मानव मन की शांति का केन्द्र - श्री विष्णुधाम

चन्द्रभान बिश्नोई ;अध्यापक
प्रड्डति हित त्याग और बलिदान के लिए
विश्वविख्यात बिश्नोई समाज सम्पूर्ण विश्व में अपनी
एक विशिष्ट पहचान रखता है। राजस्थान के बीकानेर
स्थित मुक्तिधाम मुकाम, जहाँ बिश्नोई समाज का
‘महाकुम्भ’ है वहीं जोधपुर जिले में स्थित जांभोलाव धाम
समाज का ‘हरिद्वार’ है। लोदीपुर धाम, रोटू और लालासर
धाम भी अपनी विशिष्टता के लिए जाने जाते हैं।
बिश्नोई समाज के प्रमुख स्थलों में एक अति
महत्त्वपूर्ण नाम विगत कुछ महीनों में सामने आया है, वो
ह-ै श्री विष्णध्ु ााम तालछापर, समाजका साभ्ै ााग्य है किकछु
विलम्ब सेही सही, परभगवान नारायणका अपनी तरहका
पहलाधाम बनने जारहाह।ै श्री विष्णध्ु ााम जो किराजस्थान
मरूस्थलीय जिला चरूु की सजु ानगढ़ तहसील मंे स्थित
ड्डष्णमगृ अम्यारण्य तालछापर के करीब बनने जा रहा ह।ै
श्री विष्णध्ु ााम की परिकल्पना समाज के यवु ा सतं स्वामी
रघवु र दयाल जी आचार्य की है आरै इस नारायण धाम की
आधारशिला 6 दिसम्बर 2014 सतं शिरामे णि स्वामी
भागीरथदासजीआचार्यद्वारारखी गइर्।
श्री विष्णुधाम के इतिहास पर नज़र डालें तो यह वो
जगह है जहां साक्षात् नारायण ने साधुवेश में लोहट जी को
पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। बात विक्रम संवत् 1507
की है। नागौर परगने के पीपासर गांव में भयंकर अकाल
पड़ा और उस समय वहां के ग्रामपति ठाकुर थे लोहट जी
पंवार। अकाल से त्रस्त ग्रामवासी ग्रामपति लोहट जी के
पास जाकर कहने लगे कि ”हे महाराज, अकाल में अब
यहां समय व्यतीत करना मुश्किल हो रहा है और पशुधन
के लिए तो एक-एक क्षण अत्यंत भारी बीत रहा है।“ यह
बात लोहट जी की धर्मपत्नी हंसा देवी को पता चली तो
हंसा देवी ने कहा कि ”मेरे पीहर ;अर्थात् द्रोणापुर चुरूद्ध
में अच्छी वर्षा हुई है, इसलिए वहां पशुओं के लिए भी
पानी-चारे का अच्छा प्रबंध हो जाएगा। मेरा आपसे
अनुरोध है कि हम सब वहीं चलकर अकाल का काल
व्यतीत करें।“
समस्त गाय-ग्वाले हंसा जी के अनुरोध पर लोहट
जी के ससुराल द्रोणापुर चुरू की ओर चले। सुकाल
कारण सबके दिन अच्छे से कटने लगे। विशेषकर पशुओं
के लिए तो स्वर्ग थी यह जगह।
एक दिन द्रोणपुर में भयंकर बारिश हुई। पशुधन
अलग-अलग बिछड़ गए। लोहट जी स्वयं रात के समय
पुशओं को ढूंढने निकल पड़े। उधर अच्छी बारिश को
देख जोधा नामक जाट अपने पुत्रों सहित खेत जोतने के
लिए निकलता है। जैसे ही सूर्योदय से पूर्व जोधा अपने
बैलों को तैयार कर शगुन देखता है और सामने लोहट जी
आते दिख जाते हैं। जोधा जाट संतान विहीन लोहट जी
को अपशकुन मान अपने पुत्रों को बैल सहित पुनः घर की
ओर चलने का कहता है।
लोहट जी को देखकर करसा मन घबराय
खेतां धान न नीवजे बीज अकारथ जाय।
लाहे टजी जाध्े ाा जाट से कहते हंै कि बारिश अच्छी है फिर
आप वापिस क्यांे जा रहेह।ंै जाध्े ाा कहताहै -”एक तो आप
पत्रु हीन ह,ंै गावं के जवं ाईआरै ठाकरु परै ांे से नगं ेअलग। एसे े
