आर के बिश्नोई
दिल्ली15 वीं शताब्दी में जब मानवता कई प्रकार के दुखों, कष्टों, अंधविश्वासों, पाखण्डों, अत्याचारों , दुविधा इत्यादि से पीड़ित थी। राजस्थान में भी लोग एक तरफ अकाल से मनुष्य व् पशु पक्षी पीड़ित थे। दूसरी तरफ निरकुंश शासकों व् अधिकारीयों से त्रस्त थे, धर्मगुरुओं द्वारा फैलाये गए पाखण्डों व् कर्मकांडो से शोषित थे। इस दुविधा व् कष्ठ की घड़ी में मानव का ईश्वर, प्रकृति व् मानव से भी विश्वास उठ चूका था इसलिए हिंसा, चोरी, लूट खसोट, धर्मान्तरण, घृणा, द्वेष, अविश्वास, आम बात थी। भोले भाले किसान सबसे ज्यादा नुकसान में थे। गुरु नानक जी ने पंजाब में सच्चे धर्म की अलख जगाई व् सिख्ख धर्म की स्थापना की वहीं राजस्थान में उसी समय सन्न 1484-85 के भयंकर अकाल में जब लोग अपने घर छोड़कर पशुओं को साथ लाकर मालवा, गुजरात की तरफ पलायन कर रहे थे तब गुरु जाम्भोजी ने उन्हें अकाल राहत सहायता प्रदान की व् उनके दुःख स्थाई रूप से दूर करने के लिए बिश्नोई नामक मानवता का पंथ चलाया। यह पंथ किसी जाति या धर्म विशेष के लिए नहीं था बल्कि पूरी मानव्ता के लिए था। गुरु जाम्भोजी ने प्रकृति की गोद व् थार मरुस्थल में मनुष्य, पशु पक्षी, पेड़ पोधों के साथ रहकर इनके आपसी व् प्रकृति से इनके सम्बन्ध व् लोगों के दुःख व् उनकी जरुरतों को समझा। भीषण अकालों के कारणों को जाना व् उपाय बताये।
गुरु जाम्भोजी द्वारा बताये 29 नियम व् सबदवानी में शामिल उनकी शिक्षाएं पूरी मानवता के लिए उपयोगी हे। वो आज भी उतनी ही प्रासंगिक हे जितनी 530 वर्ष पूर्व थी। बल्कि आज उनकी ज्यादा जरूरत हे। अगर उनकी शिक्षाओं पर चला जाये तो आज के समय की मानवता की व् विश्व की हर समस्या का समाधान मौजूद हे। ये आपसी प्रेम, भाईचारा, शांति के सन्देश देती हे।
गुरु जाम्भोजी ने जाति पाती , उंच नीच व् जन्म के भेदभाव व् दिखावे को त्यागकर कर्म के सिद्धान्त पर बल दिया। उन्होंने जीने की ऐसी जुक्ति (आर्ट ऑफ़ लिविंग) बताई जिस पर चल कर कोई भी मनुष्य सफल जीवन व्यतीत कर सकता हे व् मरने के बाद मोक्ष प्राप्त कर सकता हे।
गुरु जाम्भोजी जी वाणी को पांचवा वेद माना जाता हे क्योंकि इसमें सभी वेदों, उपनिषदों, पुराणों, धर्म ग्रंथों का सार हे। ऐसे संमन्यवादी गुरु व् पंथ विरले ही हे।
गुरु जाम्भोजी की शिक्षाओं व् बिश्नोइज्म के सिद्धान्तों को अगर कुछ श्रेणियों में बांटे जाएँ तो वो इस प्रकार हे :-
1. स्वास्थ्य व् शुद्धता के लिए :-
30 दिन सूतक, 5 दिन रजस्वला, सुबह स्नान करना, नशे (अमल, तम्बाकू, भांग, शराब) का सेवन नहीं करना, शाकाहारी भोजन खाना, साफ पानी पीना , उपवास रखना, साफ व् श्वेत वस्त्र पहनना, योग व् प्राणायाम करना, कम भोजन खाना, जल्दी सोना व् जल्दी उठना,
2. प्रकृति (वन व् वन्य पशु) व् पर्यावरण सरंक्षण के लिए :-
