-मन्त्रों का उच्चारण किया था। इसी यज्ञ में वेद व्यासजी ने श्रीमद्भागवद् कथा का गान किया था। निरन्तर 18 महिने तक यह यज्ञ चला और इससे तीनों लोक और देवताओं एवं ऋषि-मुनि तृप्त हो गये। भगवान श्री कृष्ण ने पंचानन षंख बजाया था। तब यह दिव्य भूमि यज्ञ से अति पावन हो गई। यह बात भी सत्य है कि वेद-पुराणों में इस पावन स्थल की चर्चा नहीं हुई है।
यही नहीं यहां पर अन्य अनेक पापियों-महापापियों का उद्धार हुआ है। जब श्री गुरु जम्भदेव जी ने अपने श्री मुख से इस महान तीर्थ स्थल जम्भ-सरोवर का महत्व अर्थात महात्मय बताया तो वहां उपस्थित साथरियों ने उस परम पावन जम्भ-सरोवर तीर्थ के दर्षन की इच्छा जताई। साथरियों ने कहा कि वे भी वहां जाकर उस सरोवर की मिट्टी निकाल सकें, यज्ञ कर सके और तपस्या का फल पाकर अपने आप को पावन कर सकें। साथरियों ने श्री गुरुदेव से आग्रह किया कि वे भी उनके साथ वहां उपस्थित रहेंगे तो उनका सौभाग्य अनन्त गुणा फलीभूत हो जायेगा। तब साथरियों की प्रार्थना स्वीकार करते हुए श्री देवजी तपस्यास्थल सम्भराथल धौरे से भक्तों सहित चल पड़े और प्रथम दिन जांगलू के पास जंगल में आसन लगाया। तब वहां पर श्री रणधीरजी ने गुरुदेव से कहा कि अपने बैल प्यासे हैं और यहां जल कहां मिलेगा ? श्री गुरुदेव ने हरे-भरे वृक्ष दिखाते हुए कहा कि थोड़़ी दूरी पर जो वृक्ष दिखाई दे रहें हैं, वहां पर षुद्ध जल मिलेगा। तब महात्मा रणधीरजी ने कहा गुरुदेव वहां पर तो जल नहीं है, इस भूमि का मैं चप्पा चप्पा जानता हूं। तब श्री गुरुदेव ने कहा अरे भक्त ! वहां जाओ, तुम्हे अवष्य ही वहां जल की प्राप्ति होगी। जब रणधीरजी बैलों को लेकर पहुंचे तो वहां का तालाब लबालब जल से भरा हुआ मिला। बैलों को जल पिलाया और षुद्ध जल लेकर वापिस आये, सतगुरु देव की लीला को धन्यवाद दिया।
जांगलू में जिस स्थल पर श्री गुरुदेवजी ठहरे थे वह स्थल साथरी बन गया और जहां जल की प्राप्ति हुई है वह वरसिंहवाली नाडी अथवा वरसिंहवाला तालाब कहलाता है। एक रात्रि जांगलू की साथरी विश्राम करके दूसरे दिन आगे चल पड़े। दूसरी षाम को खींदासर में निवास किया, जहां पर लोहा पांगल को बिष्नोई बनाने के बाद रूपा सींवर नाम देकर पहले धरनौक गांव में प्याऊ पर और बाद में खींदासर में भण्डारी बनाकर भेजा था। वहां के लोगों ने श्री गुरुदेव का बहु विधि आदर सत्कार किया और रूपैजी सींवर ने भी अपने आपको धन्य माना कि उनके गुरुदेव वहां पहुंचे हैं। तीसरे दिन षाम को परम-पावन यज्ञभूमि और पावन तीर्थ जम्भ-सरोवर अर्थात जाम्भोलाब पहुंचे और उस पावन स्थल को महान तीर्थ बनाया अर्थात एक महान लुप्त तीर्थ को पुनः प्रकट कर दिया। जम्भ-सरोवर की खुदाई कार्य विक्रमी सम्वत् 1566 आसोज कृष्ण पक्ष और पुष्य नक्षत्र पंचमी वार बृहस्पतिवार को प्रारम्भ की । जैसलमेर के राजा जैतसी को समाचार मिला कि उनके ईष्ठ-देवता