विनोद जम्भदास
अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के पंजाब
प्रदेशाध्यक्ष श्री आर.डी. बिश्नोई 12 सितम्बर, 2015 को
कहीं जा रहे थे। अमावस्या का समय था, जाम्भाणी धर्म
परायण श्री आर.डी. विष्णु-विष्णु का जप कर रहे थे तभी
इनके फोन की घंटी बजी और समाचार मिला कि रायपुरा गांव
के पास कुछ शिकारी लोग शिकार कर रहे हैं, इन्होंने तुरंत
वन्य जीव संरक्षण विभाग और अन्य लोगों को सूचित किया
तथा स्वयं अकेले ही उस ओर चल पड़े। जब शिकारियों ने
इन्हें आते देखा तो वे भाग खड़े हुए इन्होंने अपनी गाड़ी
शिकारियों के पीछे लगा दी, आगे जाकर कच्चे मार्ग में
शिकारियों की गाड़ी रूक गई, वे तीनों हथियार लिये हुए थे
और ये अकेले निहत्थे थे।
शिकारियों ने इनके ऊपर हवाई फायर किये और इन्हें
डराने की कोशिश की, इन्होंने शिकारियों के सामने छाती तान
दी कि इन वन्य जीवों को नहीं मारने दूँगा। इन्होंने झपट्टा
मारकर एक शिकारी का पिस्तौल छीन लिया और उसे नीचे
गिरा लिया, उसके साथ इनका पन्द्रह मिनट तक मल्लयु(
होता रहा। इस बीच दूसरे शिकारी ने इन पर सीधे तीन बार
फायर किये पर सौभाग्य से ये बचते रहे, इन्होंने बताया कि ना
तो मैंने विष्णु का जाप छोड़ा और ना ही उस शिकारी को छोड़ा,
मुझे प्रत्यक्ष लग रहा था कि कि आज किसी हालत में बचना
मुश्किल है पर डर बिल्कुल नहीं लग रहा था, बल्कि उन तीन
आदमियों से अकेले लड़ते हुए ऐसी हिम्मत आ गई थी कि उन
तीनों पर अकेला बिना हथियार ही भारी पड़ रहा था।
आसपास के खेतों में काम करने वाले लोगों ने भी बाद में
बताया कि हमने ऐसा दृश्य केवल फिल्मों में ही देखा था। श्री
आर.डी. बिश्नोई ने शिकारियों के साथ जूझते बीस मिनट
निकल गए तब जीव रक्षा विभाग और दूसरे लोगों की गाडि़याँ
आती देखकर शिकारी अपनी गाड़ी और हथियार वहीं छोड़
कर भाग गए। विभाग और पुलिस ने इनको अपने कब्जे में ले
लिया। सर्वत्र श्री बिश्नोई के साहस की प्रशंसा होने लगी।
वन्य जीवों की रक्षा की बात हो या गोरक्षा
आर. डी. बिश्नोई दिन-रात सक्रिय रहते
हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के सख्ती से
लागू होने के बावजूद भी शिकारी कितने
दुःसाहस के साथ शिकार करते हैं और
बिश्नोइयों को जान पर खेलकर इन जीवों
की रक्षा करनी पड़ती है। क्या हम आज भी राजा -महाराजा
और सामन्ती युग में जी रहे हैं? क्या बिश्नोइयों के अलावा
दूसरे लोग खासकर इन जीवों को मारकर अपना पेट भरने
वाले इन जीव हत्यारों का फर्ज नहीं बनता की विलुप्त होती इन
प्रजातियों को अगर हमने नहीं बचाया तो कल आने वाली
पीढ़ी इन जीवों के चित्र केवल किताबों में ही देखेगी और इन
शिकारियों की तरह ही खतरनाक हैं कुत्ते जो इन जीवों के
खात्मे में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। जाने-अनजाने में
खेतों की सुरक्षा में लगे ब्लेड वाले तार भी इन जीवों के लिये
जानलेवा साबित हो रहे हैं। बड़े ही शर्म की बात है कि धरती
के सबसे समझदार प्राणी-मनुष्य की नासमझी के कारण
जीवों की हजारों प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और बची हुई
अपने अस्तित्व के लिये जूझ रही हैं। साधुवाद के पात्र आरडी.
