आम आदमी की आवाज थे, इसलिए सबके सरताज थे चौ. भजनलाल तत्कालीन हिंदुस्तान और अब पाकिस्तान के पंजाब सूबे के जिला बहावलपुर के गांव कुरांवाली के बेहद सामान्य परिवार में जन्मे चौ. भजनलाल ने साधारण व्यापारी के रूप में व्यावसायिक जीवन शुरू किया, राजनीति की ओर रूख हुआ और आदमपुर के ब्लॉक समिति सदस्य, पंच फिर सरपंच बने और अपनी कुशल संगठन व नेतृत्व क्षमता के कारण प्रदेश की सर्वोच्च पंचायत यानि विधानसभा में मुख्यमंत्री के रूप में पदस्थापित हुए। 11 वर्ष, 9 महीने और 25 दिन तक मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश का नेतृत्व किया। केन्द्र में कृषि, पर्यावरण व वन मंत्री के रूप में काम करते हुए उन्होंने आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार के लिए अनेक ऐसी नीतियां बनाई, जो कालांतर में जाकर मिली का पत्थर सिद्ध हुई। कोई भी धर्म, मजहब, जाति, अमीर, गरीब समेत किसी भी वर्ग से संबंध रखने वाले व्यक्ति के पूरे जीवन में वैसे तो कई बार कठिन परिस्थतियां आती है, मगर सबसे ज्यादा झकझोर देने वाला समय व्यक्ति के जीवन में उस समय आता है, जब उसके सिर से उस व्यक्ति का साया उठ जाता है, जिसकी उंगली पकड़कर हमने दुनिया के कदम से कदम मिलाना सीखा। साढ़े चार वर्ष पहले जब चौ. भजनलाल का आकस्मिक निधन हुआ तो मुझे लगा कि मेरे सिर पर से केवल पिता का साया नहीं उठा बल्कि मेरे आराध्य देव भी मुझसे बिछड़ गए।
उनके रहते कभी मन में एकाकीपन या असहाय महसूस नहीं हुआ बल्कि उनके मार्गदर्शन की अदभुत शक्ति हमेशा मेरे साथ रहती। चाहे वर्ष 1998 का आदमपुर उपचुनाव हो या फिर वर्ष 2004 का भिवानी लोकसभा चुनाव। उनका आशीर्वाद एक शीतल छांव वाले बादल की तरह हमेशा मुझे तपिश से बचाकर आगे
बढ़ाता रहा। मुझे आज भी याद है कि 2 दिसंबर 2007 को रोहतक रैली में लोगों की अपार भीड़ से गद्गद् होकर चौ. भजनलाल ने मुझसे कहा कि था कि सामने खड़े लाखों लोग और इससे भी कहीं ज्यादा सख्या जो आज यहां पहुंच नहीं सकी।
तुमने इन सबकी उम्मीदों पर खरा उतरकर मेरे अधूरे सपनों को पूरा करना है।
तब पहली बार मुझे अपनी बड़ी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ।
1982 के दिल्ली एशियाई खेलों के दौरान जब आतंकवादियों की धमकियों से केन्द्र सरकार चिंतित थी तो उस समय चौ. भजनलाल ने ऐलान किया था कि हरियाणा की सीमा से एक भी आतंकवादी दिल्ली पहुंच जाए तो वे मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे। चाक-चौबंद व्यवस्था के दम पर उन्होंने अपना वादा निभाया और एशियाड 82 शान से शुरू हुआ और संपन्न हुआ। तब जरनैल भिंडरावाले की तरफ से पिताजी को धमकी मिली थी। तभी उन्हें जेड प्लस सुरक्षा मिली, जो जीवन पर्यंत उनके साथ रही। पिता जी का विपरित परिस्थतियों से जूझने और चक्रव्यूह से विजेता की तरह निकलने का उदाहरण 1989 का फरीदाबाद लोकसभा चुनाव भी रहा है। मेव बहुल फरीदाबाद में उन्होंने दिग्गज नेता खुर्शीद अहमद को उस समय 1 लाख 37 हजार वोटों से शिकस्त दी थी। विरोधियों ने जब उन पर आरोप लगाए तो उनसे भी वे निडरता से निपटे। चाहे विजीलेंस जांच हो, जसवंत सिंह आयोग हो या फिर सीबीआई जांच तीनों जांचों में चौ. भजनलाल पाक साफ निकले और विरोधियों द्वारा उन पर लगाए गए तमाम आरोप झूठे साबित हुए।