जीवों पर दया करना, हरे वृक्ष नहीं काटना, हवन/यज्ञ करना, ईंधन के साथ जीवों को नहीं जलाना, जल का सरंक्षण करना, नदी नालों व् घाटों को साफ रखना, प्रकृति से प्रेम, वर्षा के पानी को संचित करना,
3. सुखी व् सफल जीवन व खुशी के लिए :-
संतोष रखना, क्षमा करना, दया करना, फालतू वाद विवाद नहीं करना, क्रोध नहीं करना, काम को वश में रखना, लालच नही करना, झगड़ा नहीं करना, दुविधा में नहीं रहना, सहज जीवन, मेहनत से अच्छी खेती करना, सही रस्ते पर चलना, सही ढंग से रहना, अपनी सकारात्मक ऊर्जा को बर्बाद नहीं करना, ज्ञान अर्जित करना, निरंतर प्रयास करते रहना व् अनुभव/विशेषता प्राप्त करना, उधेश्य को धयान में रखकर कार्य करना, विधि/तरीके से जीना, , जागते रहो(सावधान /सचेत रहो), संयम रखना, हर्षित रहना, मीठे वचन बोलना, परिवर्तन के नियम को मानना, अपनी रक्षा के इंतजाम करना, नमृता का पालन करना, मनहठी नहीं बनना, अपने रहने व् कार्य क्षेत्र को साफ रखना,
4. नेतिक मूल्यों व् नेतिक जीवन के लिए :-
शील(चरित्र) पालन, चोरी नहीं करनी, निंदा नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, घमण्ड नहीं करना, अपने हक की कमाई खाना, स्त्री पुरुष को बराबर के अधिकार, मर्यादा में रहना, अच्छी संगति में रहना, अपनी कथनी व् करनी को एक रखना, पहले खुद कर के दिखाना तब दूसरों को उपदेश देना, सुपात्र को दान करना, सिर्फ ग्रंथो को पढ़कर ही घमण्ड नहीं करना बल्कि उन पर अमल भी करना, सत्कर्म करना, परमार्थ व् लोक कल्याण के कार्य करना, धोखा नहीं देना, गरीबों की मदद करना, मन में मेल नहीं रखना, पाप नहीं करना,पाखण्डी लोगों से सावधान रहना, वचन का पक्का होना, मर्यादा में रहना, प्रकाश की तरफ चलना,
5. अध्यात्मक जीवन के लिए :-
दोनों समय विष्णु का जप-ध्यान करना, मोह नहीं रखना, प्राणायाम व् योग करना, पाखण्डों को नहीं मानना, मूल(निराकार विष्णु) की आराधना करना,
पहले खुद करिये फिर दूसरों को समझाइये का पालन करते हुए गुरु जाम्भोजी ने तालाबों का निर्माण किया, पेड़ लगवाये, बाँधों का उद्घाटन किया, गरीब व् पीड़ितों की सहायता की। गुरु जाम्भोजी पुरे विश्व को अपना मानते थे।
गुरु जाम्भोजी ने कहा था क़ि धरती मेरे ध्यान में हे व् बनस्पति में मेरा निवास हे।
गुरु जाम्भोजी की पर्यावरण सरंक्षण की शिक्षाओं पर चलते हुए सैंकड़ों बिश्नोईयों ने पेड़ों व् वन्य जीवों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। यह बलिदान सदियों से आजतक जारी हे।
अगर हम गुरु जाम्भोजी की शिक्षाओं पर चलें तो सिर्फ हमारा ही नही पूरी मानवता का भला हो सकता हे।
हम सबका फर्ज बनता हे कि गुरु जाम्भोजी की सम्पूर्ण मानवता के भले के लिए दी गयी शिक्षाये हम स्वंय भी पालन करें व् हर एक माध्यम का इस्तेमाल कर पुरे विश्व में फेलायें ताकि पूरी मानवता व् विश्व का कल्याण हो।
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