जन्माष्टमी महोत्सव धूमधाम से संपन्न

पुणे : स्थानीय श्री गुरू जम्भेश्वर प्रतिष्ठान(विश्
नोई समाज)द्वारा श्री जम्भेश्वर भगवान
जन्माष्टमी पर्व रविवार को बड़ी धूमधाम से
मनाया गया। श्री जम्भेश्वर भगवान
जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर भव्य
रात्रि जागरण व सत्संग का कार्यक्रम
प्रतिष्ठान के मंदिर प्रांगण आम्बेगांव(कान्नज)
के समाज बंधुओं की उपस्थिति में संपन्न हुआ। इस
अवसर पर जागरण व सत्संग में प्रसिद्ध गायक
कलाकार विष्णु भक्त मांगीलाल थोरी अॅण्ड
पार्टी मोरया मुजासर ने देर रात्रि तक
भजनों की प्रस्तुति दी। इसी तरह सोमवार सुबह
हवन व पवित्र पाहल का आयोजन हुआ, जिसमें
समाज बंधुओ ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
प्रितष्ठाण के अध्यक्ष मोहन लाल डूडी ने
उपस्थित समाज बंधुओं को संबोधित करते हुए
कहा की। पर्यावरण की दृष्टि से विश्नोई
समाज विश्व में सर्वोत्तम श्रेणी में
माना जाता है। विधिवत आध्यात्मिक रूप से व
पर्यावरण के दृष्टिकोण से विश्नोई समाज
की बराबरी विश्व में कोई भी धर्म, जाति,
समाज व समुदाय नही कर सकता। विश्नोई
समाजी की विश्व पटल पर पर्यावरण रक्षक,
जीव रक्षक, पवित्र एवं शॉकाहारी समाज के
नाम से एक अलग पहचान है।
श्री जांभोजी विश्व के प्रथम पर्यावरण
प्रणेता थे। जिन्होंने मानव समाज के लोक
कल्याण के लिए वृक्षों, वनस्पतीयों की पूजा-
रक्षा, जीव-जन्तु पशु-पक्षियों का संरक्षण,
पर्यावरण संतुलन, नैतिक मूल्यों का रक्षण, लोक
धर्म, आत्मादर्शन, विश्वचिंतन लोक जीवन
को जीवन का मुख्य अंग माना।
वन एवं वन्य प्राणी प्रकृति प्रदत उपादान एवं
प्राकृतिक सौन्दर्य है। श्री जांभोजी भगवान ने
आज से लगभग 550 साल पहले प्रकृति से जुड़े हुए
कतिपय कल्याणकारी नियम लोगों को बताए
जिसका आज संपूर्ण विश्व अनुसरण कर रहा है।
पर्यावरण विश्नोई समाज प्राकृतिक
नियमों की मानव संहिता है। पश्चिमी भारत
मारवाड़ क्षेत्र में भक्तिकालीन युग में विक्रम
1508 की भादोवदी अष्टमी को अर्ध रात्रि के
समय एक असाधारण एवं दिव्य महा युग पुरूष
श्री जांभोजी भगवान का जन्म हुआ। जो पूर्ण
ब्रह्मा श्री विष्णु भगवान के अवतार थे।
जिन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी व अलौकिक
शक्ति से, वैदिक आधार पर, संमार्ग के
सभी तत्वों से युक्त, मानव मात्र के आत्म कल्याण
के लिए 29 नियमों की आदर्श आचार
संहिता बनाकर विश्नोई समाज नामक एक सुन्दर
समाज की स्थापना की। मानव कल्याण हेतु
दिये गये संदेश जो शब्द वाणी के नाम से जाने
जाते है। शब्द वाणी मानव जीवन जीने की एक
कला है। संद्ग्रंथों के लक्ष्य व समस्त वेदों के
विचारों का निचोड श्री जांभोजी भगवान ने
अपनी शब्द वाणी में निर्धारित किये।
शब्दवाणी जीवन पद्धति का तथा 29
नियमों की आचार संहिता का सही तरिके से
पालन करने पर मानव को लौकिक एवं परलौकिक
सिद्धी प्राप्त हो सकती है, वह मानव मात्र
का लोक तथा परलोक दोनों सुधारे जा सकते है।

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