स्व. चौ. भजनलाल मेरे लिए केवल एक पिता ही नहीं थे, बल्कि मेरे गुरू तथा मित्र थी थे। भले ही मैंने अपना शैक्षणिक ज्ञान अपने गुरूओं से प्राप्त किया हो, परंतु जीवन जीने की कला मैंने पिताजी से ही सीखी। उनके जाने के बाद एक ओर जहां उनकी विशाल राजनीतिक विरासत को सहेजकर लोगों की
उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती मेरे सामने थी, तो दूसरी ओर अपने पूरे जीवन में अनेक सामाजिक मंचों से जुड़ा होने के चलते सामाजिक स्तर पर भी उनकी कमी को पूरा करने का दायित्व मेरे ऊपर था। उनके जाने के बाद मुझे कदम-कदम पर उनकी कमी महसूस हुई। पारिवारिक कार्यक्रम हो, सामाजिक मंच हों
या फिर कठिन राजनीतिक घड़ी। मुश्किल से मुश्किल समय में भी वे रास्ता निकाल लेते थे। पिछले साढ़े चार वर्षों के समय में मेरे सामने कई बार ऐसा समय आया जब कठिन फैसला लेने का समय था। यह पिताजी के संस्कार कहूं या फिर परमात्मा की कृपा, मुझे हर समय ऐसा लगा जैसे कदम-कदम पर वे मेरे साथ खड़े
हैं और अपना आशीर्वाद देते हुए मुझे आगे बढ़ते रहने की शक्ति दे रहे हैं।
तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने चौ. भजनलाल ने अपने कार्यकाल में ऐसे अनेक जनकल्याणकारी कदम उठाए जो कालांतर में मील का पत्थर साबित हुए। मानेसर में टैक्नीकल हब व औद्योगिक नगरी बन चुके गुडग़ांव का ब्लू प्रिंट तैयार करवाना, यमुनानगर थर्मल प्लांट को मंजूरी देना, एक परिवार को एक रोजगार योजना लागू करना, पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करके 25 वर्षों के बाद दोबारा जिला परिषदों का गठन करना, ग्रामीण क्षेत्रों को दिन भर में 60 प्रतिशत समय बिजली उपलब्ध करवाना, अपनी बेटी अपना धन योजना लागू करना, कन्या के जन्म पर 2500 रूपये के इंदिरा विकास पत्र के बदले 18
वर्ष बाद 25000 रूपये का भुगतान किया जाना, लड़कियों के लिए स्नातक तक मुफ्त शिक्षा योजना लागू करना, जाति व क्षेत्र के आधार पर भेदभाव की बजाय प्रदेश के कोने-कोने में बसे समाज 36 बिरादरी के लोगों को रोजगार के सम्मान अवसर उपलब्ध करवाना आदि उनके मुख्यमंत्री काल की उपलब्धियों की
लंबी फेरहिस्त है। वर्ष 1995 में आई भीषण बाढ़ के समय किसानों को 3000 रुपए से लेकर 10000 रुपए तक प्रति एकड़ व ट्यूबवैल के लिए 50 हजार रुपए का मुआवजा तुरंत प्रदान करके और बाढ़ पीडि़तों की मदद को जुटे रहकर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। चाहे एसवाईएल
का विवाद हो या फिर प्रदेश की राजधानी चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने का फैसला, हर एक अंतरराज्यीय मसले पर चौ. भजनलाल ने हरियाणा प्रदेश की वकालत पूरे दमदार तरीके से की। प्रदेश की प्यासी जनता की समस्या को दूर करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कपूरी गांव में कस्सी चलवा कर
