जय जम्भेश्वराय नम हिंदी फिल्म ने मेले में लोगों को किया आकर्षित




बिश्नोईज्म पर बनी प्रथम हिंदी फिल्म ने मेले में लोगों को किया आकर्षित।
फिल्म मुख्यत समाज के भटके ग्रामीण व शहरी परिवेश के युवक/युवतियों को पुनः गुरु राह चलने और धर्म व समाज से जोड़ने पर आधारित है।


निश्चित ही यह फिल्म वर्तमान समाज को पुनः आस्था से जोड़ने व युवावर्ग में नई सोच विकसित करने में मिल का पत्थर साबित होगी। निर्माता/निर्देशक श्री रवींद्र बिश्नोई ने
समाज में आ रही निरंतर सामाजिक/नैतिक आचरण में निम्नता और समय के साथ बिश्नोईयों की सर्वदा पालनीय धर्म नियमों के पालन में आ रही शिथिलता को दूर करने के लिए फिल्म के माध्यम से नई क्रांति का आगाज किया है। फिल्म में लोहट जी की साधना से लेकर जांभोजी के धरा-आगमन (जंभ लीलाओँ), जांभोजी के चमत्कारों द्वारा दुष्ट लोगों को सद्मार्ग दिखाने, बिश्नोईज्म का उद्गम व श्री भगवन द्वारा प्रदत्त धर्म नियमों के बारे में विस्तृतापुर्वक बताया गया है। चूँकि फिल्म को मुख्यत श्री गुरु जम्भेश्वर धाम जाजीवाल धोरा पर फिल्माया गया है जिसने निश्चित ही मेरे आर्टिकल "पशु प्रेम का अनुपम उदाहरण श्री गुरु जम्भेश्वर धाम जाजीवाल" को प्रत्यक्ष रूप से साकार किया है। फिल्म बिश्नोईज्म के प्रकृति प्रेम को तो दर्शाती ही है साथ ही बिश्नोईज्म की प्राचीन संस्कृति, सभ्यता को ग्रामीण परिवेश के माध्यम से चित्रित किया गया है।
फिल्म में बिश्नोईयों के प्राचीन व वर्तमान पहनावे को ज्यादा महत्व दिया गया है ( बिश्नोईज्म का पुरुष पहनावा जो स्वच्छता और सादगी का प्रतीक है वहीं महिलाओं के आभूषण शौर्य और सुंदरता को दर्शाते है) जो फिल्म में आकर्षण बिंदु है। फिल्म में माता हांसा का पहनावा (शर पर चाँदी का बोरिया, सांकली व हाथों में कड़ा,चुङ व गले में टाडिया, हैँळी और पैरों में कङी, छिलकङी, नैवरी, हाटी और वस्त्र में कुङती-कांजळी नीचे धाबळो आदि दर्शकों को प्राचीन पहनावे से रूबरू करवाएगा। फिल्म के आखिर में मेरी पसंदीदा आरती: "आरती जय जम्भेश्वर की" को बहुत ही अच्छे गायन के साथ दर्शकों के सामने रखा है।

यह फिल्म बिश्नोई युवाओं के लिए प्रेरणास्पर्द है जो बदलते परिवेश में पुनः धर्म और आस्था से जोड़ने में कामयाबी के नये आयाम छुएगी।

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