प्रदूषण के विरुद्ध मोर्चे पर एक महान योद्धा : पर्यावरणवादी वकील एम. सी. मेहता

भारत में शायद कम
ही लोगों को पता होगा कि भारतीय
संविधान ने
सभी देशवासियों को संविधान के अनुच्छेद
21 के तहत प्राण और दैहिक
स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया है
जिसके तहत एक स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण हर
नागरिक का मूल अधिकार है। जाहिर
सी बात है कि एक बेहतर पर्यावरण प्रत्येक
व्यक्ति की जरूरत है, और बिना इसके वह
अपने स्वास्थ्य और जीवन
की सुरक्षा नहीं कर सकता है। इसीलिए
संविधान प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार
प्रदान करता है कि वह अपने इस अधिकार
को प्राप्त करने के लिए न्यायालय
का दरवाजा खटखटाए।
परंतु भारत जैसे देश में
जहां शिक्षा की स्थिति बहुत ठीक
नहीं है, लोगों में जागरूकता का अभाव है
और सब कुछ चलता है,
जैसी यथास्थितिवादी मानसिकता के
चलते पर्यावरण की बेहतरी के लिए कम
ही लोग आगे आते हैं। ऐसे निराशा के
माहौल में पिछले ढाई दशक से एक
व्यक्ति लगातार पर्यावरण के संरक्षण के
लिए संघर्ष छेड़े हुए है।
जी हां, महान पर्यावरणवादी वकील
एम.सी मेहता (महेश चंद्र मेहता) ने विगत
वर्षों में कई ऐतिहासिक मुकदमों के माध्यम
से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में मिसालें
कायम की हैं जिस से पर्यावरण
प्रेमियों को आगे बढ़ने और लगातार प्रयास
करते रहने को प्रेरित किया है, और इस
कहावत को गलत सिद्ध किया है
कि ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’।
1983 में जब एम.सी. मेहता ने सर्वोच्च
न्यायालय में वकालत करने आए, तब उनके
दिमाग में ऐसी कोई योजना नहीं थी। वे
बताते हैं कि दिल्ली आने के बाद एक बार
वे एक सामाजिक कार्यक्रम में शिरकत कर
रहे थे। वहां उनकी मुलाकात एक व्यक्ति से
हुई जिस ने मेहताजी के वकील होने
की बात सुनकर उनसे अपनी व्यथा व्यक्त
की। वह व्यक्ति ताजमहल की लगातार
खराब होती हालत और वहां के प्रदूषण के
कारण होने वाली संभावित अम्ल वर्षा से
ताजमहल को उत्पन्न खतरे के बारे में बात
कर रहा था। उसका कहना था कि कोई
भी इस महान विरासत के संरक्षण के लिए
काम नहीं कर रहा है. इस व्यक्ति से
तकरीबन एक मिनट की मुलाकात के बाद
एम.सी. मेहता ने इस स्थिति पर विचार
किया और स्वयं आगरा जाकर
वस्तुस्थिति को जाना। अपनी आंखों से
वास्तविकता जान लेने पर वे बहुत आहत हुए।
वे लगातार छह महीने तक इस पर काम करते
रहे। सन् 1984 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में
पर्यावरण संरक्षण हेतु
अपनी पहली याचिका दायर की। सुप्रीम
कोर्ट ने प्रस्तुत मामले में ताज के आसपास
संचालित प्रदूषणकारी उद्योगों को बंद
करने और उसके आसपास बड़े पैमाने पर
वृक्षारोपण का आदेश दिया।
इसके बाद वर्ष 1985 में उन्होंने गंगा नदी में
होने वाले प्रदूषण के खिलाफ उच्चतम
न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर
की। पहले-पहल
दो प्रदूषणकारी उद्योगों को इस
याचिका के तहत पक्षकार बनाया गया।
उसके बाद इस वाद के दायरे में लगभग एक
लाख प्रदूषणकारी इकाईयों और आठ
राज्यों के 300 शहरों को शामिल
किया गया। माननीय उच्चतम न्यायालय
ने इस ऐतिहा
सिक मामले में प्रदूषण कानूनों का सरेआम
उल्लंघन कर अपने सीवेज को गंगा में डाल
रही प्रदूषणकारी इकाईयों को बंद करने