एसवाईएल (सतलुज यमुना संपर्क नहर) की खुदाई का कार्य शुरू करवाना, उनकी दूरदर्शिता थी। एसवाईएल का पानी लाने के प्रति उनकी लग्र इसी बात से जाहिर हो जाती है कि एसवाईएल नहर के निर्माण का 98 प्रतिशत कार्य उनके कार्यकाल में पूरा हुआ। पंच, सरपंच से लेकर मुख्यमंत्री के ऊंचे ओहदे तक पहुंचे चौ. भजनलाल जमीन से जुड़े व्यक्ति थे। उनकी सोच थी कि छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्हें राजनीति से जोडऩा जरूरी है। उनके मुख्यमंत्रीतत्व काल के बाद आज तक प्रदेश में छात्र संघ चुनाव नहीं हुए।
जीवन के अंतिम क्षणों में भी वह अपने घर आने लाने वाले लोगों का हाल-चाल तो पूछते ही थे साथ ही साथ उनके घर-परिवार की सलामती पूछना नहीं भूलते थे। एक वाक्य जो समर्थकों से मिलने के समय हर समय उनकी जुबान पर रहता था। यह ऐसा वाक्य था जो उनसे मिलने आने वाले हर पार्टी कार्यकर्ता चाहे वह छोटा हो अथवा बड़ा, उनकी धमनियों में नए रक्त का संचार कर जाता
था। वह वाक्य था, और कोई मेरे लायक सेवा। किसी भी पुत्र की तरह मैं भी अपने पिताजी की पारिवारिक स्तर पर कमी को दूर करने तथा उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का सपना ही देखता हूं। उनके बिना साढ़े चार वर्षों में मैंने बिना रूके, बिना डटे, बिना थके निरंतर संघर्ष किया तथा हर वक्त यही
कोशिश की कि हरियाणा प्रदेश की जनता को अपने प्रिय युगपुरूष महान राजनेता की कमी न महसूस हो। चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े। भले ही आज चौ.भजनलाल शारीरिक रूप से हमारे साथ नहीं हैं किंतु उनका महान व्यक्तित्व मेरे लिए जीवन भर मार्गदर्शक व पे्ररणा स्रोत बना रहेगा। अपने राजनैतिक,
पारिवारिक व सामाजिक जीवन में कोई अहम फैसला करने से पूर्व मैं उन्हें मन ही मन याद करता हूं और सोचता हूं कि अब यदि पिताजी मेरे साथ होते तो मुझे क्या निर्देश देते। मेरी कल्पना में मिले उनके मार्गदर्शन के अनुसार मैं विकट परिस्थितियों में भी अपने को असहज महसूस नहीं करता।
उनके रहते कभी मन में एकाकीपन या असहाय महसूस नहीं हुआ बल्कि उनके मार्गदर्शन की अदभुत शक्ति हमेशा मेरे साथ रहती। चाहे वर्ष 1998 का आदमपुर उपचुनाव हो या फिर वर्ष 2004 का भिवानी लोकसभा चुनाव। उनका आशीर्वाद एक शीतल छांव वाले बादल की तरह हमेशा मुझे तपिश से बचाकर आगे
बढ़ाता रहा। मुझे आज भी याद है कि 2 दिसंबर 2007 को रोहतक रैली में लोगों की अपार भीड़ से गद्गद् होकर चौ. भजनलाल ने मुझसे कहा कि था कि सामने खड़े लाखों लोग और इससे भी कहीं ज्यादा सख्या जो आज यहां पहुंच नहीं सकी।
तुमने इन सबकी उम्मीदों पर खरा उतरकर मेरे अधूरे सपनों को पूरा करना है।
तब पहली बार मुझे अपनी बड़ी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ।