व्यक्तिके सबु ह-सबु ह दशर्न अपशगनु हाते ेह।ंै “
जाध्े ा जाट की यह बात सनु लाहे ट जी के मन मंे बडा़
भारी दःु खहाते ाह।ै लाहे ट जीअपना जीवन निरथर्क मानतेह।ं ै
लाहे ट जी भगवान को यादकर राते -े राते े बिलखतेह।ं ै लगातार
छःमहीनेकीकडी़ तपस्यासे पस्र न्न हाके रसाक्षात् नारायणसाधु
वश्े ा मं ेलाहे ट जीको दशर्न दके र नावंै े महीने जभ्ं ाश्े वरभगवान
के रूप मंेहसं ा की काख्े ा से अवतार लने े का वरदान दते ेह।ंै
भगवान के वरदान के अनसु ार विक्रम सवं त् 1508 भादवा
वदी अष्टमी के दिन अभावांे से परिपणर््ू ा मरुभूि म मंे भगवान
जम्भश्े वरकाअवतारहाते ाह।ै
तालछापर का पावन विष्णुधाम इसी पवित्र जगह
पर बन रहा है। जहां जम्भेश्वर भगवान का ननिहाल भी है
और लोहट जी की तपोस्थली भी, जहां भगवान विष्णु
लोहट जी की भक्ति से प्रसन्न होकर पुत्र प्राप्ति का वचन
भी देते हैं। इसलिए यह तीर्थ स्थल बिश्नोई समाज का
प्रथम तीर्थ स्थल भी है। पर्यटन के लिहाज से देखा जाए
तो यह धाम इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके ठीक
सामने राजस्थान का अति-विशिष्ट ड्डष्णमृग अभ्यारण्य
भी है। वैसे भी भगवान जाम्भोजी ने जीवों पर दया की
बात बार-बार दोहराई थी। जहां-जहां हिरण, मोर जैसे
भोले पशु-पक्षी निडर होकर विचरण करते हैं वहां पर
परमात्मा की अतीव ड्डपा भी होती है और परमात्मा की
अत्यन्त ड्डपा से ही आचार्य संत स्वामी रघुवरदयाल जी
के अंतर्मन में इस जगह श्री विष्णुधाम बनाने का विचार
आया। जब किसी संत के मन में कोई महान् कार्य का
विचार आता है तो हजारों हाथ समर्थन में खड़े हो जाते हैं।
विष्णु-विष्णु तू भण रे प्राणी
क्योंकि भगवान विष्णु ही समस्त जगत के
पालनकत्र्ता है। नीले समुद्र में शेषनाग की शैय्या पर
विराजमान मंद-मंद मुस्कराते नारायण ही समस्त
जीव-जगत के संचालक हैं।
भगवान नारायण ही हमारे सत्-संकल्पों को साकार
रूप देने वाले हैं। जरूरत है हमारे संकल्प प्रह्लाद की
तरह मजबूत हो।
भगवान विष्णु से सही प्रार्थना है कि बिश्नोई समाज
सदा अच्छाइयों से परिपूर्ण हो। सबके मन में प्रेम का
प्रवाह हो, नशे का नाश हो, सद्कर्मों का इंसान के भीतर
निवास हो, पर्यावरण का विकास हो, हिरण-मोर
नाचते-गाते हो, दूध-घी की नदियां अविरल बहती हों,
गौ-माता भूखी प्यासी बिलखे नहीं।
पूर्ण विश्वास है, श्री विष्णुधाम ऐसा भव्य धाम
बनेगा जहां की भूमि पर लोगों के मन में अद्भुत शांति का
अहसास होगा। लोगों की आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का
समाधान होगा। भागमभाग जिन्दगी और भौतिकता कर
अंधी दौड़ में भी विष्णुधाम का दूसरा नाम ‘मानव मन
की शांति का केंद्र’होगा इस तरह का विश्वास है।
 चन्द्रभान बिश्नोई ;अध्यापक
गांव एकलखोरी, त. ओसियां,
जिला जोधपुर ;राज.द्ध
मो. 9929590750
साभार अमर ज्योति पत्रिका 

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