बिश्नोई जिन्होंने इस जाम्भाणी परम्परा को आगे बढ़ाते
हुए इन मासूम, निरीह वन्यजीवों के लिये अपनी जान की
परवाह न करते हुए शिकारियों से लोहा लिया। बिश्नोई सभा
पंजाब के प्रधान श्री गंगाबिशन जी भादू ने समाज के गणमान्य
लोगों की मौजूदगी में बिश्नोई मन्दिर, अबोहर में आर.डीबिश्नोई
के कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और बिश्नोई
समाज के वन्यजीव और पर्यावरण संरक्षण के अभियान को
और तेज करने पर बल दिया ताकि इस धरती पर सभी जीव
स्वच्छंद और निर्भयता से विचरण कर सके।
-विनोद जम्भदास
हिम्मतपुरा, तह. अबोहर, जि. फाजिल्का ;पंजाबद्ध
साभार अमर ज्योति पत्रिका
अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के पंजाब
प्रदेशाध्यक्ष श्री आर.डी. बिश्नोई 12 सितम्बर, 2015 को
कहीं जा रहे थे। अमावस्या का समय था, जाम्भाणी धर्म
परायण श्री आर.डी. विष्णु-विष्णु का जप कर रहे थे तभी
इनके फोन की घंटी बजी और समाचार मिला कि रायपुरा गांव
के पास कुछ शिकारी लोग शिकार कर रहे हैं, इन्होंने तुरंत
वन्य जीव संरक्षण विभाग और अन्य लोगों को सूचित किया
तथा स्वयं अकेले ही उस ओर चल पड़े। जब शिकारियों ने
इन्हें आते देखा तो वे भाग खड़े हुए इन्होंने अपनी गाड़ी
शिकारियों के पीछे लगा दी, आगे जाकर कच्चे मार्ग में
शिकारियों की गाड़ी रूक गई, वे तीनों हथियार लिये हुए थे
और ये अकेले निहत्थे थे।
शिकारियों ने इनके ऊपर हवाई फायर किये और इन्हें
डराने की कोशिश की, इन्होंने शिकारियों के सामने छाती तान
दी कि इन वन्य जीवों को नहीं मारने दूँगा। इन्होंने झपट्टा
मारकर एक शिकारी का पिस्तौल छीन लिया और उसे नीचे
गिरा लिया, उसके साथ इनका पन्द्रह मिनट तक मल्लयु(
होता रहा। इस बीच दूसरे शिकारी ने इन पर सीधे तीन बार
फायर किये पर सौभाग्य से ये बचते रहे, इन्होंने बताया कि ना
तो मैंने विष्णु का जाप छोड़ा और ना ही उस शिकारी को छोड़ा,
मुझे प्रत्यक्ष लग रहा था कि कि आज किसी हालत में बचना
मुश्किल है पर डर बिल्कुल नहीं लग रहा था, बल्कि उन तीन
आदमियों से अकेले लड़ते हुए ऐसी हिम्मत आ गई थी कि उन
तीनों पर अकेला बिना हथियार ही भारी पड़ रहा था।
आसपास के खेतों में काम करने वाले लोगों ने भी बाद में
बताया कि हमने ऐसा दृश्य केवल फिल्मों में ही देखा था। श्री
आर.डी. बिश्नोई ने शिकारियों के साथ जूझते बीस मिनट
निकल गए तब जीव रक्षा विभाग और दूसरे लोगों की गाडि़याँ
आती देखकर शिकारी अपनी गाड़ी और हथियार वहीं छोड़
कर भाग गए। विभाग और पुलिस ने इनको अपने कब्जे में ले
लिया। सर्वत्र श्री बिश्नोई के साहस की प्रशंसा होने लगी।
वन्य जीवों की रक्षा की बात हो या गोरक्षा
आर. डी. बिश्नोई दिन-रात सक्रिय रहते
हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के सख्ती से
लागू होने के बावजूद भी शिकारी कितने
दुःसाहस के साथ शिकार करते हैं और
बिश्नोइयों को जान पर खेलकर इन जीवों
की रक्षा करनी पड़ती है। क्या हम आज भी राजा -महाराजा
और सामन्ती युग में जी रहे हैं? क्या बिश्नोइयों के अलावा
दूसरे लोग खासकर इन जीवों को मारकर अपना पेट भरने
वाले इन जीव हत्यारों का फर्ज नहीं बनता की विलुप्त होती इन
प्रजातियों को अगर हमने नहीं बचाया तो कल आने वाली
पीढ़ी इन जीवों के चित्र केवल किताबों में ही देखेगी और इन
शिकारियों की तरह ही खतरनाक हैं कुत्ते जो इन जीवों के
खात्मे में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। जाने-अनजाने में
खेतों की सुरक्षा में लगे ब्लेड वाले तार भी इन जीवों के लिये
जानलेवा साबित हो रहे हैं। बड़े ही शर्म की बात है कि धरती
के सबसे समझदार प्राणी-मनुष्य की नासमझी के कारण
जीवों की हजारों प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और बची हुई
अपने अस्तित्व के लिये जूझ रही हैं। साधुवाद के पात्र आरडी.
बिश्नोई जिन्होंने इस जाम्भाणी परम्परा को आगे बढ़ाते
हुए इन मासूम, निरीह वन्यजीवों के लिये अपनी जान की
परवाह न करते हुए शिकारियों से लोहा लिया। बिश्नोई सभा
पंजाब के प्रधान श्री गंगाबिशन जी भादू ने समाज के गणमान्य
लोगों की मौजूदगी में बिश्नोई मन्दिर, अबोहर में आर.डीबिश्नोई
के कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और बिश्नोई
समाज के वन्यजीव और पर्यावरण संरक्षण के अभियान को
और तेज करने पर बल दिया ताकि इस धरती पर सभी जीव
स्वच्छंद और निर्भयता से विचरण कर सके।
-विनोद जम्भदास
हिम्मतपुरा, तह. अबोहर, जि. फाजिल्का ;पंजाबद्ध
साभार अमर ज्योति पत्रिका
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