श्री जोराराम बिश्नोई
इन्होने उत्तर भारत के एक गाँव को मुस्लिम शासकों के अत्याचार से सदा सदा के लिए मुक्ति दिलाई. ये अकेले उन सब पर भारी पड़े और बिश्नोई धर्म को एक ऐसे स्थान पर मजबूती से स्थापित किया जहाँ पर लोग बिश्नोईयों और बिश्नोइज्म से अनजान थे. एक बिश्नोई मंदिर वर्तमान में इनकी वीरता के स्मारक के रूप में इस गैर बिश्नोई गाँव में खड़ा है तथा जोरा बिश्नोई का नाम गर्व और श्रद्धा से लिया जाता है. इनकी अद्वितीय वीरता की कहानी के सम्पूर्ण इतिहास को मैंने प्राप्त करने में सफलता पाई है तथा शीघ्र यह सम्पूर्ण वीर गाथा बिश्नोइज्म के समस्त प्रकाशनों को प्रेषित करूंगी. इस गाँव में जोरा बिश्नोई की वीरता पर मौखिक कविताओं की भरमार है, ऐसी ही एक टूटी फूटी कविता यहाँ प्रस्तुत है:
"जोरा"
कहानी एक अकराल हुणो
बिश्नोईये पाड़ी पाल हुणो
मुन्नेखां गी रिसालदारी
दुखी हया हगला नर नारी
मुन्नेखां गा नत्थू सुंधा
जोरे ने जब मारया मुन्धा
नत्थू गी चार जुल्मी संतान
फ़तेह फजल मजीत हबीबुल्ला खान
जुल्म करण म घसर नी छोडी
बिश्नोईयां पर बी लगाय दी गोडी
कमजोरां पर जोर करयो
जोरो बिश्नोई घिउ नी डरयो
हूँदिया तेरो होद लियो एंडो
ऊपर जाये ई छूट ही पेंडो
हुन्दो झलयो गाम ग बाहर
गोली काढी छाती ग पार
जुल्मी बोल्या खड़को कांगो
बिश्नोई बोल्या मांग ल्यो जे की मरदा मांगो
लोग लुगाई रंक राजिन्द्र
जाम्भोजी गो मांड्यो मीन्दर
बीजी बाजरी उग्यो बरु
हुन्दिये न मिलग्यो जोरो गुरु
जोरा बरगो एक घणो
खान मारयो भतीजां हणो
Bay - Santosh Punia
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