1982 के दिल्ली एशियाई खेलों के दौरान जब आतंकवादियों की धमकियों से केन्द्र सरकार चिंतित थी तो उस समय चौ. भजनलाल ने ऐलान किया था कि हरियाणा की सीमा से एक भी आतंकवादी दिल्ली पहुंच जाए तो वे मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे। चाक-चौबंद व्यवस्था के दम पर उन्होंने अपना वादा निभाया और एशियाड 82 शान से शुरू हुआ और संपन्न हुआ। तब जरनैल भिंडरावाले की तरफ से पिताजी को धमकी मिली थी। तभी उन्हें जेड प्लस सुरक्षा मिली, जो जीवन पर्यंत उनके साथ रही। पिता जी का विपरित परिस्थतियों से जूझने और चक्रव्यूह से विजेता की तरह निकलने का उदाहरण 1989 का फरीदाबाद लोकसभा चुनाव भी रहा है। मेव बहुल फरीदाबाद में उन्होंने दिग्गज नेता खुर्शीद अहमद को उस समय 1 लाख 37 हजार वोटों से शिकस्त दी थी। विरोधियों ने जब उन पर आरोप लगाए तो उनसे भी वे निडरता से निपटे। चाहे विजीलेंस जांच हो, जसवंत सिंह आयोग हो या फिर सीबीआई जांच तीनों जांचों में चौ. भजनलाल पाक साफ निकले और विरोधियों द्वारा उन पर लगाए गए तमाम आरोप झूठे साबित हुए।
स्व. चौ. भजनलाल मेरे लिए केवल एक पिता ही नहीं थे, बल्कि मेरे गुरू तथा मित्र थी थे। भले ही मैंने अपना शैक्षणिक ज्ञान अपने गुरूओं से प्राप्त किया हो, परंतु जीवन जीने की कला मैंने पिताजी से ही सीखी। उनके जाने के बाद एक ओर जहां उनकी विशाल राजनीतिक विरासत को सहेजकर लोगों की
उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती मेरे सामने थी, तो दूसरी ओर अपने पूरे जीवन में अनेक सामाजिक मंचों से जुड़ा होने के चलते सामाजिक स्तर पर भी उनकी कमी को पूरा करने का दायित्व मेरे ऊपर था। उनके जाने के बाद मुझे कदम-कदम पर उनकी कमी महसूस हुई। पारिवारिक कार्यक्रम हो, सामाजिक मंच हों
या फिर कठिन राजनीतिक घड़ी। मुश्किल से मुश्किल समय में भी वे रास्ता निकाल लेते थे। पिछले साढ़े चार वर्षों के समय में मेरे सामने कई बार ऐसा समय आया जब कठिन फैसला लेने का समय था। यह पिताजी के संस्कार कहूं या फिर परमात्मा की कृपा, मुझे हर समय ऐसा लगा जैसे कदम-कदम पर वे मेरे साथ खड़े
हैं और अपना आशीर्वाद देते हुए मुझे आगे बढ़ते रहने की शक्ति दे रहे हैं।
तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने चौ. भजनलाल ने अपने कार्यकाल में ऐसे अनेक जनकल्याणकारी कदम उठाए जो कालांतर में मील का पत्थर साबित हुए। मानेसर में टैक्नीकल हब व औद्योगिक नगरी बन चुके गुडग़ांव का ब्लू प्रिंट तैयार करवाना, यमुनानगर थर्मल प्लांट को मंजूरी देना, एक परिवार को एक रोजगार योजना लागू करना, पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करके 25 वर्षों के बाद दोबारा जिला परिषदों का गठन करना, ग्रामीण क्षेत्रों को दिन भर में 60 प्रतिशत समय बिजली उपलब्ध करवाना, अपनी बेटी अपना धन योजना लागू करना, कन्या के जन्म पर 2500 रूपये के इंदिरा विकास पत्र के बदले 18
वर्ष बाद 25000 रूपये का भुगतान किया जाना, लड़कियों के लिए स्नातक तक मुफ्त शिक्षा योजना लागू करना, जाति व क्षेत्र के आधार पर भेदभाव की बजाय प्रदेश के कोने-कोने में बसे समाज 36 बिरादरी के लोगों को रोजगार के सम्मान अवसर उपलब्ध करवाना आदि उनके मुख्यमंत्री काल की उपलब्धियों की
