”परलोक का प्रछन्न कपाट“ गुरु जाम्भोजी द्वारा बिश्नोई
पंथ प्रवत्र्तन की पवित्र वसुधा, मृदु मृदास्तूप का स्वर्णिम सा
पावन शीर्ष-संभराथल। इसी ऐतिहासिक बालूका-शिखर
के पूर्वोत्तरीय भौगोलिक ढलान-तट में अवस्थित है
संभराथल तलहटी। ‘हरी कंकेहड़ी मंडप मैड़ी’ मरु के
शुष्क वानस्पतिक आंगन में, अदम्य जीवट के पादप,
कंकेहड़ी की मनोरम शृंखला के मध्य छोटी सी
जलाशयनुमा संरचना। प्रचलित किंवदती के अनुसार इसी
स्थान पर ”पूल्होजी नै प्रभु स्वर्ग दिखाए“ जांभोजी ने अपने
प्रारंभिक अनुयायियों का साक्षात्कार, स्वर्ग दृश्यों से कराया
था। एक अन्य जनश्रुति के अनुसार यहीं पर ही, गुरु जी ने
बेमौसम वर्षा का दिव्य व चमत्कारिक प्रयोग मानव
कल्याण हेतु किया था- ”बिन बादल प्रभु इमिया झुरायै“
दुर्भिक्षपीडि़त जनसमुदाय के मालवा पलायन को रोकने हेतु
अन्न-जल का प्रबंध इसी तलहटी में हुआ था। आज भी
आस्थावान श्र(ालु, मुकाम- समराथल तीर्थयात्रा के समय,
स्वर्गारोहण का स्वप्न- अभिलाषा मन में संजोए, इस पवित्र
तलाई से मृदा उत्खनित कर, श्री गुरु के आसन समराथल
शिखर पर अर्पित करते हैं। वस्तुतः महान् दिव्यात्मा गुरु
जांभोजी के प्रति, अगाध श्र(ा व अटूट आस्था देखिए,
बाल-तरुण-वृ( नर-नारियो ं का श्र(ासिक्त
जनसैलाब-पीठ पर पवित्र मृदा की पोटली लिए,
दुरुह-दुर्गम सा उध्र्वाधर आरोहरण कर, सपरिश्रम-सोत्साह
शिखर पर पहुँच, एकाकार की अनुभूति में मंत्रमुग्ध हो
जाता है। तलहटी की अलौकिक मृदा से भाल-तिलक का
जी चाहता है।
शंकर बिश्नोई
भोजाकोर ;फलौदीद्ध मो. 9413509229
साभार अमर ज्योति पत्रिका
पंथ प्रवत्र्तन की पवित्र वसुधा, मृदु मृदास्तूप का स्वर्णिम सा
पावन शीर्ष-संभराथल। इसी ऐतिहासिक बालूका-शिखर
के पूर्वोत्तरीय भौगोलिक ढलान-तट में अवस्थित है
संभराथल तलहटी। ‘हरी कंकेहड़ी मंडप मैड़ी’ मरु के
शुष्क वानस्पतिक आंगन में, अदम्य जीवट के पादप,
कंकेहड़ी की मनोरम शृंखला के मध्य छोटी सी
जलाशयनुमा संरचना। प्रचलित किंवदती के अनुसार इसी
स्थान पर ”पूल्होजी नै प्रभु स्वर्ग दिखाए“ जांभोजी ने अपने
प्रारंभिक अनुयायियों का साक्षात्कार, स्वर्ग दृश्यों से कराया
था। एक अन्य जनश्रुति के अनुसार यहीं पर ही, गुरु जी ने
बेमौसम वर्षा का दिव्य व चमत्कारिक प्रयोग मानव
कल्याण हेतु किया था- ”बिन बादल प्रभु इमिया झुरायै“
दुर्भिक्षपीडि़त जनसमुदाय के मालवा पलायन को रोकने हेतु
अन्न-जल का प्रबंध इसी तलहटी में हुआ था। आज भी
आस्थावान श्र(ालु, मुकाम- समराथल तीर्थयात्रा के समय,
स्वर्गारोहण का स्वप्न- अभिलाषा मन में संजोए, इस पवित्र
तलाई से मृदा उत्खनित कर, श्री गुरु के आसन समराथल
शिखर पर अर्पित करते हैं। वस्तुतः महान् दिव्यात्मा गुरु
जांभोजी के प्रति, अगाध श्र(ा व अटूट आस्था देखिए,
बाल-तरुण-वृ( नर-नारियो ं का श्र(ासिक्त
जनसैलाब-पीठ पर पवित्र मृदा की पोटली लिए,
दुरुह-दुर्गम सा उध्र्वाधर आरोहरण कर, सपरिश्रम-सोत्साह
शिखर पर पहुँच, एकाकार की अनुभूति में मंत्रमुग्ध हो
जाता है। तलहटी की अलौकिक मृदा से भाल-तिलक का
जी चाहता है।
शंकर बिश्नोई
भोजाकोर ;फलौदीद्ध मो. 9413509229
साभार अमर ज्योति पत्रिका
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