श्री गुरु जम्भदेवजी आजकल फलोदी के पास आये हुए हैं और परोकारार्थ सरोवर की खुदाई का कार्य करवा रहे हैं। तब राजा जैतसी उस महा पुण्य के कार्य में भाग लेने के लिए अपने सेवको सहित जम्भोलाव श्रीदेवजी के पास पहुंचे। प्रणामादि मर्यादा का पालन करते हुए जम्भसरोवर की खुदाई में अपनी भागीदारी सुनिष्चित करने के लिए श्री गुरुदेव से प्रार्थना की। श्रीदेवजी की आज्ञानुसार जैतसी तालाब खुदाई के कार्य में संलग्न हो गये। स्वयं राजा भी सेवा कार्य करते जा रहे थे तब प्रजा तो उनसे भी आगे बढ़ कर खुदाई कार्य के लिए लालायित हो रही थी। वे सब दिन भर मिट्टी निकालते, पाळ बन्धाई का कार्य करते और सायंकाल श्री देवजी कमलाषन पर विराजमान होते, उनके पास पंथ जमात के लोग एकत्रित होते, उस पावन जाल के वृक्ष के नीचे बैठ कर सदुपदेष सुनते, सेवा-कार्य एवं सतसंग श्रवण करते और पावन तीर्थ पर आम लोग अपने आपको अति कृतार्थ अनुभव करते।
श्रीगुरुदेव जी ने बताया था कि इस परम पावन सरोवर की खुदाई करने वाला महा पुण्य का भागीदार बनता है। इस पावन स्थल पर सिद्ध सरोमणि कपिल मुनि ने तपस्या की थी। इसी स्थल पर पावन ग्रन्थ सांख्य षास्त्र की रचना की गई थी। गुरुदेव ने बताया कि वे जो जाल का वृक्ष देख रहे हैं यह वही पावन वृक्ष हैं, जिसके नीचे कपिल मुनि का आसन था। इस सरोवर में स्नान करने और मिट्टी निकालने से महा पुण्य फल मिलता है। एक बार फलोदी के एक करोड़पति सेठ श्री चन्द, तीन पुत्रों एवं एक कन्या की भाग्यवष दुर्गति हो गई। स्वयं ब्रह्माजी के लिखा हुआ लेख दुर्भाग्य यहां स्नान करने से सौभाग्य बन गया। विपति एवं दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने वाला है यह स्थल। कर्णमाल ़ऋषि का तपस्या स्थल भी यही जम्भ-सरोवर स्थल ही था। इसी पावन भूमि पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जन्म-जन्मान्तरों में हुए पाप कर्मों को यहां स्नान ध्यान करके धो डाला था।
एक सुखनिया नामक हिंसक षिकारी जीव अनजाने में कहीं से भटकता हुआ इस पावन तीर्थ पर आ गया। वह बहुत प्यासा था, यहां जल पी लिया, अचानक चमत्कार हुआ हिंसा के प्रति मन ग्लानी से भर गया और ईष्वर से प्रार्थना करते हुए हिंसा छोड़ दी। फिर तो मिट्टी निकाली और बार बार स्नान किया। इस तीर्थ के प्रभाव से उसकी बुद्धि हमेषा के लिए षुद्ध हो गई। पूर्व जन्म के कुछ अच्छे कर्म थे जो जम्भ-सरोवर पर आ कर फल देने में समर्थ हो गये। पावन जल के प्रभाव से एक दयावान मानव बन करके पालनहार भगवान विष्णु के परमप्रिय भक्त बन गया और मोक्ष का अधिकारी बना।