लंबी फेरहिस्त है। वर्ष 1995 में आई भीषण बाढ़ के समय किसानों को 3000 रुपए से लेकर 10000 रुपए तक प्रति एकड़ व ट्यूबवैल के लिए 50 हजार रुपए का मुआवजा तुरंत प्रदान करके और बाढ़ पीडि़तों की मदद को जुटे रहकर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। चाहे एसवाईएल
का विवाद हो या फिर प्रदेश की राजधानी चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने का फैसला, हर एक अंतरराज्यीय मसले पर चौ. भजनलाल ने हरियाणा प्रदेश की वकालत पूरे दमदार तरीके से की। प्रदेश की प्यासी जनता की समस्या को दूर करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कपूरी गांव में कस्सी चलवा कर
एसवाईएल (सतलुज यमुना संपर्क नहर) की खुदाई का कार्य शुरू करवाना, उनकी दूरदर्शिता थी। एसवाईएल का पानी लाने के प्रति उनकी लग्र इसी बात से जाहिर हो जाती है कि एसवाईएल नहर के निर्माण का 98 प्रतिशत कार्य उनके कार्यकाल में पूरा हुआ। पंच, सरपंच से लेकर मुख्यमंत्री के ऊंचे ओहदे तक पहुंचे चौ. भजनलाल जमीन से जुड़े व्यक्ति थे। उनकी सोच थी कि छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्हें राजनीति से जोडऩा जरूरी है। उनके मुख्यमंत्रीतत्व काल के बाद आज तक प्रदेश में छात्र संघ चुनाव नहीं हुए।
जीवन के अंतिम क्षणों में भी वह अपने घर आने लाने वाले लोगों का हाल-चाल तो पूछते ही थे साथ ही साथ उनके घर-परिवार की सलामती पूछना नहीं भूलते थे। एक वाक्य जो समर्थकों से मिलने के समय हर समय उनकी जुबान पर रहता था। यह ऐसा वाक्य था जो उनसे मिलने आने वाले हर पार्टी कार्यकर्ता चाहे वह छोटा हो अथवा बड़ा, उनकी धमनियों में नए रक्त का संचार कर जाता
था। वह वाक्य था, और कोई मेरे लायक सेवा। किसी भी पुत्र की तरह मैं भी अपने पिताजी की पारिवारिक स्तर पर कमी को दूर करने तथा उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का सपना ही देखता हूं। उनके बिना साढ़े चार वर्षों में मैंने बिना रूके, बिना डटे, बिना थके निरंतर संघर्ष किया तथा हर वक्त यही
कोशिश की कि हरियाणा प्रदेश की जनता को अपने प्रिय युगपुरूष महान राजनेता की कमी न महसूस हो। चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े। भले ही आज चौ.भजनलाल शारीरिक रूप से हमारे साथ नहीं हैं किंतु उनका महान व्यक्तित्व मेरे लिए जीवन भर मार्गदर्शक व पे्ररणा स्रोत बना रहेगा। अपने राजनैतिक,
पारिवारिक व सामाजिक जीवन में कोई अहम फैसला करने से पूर्व मैं उन्हें मन ही मन याद करता हूं और सोचता हूं कि अब यदि पिताजी मेरे साथ होते तो मुझे क्या निर्देश देते। मेरी कल्पना में मिले उनके मार्गदर्शन के अनुसार मैं विकट परिस्थितियों में भी अपने को असहज महसूस नहीं करता।
लेखक
स्व. चौ. भजनलाल के सुपुत्र
हजकां अध्यक्ष एवं विधायक
कुलदीप बिश्नोई|
स्व. चौ. भजनलाल के सुपुत्र
हजकां अध्यक्ष एवं विधायक
कुलदीप बिश्नोई|
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