साहस और शौर्य के प्रतीक भूपेन्द्र कुमार बिश्नोई Pappu Bishnoi

अपने प्रकृति प्रेम और अतिथि सेवा के लिए विख्यात बिश्नोई सम्प्रदाय राष्ट्र सेवा में भी सदैव तत्पर रहा है। इस समाज के अनेक रणबांकुरों ने राष्ट्र रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पण किया है। समाज के एक ऐसे ही जांबाज सिपाही है 'एयर वाइस मार्शल' भुपेन्द्र कुमार बिश्नोई जिन्होंने भारतीय वायुसेना में सेवारत रहते हुए अपने अदम्य साहस और शौर्य के बल पर राष्ट्र रक्षा के नये प्रतिमान स्थापित किए। आपका जन्म 17 मार्च सन 1934 को पंजाब प्रांत के अबोहर जिले के सितोगुणो गाँव में हुआ। राष्ट्सेवा की प्रेरणा इन्हें परिवार से मिली या यूँ कहें कि विरासत में मिली। इनके पिता श्री रामप्रताप खिचड़ पंजाब पुलिस में उप अधिक्षक थे जिनके कन्धों पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू की सुरक्षा का जिम्मा रहा तथा बड़े भाई फ्लाइट लेफ्टीनेंट सुदर्शन कुमार बिश्नोई भारतीय वायुसेना के बहादुर सिपाही थे जिन्होंने राष्ट्र रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया।
राष्ट्र रक्षा के जज्बे से परिपूर्ण भुपेन्द्र कुमार बिश्नोई 10 अक्टूबर सन 1953 में भारतीय वायुसेना में सम्मिलित हुए। उत्कृष्ट प्रशिक्षण कौशल व उच्चतम नेतृत्व क्षमता के दम पर उन्होंने प्रशिक्षण अवधि के दौरान ही कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की मगर उनके शौर्य की असली परीक्षा थी 1965 का भारत-पाक युद्ध जिसमें उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन देश की सेना को नाकों चने चबवा दिये।
1965 के युद्ध के दौरान स्काव्डन लीडर भुपेन्द्र कुमार बिश्नोई को वायुसेना के आक्रमणकारी लड़ाकू दलStriker Force (जिनका काम था दुश्मन को उनके घर में घुसकर बर्बाद करना) के लिए चुना गया। 5 सितम्बर 1965 Operation Eiddle के दौरान पायलट भुपेन्द्र कुमार बिश्नोई ने लड़ाकू विमान Hawker Hunterसे उड़ान भरते हुए दुश्मन देश के सैन्य ठिकानों, गौला बारूद, तेल व राशन भण्डारों के अलावा वहां के सामरिक महत्व के महत्वपूर्ण ठिकानों को तहस-नहस कर दिया। बिश्नोई ने 15 दिनों में 16 बार उड़ान भरी तथा चार अन्य लड़ाकू विमानों के साथ पाकिस्तान के कासुर व लाहौर सेक्टर में लगातार हवाई हमले करते हुए पाक सेना को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया। युद्ध में भुपेन्द्र कुमार बिश्नोई के अभुतपूर्व युद्ध कौशल, साहस और शौर्य का सम्मान करते हुई भारत के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें 'वीर चक्र' से विभूषित किया।
नापाक पाकिस्तान ने 1971 में एक बार फिर घिनौनी हरकत करते हुए भारतीय सीमाओं पर अचानक आक्रमण कर दिया। उस समय विंग कमांडर भुपेन्द्र कुमार बिश्नोई को पाकिस्तान के पूर्वी क्षेत्र (अब बांग्लादेश) पर हमला करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। उन्होंने पहली दो उड़ान पाकिस्तान वायुसेना स्टेशन तेजगांव के लिए भरी तथा वहाँ के रनवे सहित परिवहन उपयोगी बड़े जहाजों को पूरी तरह तबाह कर दिया। इस कार्यवाही के दौरान उनके लड़ाकू विमान को भी नुकसान हुआ पर राष्ट्र का यह जांबाज सिपाही बिना हिचकिचाहट के दुश्मनों का संहार करता रहा।
14 दिसम्बर Operation Cactus Lily के माध्यम से ढ़ाका में दुश्मन की पैदल सेना(infantry) को जमीनी हमलों से तबाह कर वहाँ केGovernment House को नष्ट कर दिया। अपनी पेशवर फायरिंग क्षमता का बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए विंग कमांडर बिश्नोई ने पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली कोलिला सेक्टर के लिए 10 बार उड़ान भरी तथा आर्मी को फायर सहयोग देते हुए दुश्मन के बख्तरबंद पैटन टैंकों व मजबूत बंकरों को तहस-नहस कर दिया। इस जंग में उन्होंने कुल 26 बार उड़ान भरी।
विंग कमांडर भुपेन्द्र कुमार बिश्नोई के वृत्तिक युद्ध कौशल और कुशल नेतृत्व शक्ति को सलाम करते हुए 1972 में एक बार फिर भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें 'वीर चक्र' देकर सम्मानित किया।
'एयर वाइस मार्शल' भुपेन्द्र कुमार बिश्नोई सेना के उन चुनिंदा बहादुर अधिकारियों में से एक है जिन्हें दो बार देश के लब्ध प्रतिष्ठित सैन्य सम्मान'वीर चक्र' से नवाजा गया हो।लम्बे समय तक राष्ट्र सेवा के उपरांत श्री भुपेन्द्र कुमार बिश्नोई 'एयर वाइस मार्शल' के पद पर रहते हुए भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत हुए।
बिश्नोई समाज ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष के बहादुर बेटे एयर वाइस मार्शल भुपेन्द्र कुमार बिश्नोई पर हम सबको अत्यंत गर्व है।
"जय हिन्द"
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