
उन्होंने कहा कि भागवत मोह आसक्ति से विरक्ति या निर्वति कराती हैं तो मानव का मोक्ष प्राप्त हैं। यह कथा पापी-दुराचारी का भी उद्धार करती हैं।भटकते जीवो को मुक्ति देती हैं।
आचार्य ने कहा पहले पुत्र होते थे अब वारिस होते हैं।जिन्हें माँ-बाप ओर परिवार से कोई लेना-देना नहीं होता है उन्हें जायदाद या संपति चाहिए। विषय वासनाओ से परे उठकर प्रभु चरणों में लग जाना ही मुक्ति हैं।
उन्होंने कहा कि हम भगवान पर निष्ठा रखनी चाहिए।जब भक्त सब भगवान को समर्पित कर देगा तो फिर तो उसे कुछ करने कि जरूत नहीं हैं। इस अवसर पर मंदिर कमेटी सचिव सुखरामजी वरङ, कमेटी उपाध्यक्ष विरदारामजी बैनिवाल, किसनारामजी माजु, बिश्नोई टाइगर फोर्स के ब्लाँक अध्यक्ष भिखारामजी कांवा, ब्लाँक उपाध्यक्ष श्रवण बैनिवाल सहित हजारों भक्तजन मौजूद थे।
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