यही नहीं इस तीर्थ पर वस्त्र दान का बहुत महत्व है। पांचाली अर्थात द्रोपदी अपने पूर्व जन्म में अपनी सहेलियों के साथ इस तीर्थ स्थल पर स्नान करने आई थी। उस समय एक ऋषि इस सरोवर में स्नान कर रहे थे, उनके पास उस समय मात्र एक लंगोटी के लिए वस्त्र नहीं था। वे उन कन्याओं को देख कर संकोच वष जल से बाहर नहीं आ पाये, द्रोपदी इस बात को समझ गई। उसने अपने चीर का एक टुकड़ा फाड़ कर ऋषि की ओर फेंक दिया। ऋषि उस वस्त्र की लंगोटी पहन कर बाहर आये और प्रस्थान कर गये। दूसरे जन्म में वस्त्र दान देने वाली कन्या ने द्रोपदी के रूप में जन्म लिया। कौरवों की सभा में दुस्षासन द्वारा जब द्रोपदी का चीर हरण होने लगा तो वस्त्रदान के प्रभाव से द्रोपदी की पुकार सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी का चीर बढ़ा दिया था।
श्री गुरुदेव जी उपथित जनसमूह को जम्भ-सरोवर का महत्व बतला ही रहे थे कि उनके सामने अल्लूजी चारण हाथ जोड़े उपस्थित हुए और प्रार्थना करने लगे:-
वेद जोग्य वैराग खोज, दीठा नर नंगम। सन्यासी दरवेष सेष, सोफी अरू जंगम ।।
विधा वियापी मोही आजा, आसा कर आयो। पाणी पियो एक बार, पेट सुख पर्चो पायो।। पांचवा वेद संभल्या षब्द, चार वेद होता चलूं । कैवली जम्भ सांभल कवल, आज साच पायो अलूं।।
अल्लूजी चारण जोधपुर राज्य के रहने वाले प्रसिद्ध कवि थे। उन्हें जलोदर रोग हो गया था। इलाज के लिए अनेकानेक जगह पर भटक चुके थे मगर कोई आराम नहीं हुआ। अल्लूजी ने सुना था कि एक वैद्य मुल्तान में रहता है, वे वहां भी गये। परन्तु कोई इलाज नहीं हुआ। एक वर्ष तक दवाइयां ली किन्तु सब व्यर्थ गया। वहां से चल कर लाहौर आये वहां पर एक सूफी से दवा ली मगर उदर रोग घटने की बजाये बढ़ता ही गया। वहां चल क रवह हिमाचल प्रदेष के कांगड़ा पहुंचा, वहां पर एक सिद्ध नाथ रहता था। उनसे आषीर्वाद लिया, जंतर मंतर करवाया लेकिन जलोदर रोग में कमी की बजाय बढ़ता ही गया। वहां चल कर इन्द्रप्रस्थ आये, जहां एक मुल्ला से इलाज करवाया पर फिर भी कुछ फल नहीं मिला। वहां से आगे मथूरा में आये, वहां एक गोंसाई मुनि बाबा का नाम सुना था, उनके पास लगभग एक मास तक रहे मगर रोग घटने के स्थान पर बढ़ता ही जा रहा था। वहां स ेचल कर जयपुर गये जहां एक सन्यासी के प्रति श्रद्धा अर्पित की। फिर वहां चल कर अजमेर आया परन्तु कहीं भी कोई लाभ नहीं हुआ, वहां से आगे मण्डौर आया और एक नाथ के चरणों में सिर झुकाया, सेवा की और रोग निवृति की प्रार्थना की पर निरोग नहीं हो सका। वहां से चल कर पोकरण् ळोते हुए फलौदी आया और दो तपस्वियों को अपनी कर्मा रेखा दिखाई तो उन्होंने भी 16 दिन अपने पास रखा परन्तु सब व्यर्थ गया। जब मरने की नौबत आई और कहीं कोई जीवन की आषा नहीं बची तब अल्लूजी चारण को चारपाई पर डाल कर जम्भ-सरोवर पर गुरुदेव के पास लाये और पावन तीर्थ में स्नान करवाया, तब श्री देवजी जाल के वृक्ष के नीचे विराजमान थे। उसी समय अल्लूजी चारण अस्तुति करने लगे और घोर निराषा प्रकट कर रहे थे। वे जीवन की आषा छोड़ चुके थे। आंखों से अश्रूधारा बह रही थी। तब श्री गुरुदेवजी ने अपने षिष्यों से कहा जाओ सरोवर स ेजल