
घर के एक कमरे में टीनशेड लगा रात में वहां रखते, दिन में खुला छोड़ने पर घर के आंगन में करते हैं अठखेलियां
सांचौर क्षेत्र के पुर गांव में विश्नोई जाति का एक परिवार खेतों जंगल में घायल होने वाले हिरण नीलगाय के बच्चों को लोगों की ओर से सूचना देने पर अपने घर लाकर उसका इलाज करवा बड़े होने तक अपने बच्चों की तरह उनको पाल पोश रहा हैं।
इस कार्य में घर की मुखिया पंचायत समिति की पूर्व सदस्य शांतिदेवी उसकी बहू हिरण नीलगाय के बच्चों को दिन में तीन चार बार दूध पिला उन्हें ममत्व का अहसास करा रही हैं। बकौल शांतिदेवी पिछले एक साल से वह अपने परिवार के साथ घायल बच्चों की सेवा कर रही हैं,जिसके तहत अब तक उन्होंने करीब 30 से 40 बच्चों को बड़े होने के बाद नीलगाय को जंगल तथा हिरण को अमृतादेवी उद्यान में छोड़ा हैं। फिलवक्त उसके घर में करीब सात आठ बच्चे पल रहे हैं। घर के चौक में शांतिदेवी उसकी बहू हिरण नीलगाय के बच्चों को जब बोतल से दूध पिला रही थी तो वाकई बच्चे अपनी मां के साथ जिस तरह अठखेलियां करते हैं वैसा ही नजारा दिखाई दे रहा था। लंबा घूंघट निकाले शांति की बहू ने बताया कि दिन में करीब तीन चार बार बच्चों को दूध नहीं पिला देती तब तक बच्चे उसका पीछा नहीं छोड़ते। इसपर जब उससे पूछा कि दूध नहीं पिलाने पर हिरण नीलगाय के बच्चे किस तरह उन्हें परेशान करते हैं तो बताया कि वह घर का काम कर रही होती है तो भूख लगने पर ये बच्चे मुंह से उसकी ओढनी खींचने के साथ बार उसके साथ अठखेलियां करते हुए मुंह ऊपर नीचे करते रहते हैं। इसपर मैं समझ जाती हूं कि अब इन्हें दूध पीना हैं।
नीलगाय हिरण के छोटे बच्चों को अपने बच्चों की तरह दूध पिलाकर बड़ा करती हूं, दिन में तीन बार मैं तथा मेरी पुत्रवधू घर में पल रही गायों का दूध इन बच्चों को पिलाती हैं शांतिदेवी विश्नोई, पंचायतसमिति पूर्व सदस्य, गांव पूर
सेवा के लिए समाज ने किया सम्मान
जोधपुरके नजदीक खेजड़ली गांव में खेजड़ी वृक्ष के लिए शहीद हुए 363 लोगों की याद में आयोजित होने वाले मेले के दौरान अखिल भारतीय जीव रक्षा विश्नोई सभा की ओर से वन्यजीवों की सेवा करने के जज्बे को लेकर शांति देवी की पुत्रवधु गोमती देवी को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया था।
यूं बढ़ता रहा सेवा का सिलसिला
शांतिके परिवार में पहले पहल एक नीलगाय के बच्चे को अपने ही खेत में कुत्तों के चंगुल से छुड़ाकर घर लाकर उसका इलाज करवा उसे बोतल से दूध पिला बड़ा किया। इसके बाद तो उनके परिवार वालों का वन्यजीवों की सेवा के प्रति प्रेम बढ़ता गया और पूरे गांव में जहां कहीं इस तरह की घटना में घायल होने वाले नीलगाय हिरण के बच्चों को अपने घर लाकर उसका पालन-पोषण कर बड़ा होने तक उनकी सेवा हमारी दिनचर्या से जुड़ गया।
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