शहीदों की याद में जगह-जगह लगा रहे पौधे

शहीदों की याद में जगह-जगह लगा रहे पौधे :-

चिपको आंदोलन : विशेक के पिता जोधपुर व अन्य क्षेत्रों में 35 हजार खेजड़ी, बबूल, बींगनवेल, रोहिडा, कंकेडी, भोग के पौधे लगा चुके हैं।

चिपको आंदोलन में मारे गए 363 लोगों को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए जोधपुर राजस्थान निवासी विशेक बिश्नोई 2 वर्षों से सरकारी अधिकारियों से लेकर नेताओं के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन उसे अब तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला है। इसके साथ ही विशेक ने सरकार से मांग की है कि चिपको आंदोलन को इतिहास के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाए। 



जोधपुर से लेकर गुडग़ांव तक लगाए पौधे :
विशेक ने मृतकों की याद में मंगलवार को गुडग़ांव के मुख्य बस स्टैंड पर पौधे लगाए। उसने बताया कि इस तरह के इंडिया गेट, विकास भवन, गुरु जंबेश्वर पर्यावरण संस्थान सिविल लाइन, आईपी कॉलेज दिल्ली सहित अन्य जगहों पर सैकड़ों खेजड़ी और कंकेड़ी के पौधे लगाए हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार उनका सहयोग करे तो वे पूरे देश में मृतकों की याद में पौधे लगाना चाहते हैं। सरकार व अधिकारियों के नकारात्मक रवैये के चलते 21 मार्च 2014 को उसने प्रधानमंत्री के दिल्ली कार्यालय में एक आरटीआई लगाई। जिसमें सरकार से कुछ प्रश्न पूछे गए थे, उसी दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। तरह-तरह की पूछताछ कर पूरे 4 घंटे बाद संसद मार्ग थाने से छोड़ा गया था।

पर्यावरण की रक्षा के लिए लगाए हैं हजारों पेड़ :
विशेक के पिता राणाराम बिश्नोई पिछले 50 साल से जोधपुर व अन्य रेतीले क्षेत्रों में 35 हजार से भी ज्यादा खेजड़ी, बबूल, बींगनवेल, रोहिडा, कंकेडी, भोग के पौधे लगा चुके हैं। जिन पेड़ों को उन्होंने लगाया राजस्थान की रेतीले मिट़टी होने के कारण उन्हें पानी की आवश्यकता होती है, जिसका सरकार ने कोई इंतजाम नहीं किया। इसके परिणामस्वरूप साल भर में बहुत से पौधे खराब हो गए।

क्या है चिपको आंदोलन :
1730 में राजस्थान के गांव खेजड़ली जिला जोधपुर के राजा के आदेश पर किला बनवाने पर चूना गलाने के लिए लकडिय़ों की जरूरत थी। सैनिकों ने क्षेत्र में लगे खेजड़ी के पेड़ों को काटना शुरू कर दिया था। क्षेत्र के लोग इसका विरोध करते हुए पेड़ों से चिपक गए थे। इसके बाद भी सैनिकों ने पेड़ों को चिपके हुए लोगों सहित काट दिया था।

गुडग़ांव : चिपको आंदोलन में मारे गए 363 लोगों को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए प्रयासरत विशेक बिश्नोई।

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