लेकर आओ। षिष्यजनज ल लाये और गुरुदेव जी ने स्वयं उसे स्नान करवाया और थोड़ा जल उसे पिलाया। अल्लूजी चारण देखते ही देखते बिल्कुल स्वस्थ हो गया। वह स्तुति करने लगा। अल्लूजी चारण हजूरी कवियों में महान कवि हुए है। जैसलमेर की यात्रा में तेजोजी चारण श्री गुरु जाम्भोजी के साथ गया था। वहीं पर कुछ ग्वाल चारणों ने बिष्नोइयों के बारे में कुछ प्रसन्न किये। उनका समुच्चित उत्तर तेजोजी ने ही दिये थे। स्वयं तेजोजी को कुष् रोग हो गया था। गुरुदेव तालाब खुदवा रहे थे। तेजोजी जम्भ-सरोवर पर ही गुरुदेव के सम्मुख हुए थे। उसने वहां जम्भ-सरोवर में स्नान करने की कोषिष की परन्तु लोगों ने उसे वहीं स्नान नहीं करने दिया। तब गुरुदेव ने अपने चेले निहाल दासजी को बुलवाया और कहा सरोवर से एक झारी भर कर ले आओ तथा इन्हें स्नान करवाओ। इस स्नान से रोग पूर्णतः नष्ट हो जायेगा। जब उनके षरीर पर जल डाला गया तो कुष्ट रोग धुल गया और तेजोजी स्वस्थ हो गये। कवि तेजो ने हाथ जोड़े और स्तुति करने लगे:-
तेजोजी चारण द्वारा गुरु जाम्भोजी की स्तुति
हे गुरु जम्भेष्वर परम दयालु, आपकी जय जय कार हो। आप तो सत्चित आनन्द स्वरूप् स्वयं ही इच्छा से मूर्त रूप धर कर आये हैं। आप स्वयं सन्तोषी और दूसरों का पालन-पोषण करने वाले जगत नियन्ता स्वामी हो।
हे देव ! हम आपकी महिमा गायें, आप तो सत्य स्वरूप हो। हम सांसारिक प्राणी अनेक पापकर्मों के बन्धनों में बन्धे कैसे सत्य की स्तुति कर सकते है।
आपने मुझे कोढ़ रूपी नरक से बाहर निकाला है, आप तो कल्पवृक्ष स्वरूप हो। आपके पास जो आता है वह खाली हाथ नहीं जाता है। जो सुरधेनू की सेवा करे वह तो मनवांछित फल पाता है। यदि कोई अपने पास पारष मणि रखे तो उसकी दरिद्रता स्वतः ही मिट जाती है । मैं आपकी षरणागति हो चुका हूं, आप मुझे जो आज्ञा देंगे वही मैं करूंगा। ऐसा कहते हुए तेजोजी चारण श्रीगुरुदेव के चरणों में गिर पड़ा।
इस अवसर पर इस जानकारी में श्री बिष्नोई सभा, पंचकूला के अध्यक्ष श्री अचिंत राम गोदारा तथा श्री बिष्नोई सभा, हिसार के अध्यक्ष श्री सुभाश जी देहड़ू के साथ सहमति देने वालों में श्री बिष्नोई सभा, टोहाना के अध्यक्ष श्री आसा राम लोहमरोड़, श्री बिष्नोई सभा, आदमपुर के अध्यक्ष श्री बुलसिंह बैनीवाल, श्री बिष्नोई सभा, रतिया के अध्यक्ष श्री रामस्वरूप बैनीवाल, श्री बिष्नोई सभा, फतेहाबाद के अध्यक्ष श्री भूपसिंह बिष्नोई आदि षामिल है। इन सभी ने इस अवसर को बहुत ही लाभदायक एवं समाज के हित में बताया है।
(पृथ्वीसिंह बैनीवाल बिश्नोई)
सस्थापक सदस्य राष्ट्रीय जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर तथा संयुक्त सचिव एवं प्रैस प्रभारी , श्री बिश्नोई सभा, पंचकूला,
म.नं. 189-एफ, सैक्टर-14, पंचकूला-134113 (हरियाणा) मो.नं.-94676-94029
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