और उन पर जुर्माना लगाने का आदेश
दिया, और लगभग 250 नगरीय
निकायों को सीधे शहर का सीवेज गंगा में
फेंकने के बजाय सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने
के आदेश दिये। इस मामले में श्री मेहता के
खिलाफ लगभग 1200 वकील अदालत में खड़े
थे। आप कल्पना कर सकते हैं कि किस
प्रकार एक अकेले इंसान ने इतने ताकतवर,
आर्थिक रूप से सक्षम,
किसी को भी खरीद सकने और
सरकारी मशीनरी तक को प्रभावित करने
वाले शक्तिशाली समूह के खिलाफ अपने
संघर्ष को जारी रखा।
दिल्ली शहर जो कभी विश्व के सबसे
प्रदूषित शहरों में एक था, अब काफी हद
तक अपने वायु प्रदूषण से मुक्त हो सका है,
इस के लिए मेहता जी का ऋणी है।
प्रदूषणकारी उद्योगों को दिल्ली से
बाहर स्थापित किये जाने के मामले में
भी पर्यावरण संबंधी कानूनों और
दिल्ली मास्टर प्लान
का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन
किया जा रहा था। नब्बे के दशक
की शुरूआत में श्री एम.सी. मेहता ने इस
प्रदूषण को रोकने हेतु जनहित
याचिका दायर की। माननीय उच्च-
न्यायालय ने दिल्ली में सी.एन.जी.
आधारित सार्वजनिक परिवहन
व्यवस्था लागू करने और
प्रदूषणकारी औद्योगिक
इकाईयों को दिल्ली से बाहर स्थापित
करने का आदेश दिया जिस के परिणाम
स्वरूप दिल्ली विश्व
का पहला सी.एन.जी आधारित
सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था वाला शहर
बना। तब से आज तक
दिल्ली की हवा सांस लेने के लिहाज से
बहुत बेहतर हो चुकी है। दिल्ली के बाद अब
देश के अन्य शहरों में भी इसका अनुसरण
किया जा रहा है और इस एतिहासिक
मामले के परिणामस्वरूप देश के महानगरों में
प्रदूषण-मुक्त पर्यावरण की कल्पना अब
साकार हो रही है।
श्री मेहता पर्यावरण कानूनों के बारे में
जागरूकता फैलाने के बारे में भी लंबे समय से
प्रयासरत हैं। इसी संबंध में उन्होंने एक अन्य
जनहित याचिका भी उच्चतम न्यायालय में
दायर की जिसमें उन्होंने देशभर के
विद्यालयों में पर्यावरण
की शिक्षा को शिक्षण-पाठ्यक्रम में
शामिल करने पर जोर दिया। इस पर अपने
ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने
देशभर के सभी शिक्षण
संस्थानों (स्कूलों तथा कॉलेजों) में
पर्यावरण शिक्षा को एक अनिवार्य
विषय के रूप में शामिल किये जाने
का आदेश दिया। भारत विश्व
का एकमात्र देश है, जहां पर्यावरण को एक
अनिवार्य विषय के रूप में स्कूलों और
कॉलेजों में पढ़ाया जाता है।
इसके अलावा समय-समय पर
श्री मेहता पर्यावरण संरक्षण के लिए काम
करते रहे हैं…चाहे न्यायालय में जाकर
कानूनी रूप से लोगों को उनके अधिकार
दिलाने का मामला हो या फिर
लोगों को इस बारे में शिक्षित और
जागरूक करने का।
श्री मेहता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
भी पर्यावरण के लिए किए गए इस
अतुलनीय योगदान के कारण
सराहना मिली है। सन् 1997 में उन्हें रेमन
मैग्सेसे पुरस्कार से भी सम्मानित
किया गया है। वे इंडियन काउंसिल फॉर
एनवायरो-लीगल एक्शन के संस्थापकों में से
एक हैं, और एम.सी. मेहता एनवायरोमेन्टल
फाउंडेशन के निदेशक हैं जो लोगों के स्वच्छ
हवा, पानी और स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण के
अधिकार के लिए संघर्षरत है और पर्यावरण
के प्रति जागरूकता पैदा करने के
प्रयासों के लिए प्रतिबद्ध है।
द्वारा : भुवनेश

Post a Comment

और नया पुराने